उत्तर कोरिया, एक ऐसा देश जहां की सच्चाई बाहर की दुनिया तक मुश्किल से पहुंचती है। इस रहस्यमयी देश की दीवारों के पीछे छिपी सच्चाई को अब एक 23 साल की युवती ने उजागर किया है। बेला सेओ, जो उत्तर कोरिया से भागकर दुनिया के सामने आई, ने वहां के स्कूलों की ऐसी भयावह तस्वीर पेश की है, जिसे सुनकर हर कोई सिहर उठता है। आइए, इस दिल दहलाने वाले खुलासे को करीब से समझते हैं।
उत्तर कोरिया: एक रहस्यमयी दुनिया
उत्तर कोरिया को दुनिया का सबसे बंद देश माना जाता है। यहां की खबरें बाहर आने में सालों लग जाते हैं, और जो खबरें आती हैं, वे अक्सर चौंकाने वाली होती हैं। बेला सेओ ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उत्तर कोरिया में जिंदगी एक जेल जैसी है, खासकर बच्चों के लिए। स्कूल, जो ज्ञान का मंदिर होना चाहिए, वहां बच्चों के लिए यातना का केंद्र बन चुके हैं।
स्कूलों में बच्चों की हालत
बेला के अनुसार, उत्तर कोरिया के स्कूलों में पढ़ाई का मतलब किताबों से ज्यादा किम जोंग उन और उनके परिवार की प्रशंसा करना है। हर दिन बच्चे सुबह स्कूल पहुंचते हैं तो सबसे पहले किम परिवार की तस्वीरों को साफ करते हैं। इसके बाद वफादारी के गीत गाए जाते हैं। दिन में सात पीरियड्स में से दो से तीन सिर्फ किम जोंग उन और उनके पूर्वजों की ‘क्रांतिकारी जीवनी’ पढ़ने में बीतते हैं। बेला ने बताया कि बच्चों का मूल्यांकन भी इसी आधार पर होता है कि वे किम परिवार के बारे में कितना जानते हैं, न कि गणित, विज्ञान या अन्य विषयों में उनकी समझ पर।
शारीरिक और मानसिक यातना
स्कूलों में बच्चों से कठिन शारीरिक श्रम करवाया जाता है। बेला ने खुलासा किया कि बच्चों को खेतों में काम करने, सड़कें बनाने या भारी सामान ढोने जैसे कामों में लगाया जाता है। इसके अलावा, अगर कोई बच्चा किम परिवार की प्रशंसा में कमी दिखाता है, तो उसे कठोर सजा दी जाती है। यह सजा सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी होती है। बच्चों को डर के साए में जीने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं।
बेला सेओ की कहानी
बेला सेओ की कहानी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं। 23 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर कोरिया से भागने का साहसिक फैसला लिया। जान जोखिम में डालकर वे देश छोड़कर भागीं और अब दुनिया को उत्तर कोरिया की सच्चाई बता रही हैं। बेला का कहना है कि वहां की जिंदगी इतनी दमघोंटू थी कि भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। उनकी कहानी न सिर्फ उत्तर कोरिया के स्कूलों की हकीकत को उजागर करती है, बल्कि वहां के लोगों की आजादी और मानवाधिकारों की कमी को भी सामने लाती है।
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