केरल की सियासत में इन दिनों हलचल मची हुई है। वक्फ संशोधन बिल को लेकर कांग्रेस का रुख अब उसके लिए भारी पड़ता नजर आ रहा है। राज्य का ईसाई समुदाय, जो कभी कांग्रेस का मजबूत समर्थक माना जाता था, अब पार्टी से खफा हो गया है। यह नाराजगी सिर्फ एक मुद्दे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे सालों की उपेक्षा और बदलते राजनीतिक समीकरणों की कहानी छिपी है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस अपने पुराने दोस्तों से दूर होती जा रही है? चलिए, इस खबर को करीब से समझते हैं और जानते हैं कि इसका असर आने वाले दिनों में क्या हो सकता है।
वक्फ बिल बना विवाद का केंद्र
वक्फ संशोधन बिल ने केरल में नई बहस छेड़ दी है। इस बिल को लेकर जहां मुस्लिम समुदाय में असंतोष है, वहीं ईसाई समुदाय भी इसे अपने हितों के खिलाफ देख रहा है। खास तौर पर मुनंबम जमीन विवाद ने इस आग में घी डालने का काम किया। यहां के सैकड़ों ईसाई परिवारों का आरोप है कि वक्फ बोर्ड उनकी जमीन पर दावा कर रहा है, जबकि उनके पास वैध दस्तावेज हैं। इस मुद्दे पर केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (KCBC) ने बिल के समर्थन में आवाज उठाई और सांसदों से इसके पक्ष में वोट देने की अपील की। लेकिन कांग्रेस ने इस बिल का विरोध किया, जिससे ईसाई समुदाय को लगने लगा कि पार्टी उनकी चिंताओं को नजरअंदाज कर रही है।
ईसाई समुदाय का गुस्सा क्यों?
केरल में ईसाई समुदाय की आबादी करीब 18-20% है और यह लंबे समय से कांग्रेस का वफादार वोट बैंक रहा है। लेकिन वक्फ बिल पर पार्टी के रुख ने इस रिश्ते में दरार डाल दी। कई ईसाई संगठनों का कहना है कि कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को खुश करने के चक्कर में उनकी बात को अनसुना कर दिया। मुनंबम में रहने वाले लोग पिछले कई महीनों से अपनी जमीन बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी होगी, लेकिन पार्टी के सांसदों ने बिल के खिलाफ वोट दिया। इससे नाराज होकर कुछ स्थानीय नेता और कार्यकर्ता अब बीजेपी की ओर झुक रहे हैं, जो इस मौके को भुनाने में जुटी है।
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