तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिले से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो न केवल दिल को छूती है, बल्कि समाज के सामने कई सवाल भी खड़े करती है। एक 65 वर्षीय रिटायर्ड सैनिक, एस. विजयन, ने अपनी जिंदगी की कमाई, यानी 4 करोड़ रुपये की संपत्ति, अरुलमिगु रेणुगाम्बल अम्मन मंदिर को दान कर दी। यह फैसला उन्होंने अपनी बेटियों द्वारा बार-बार अपमानित किए जाने और परिवार से मिले उपेक्षा के दर्द के बाद लिया। यह कहानी न केवल उनके त्याग और विश्वास को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे बुढ़ापे में कई बार अपने ही अपनों से दूर हो जाते हैं। आइए, इस अनोखी और प्रेरणादायक कहानी को विस्तार से जानते हैं।
एक सैनिक का अकेलापन और विश्वासएस. विजयन ने अपनी जिंदगी का अधिकांश हिस्सा देश की सेवा में बिताया। रिटायरमेंट के बाद वह अपने परिवार के साथ सुखद जीवन की उम्मीद रखते थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनकी पत्नी से अनबन के बाद वह पिछले 10 सालों से अकेले रह रहे हैं। उनकी बेटियों ने न केवल उनकी उपेक्षा की, बल्कि उनकी संपत्ति पर दबाव बनाया और उनका अपमान भी किया। इस दर्द ने विजयन को इतना आहत किया कि उन्होंने अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान करने का फैसला लिया। यह फैसला उनके गहरे विश्वास और मंदिर के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, क्योंकि वह बचपन से ही रेणुगाम्बल अम्मन के भक्त रहे हैं।
दान पेटी में मिले 4 करोड़ के दस्तावेजयह घटना 24 जून को उस समय सामने आई, जब मंदिर के कर्मचारियों ने नियमित जांच के दौरान दान पेटी (हुंडी) खोली। हुंडी में सिक्कों और नोटों के साथ-साथ दो संपत्ति के दस्तावेज मिले, जिनकी कुल कीमत 4 करोड़ रुपये थी। एक संपत्ति, जिसकी कीमत 3 करोड़ रुपये थी, मंदिर के पास एक मंजिला मकान और 10 सेंट जमीन की थी, जबकि दूसरी संपत्ति की कीमत 1 करोड़ रुपये थी। इन दस्तावेजों के साथ एक हस्तलिखित नोट भी था, जिसमें विजयन ने स्पष्ट किया कि यह दान उनकी अपनी इच्छा से किया गया है। मंदिर के कार्यकारी अधिकारी, एम. सिलंबरासन, ने बताया कि यह पहली बार हुआ है कि किसी भक्त ने इतनी बड़ी संपत्ति दान पेटी में डाली हो।
मंदिर का कानूनी दावा और प्रक्रियामंदिर के अधिकारियों ने बताया कि दान पेटी में दस्तावेज मिलने का मतलब यह नहीं कि संपत्ति का स्वामित्व स्वतः मंदिर को मिल जाएगा। इसके लिए दान को आधिकारिक रूप से हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ विभाग (HR&CE) में पंजीकृत कराना होगा। तब तक ये दस्तावेज सुरक्षित रखे जाएंगे। अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया गया है, जो आगे की कार्रवाई तय करेंगे। विजयन ने दृढ़ता से कहा, “मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा। मैं जल्द ही मंदिर के अधिकारियों के साथ मिलकर संपत्ति को कानूनी रूप से मंदिर के नाम करूंगा।”
परिवार का दबाव और विजयन की दृढ़ताविजयन की कहानी तब और मार्मिक हो जाती है, जब पता चलता है कि उनकी बेटियां अब इस संपत्ति को वापस लेने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन विजयन अपने फैसले पर अडिग हैं। उन्होंने कहा, “मेरे बच्चों ने मेरी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी मेरा अपमान किया। मैंने यह संपत्ति अपनी मेहनत से कमाई थी, और अब इसे मंदिर को दान करके मुझे सुकून मिला है।” यह बयान उनके दृढ़ विश्वास और आत्मसम्मान को दर्शाता है।
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