अजमेर, 14 अप्रेल . डॉ भीमराव अंबेडकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था, वे केवल एक राजनेता ही नहीं थे, बल्कि सच्चे मायनों में वह धर्म शास्त्री, अर्थशास्त्री और समाज शास्त्री भी थे. वे केवल एक संविधान निर्माता ही नही थे, गौतम बुद्ध के बाद वह समाज में छुआछुत और पाखंड के विरुद्ध एक अत्यंत प्रभावकारी और तूफानी क्रांति लाने वाले महान विभूत भी थे. यह बात डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 135 वीं जयंती के अवसर पर राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विश्लेषक मनोज ज्वाला ने कही. यह आयोजन विश्वविद्यालय के एससी, एसटी व ओबीसी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित किया गया था.
मनोज ज्वाला ने अपने संबोधन में आगे कहा कि बाबा साहब अंबेडकर की भारत की परम्परा और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था थी. बाबा साहब ने भारतीय संस्कृति और परम्परा से जुड़े रहने के लिए बौद्ध धर्म ग्रहण किया और इस्लाम एवं इसाई धर्म को नकारते हुए कहा कि यह दोनों ही धर्म बाहर के है.
मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट करते हुए कहा की डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में भारत की राष्ट्र भाषा परिषद् में संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन संविधान सभा द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार नहीं गया. बाबा साहब ने कभी भी “दलित” शब्द का प्रयोग नही किया. उन्होंने सदैव अनुसूचित शब्द का प्रयोग किया.
समारोह की शुरुआत में डॉ. अम्बेडकर पर आधारित फिल्म प्रस्तुति की गई. मुख्य अतिथि एवं कुलपति का स्वागत किया गया. इस अवसर पर बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर की जीवन यात्रा पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी मुख्य अतिथि द्वारा किया गया. एससी, एसटी व ओबीसी प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ आनंद कुमार ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आनंद भालेराव ने बताया कि डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती का यह दिन उनके विचारों, उनके संघर्षों और उनके द्वारा स्थापित मूल्यों के प्रति हमारी श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है. कुलपति ने कहा कि बाबा साहब की चैत्यभूमि (मुंबई) है जहाँ उनका दाह संस्कार हुआ था और दीक्षाभूमि (नागपुर) है, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी. ये दोनों ही स्थान करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र हैं.
प्रो भालेराव ने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर समाज सुधारक थे जिन्होंने जीवन भर सामाजिक असामनता और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष किया. बाबा साहब ने “शिडूल कास्ट फेडरेशन” जैसे संगठन खड़े किए, चुनावों में भाग लिया और स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री के रूप में अपनी भूमिका निभाई.
इस अवसर पर कुलपति प्रो भालेराव ने विश्वविद्यालय की ओर से प्रमुख रूप से दो घोषणा की . जिसमे पहली घोषणा के अनुसार अगले वर्ष से डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर समाज, देश और एससीएसटी वर्ग के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को “बाबा साहब समाज रत्न पुरस्कार” से सम्मानित किया जाएगा. दूसरी घोषणा के अनुसार जो विद्यार्थी आर्थिक समस्या के चलते अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते हैं उन विद्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालय स्कालरशिप तैयार करेगा जो अगले अकादमिक सत्र से लागू होगी.
कार्यक्रम के अंत में कविता प्रतियोगिता, रंगोली प्रतियोगिता और स्लोगन प्रतियोगिता के विजेताओ को सर्टिफिकेट प्रदान किए गए. इस अवसर पर विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में भी बाबा साहब पर उपस्थित पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाईं गई.
इस भव्य और दिव्य आयोजन में विश्वविद्यालय के गणमान्य व्यक्ति सभी शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के साथ – साथ विद्यार्थी भी उपस्थित थे. अंत में एससी, एसटी व ओबीसी प्रकोष्ठ के सदस्य सचिव खेमराज मीणा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया.
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/ संतोष
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