कोलकाता, 21 सितंबर (Udaipur Kiran News). रविवार तड़के West Bengal महालया के उत्सव में रंग गया. भोर होते ही आकाशवाणी से ‘महिषासुर मर्दिनी’ की गूंज निकली और राज्यभर में देवी पक्ष की शुरुआत का शुभ संदेश फैल गया. महालया न केवल पितृ पक्ष का समापन है, बल्कि दुर्गा पूजा के आगाज़ का प्रतीक भी है.
मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ पृथ्वी लोक पर आगमन करती हैं. बंगालवासी इसे देवी का स्वागत मानते हैं. मूर्तिकार महीनों से प्रतिमा निर्माण करते हैं, लेकिन आंखों में रंग भरने का कार्य—‘चक्षु दान’—महालया के दिन ही होता है, मानो देवी स्वयं मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित कर पृथ्वी पर उतर आई हों.
पौराणिक कथा और शक्ति का संदेश
किंवदंती है कि महिषासुर के अत्याचारों से जब तीनों लोक कांप उठे, तब देवताओं ने आदिशक्ति का आह्वान किया. ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अस्त्र प्रदान कर मां दुर्गा को सशक्त किया. देवी ने नौ रूपों के साथ महिषासुर का वध कर अधर्म का अंत किया. महालया से अच्छाई पर बुराई की विजय का यही संदेश मिलता है.
बंगाल की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा पर्व
West Bengal में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान है. भव्य पंडाल, कलात्मक मूर्तियां, ढाक की धुन और शंखनाद इसे विश्व का सबसे बड़ा सार्वजनिक उत्सव बनाते हैं. महालया इस पूरे पर्व की आत्मा है.
आज गंगा तट पर हजारों लोगों ने पितरों का तर्पण कर आशीर्वाद लिया. इसके साथ ही पूरे राज्य में देवी दुर्गा की आराधना और स्वागत की तैयारियां शुरू हो गईं. महालया को पितरों के आशीर्वाद और देवी के आगमन का संगम माना जाता है.
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