असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित नीलांचल पर्वत पर बसा कामाख्या देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर मां कामाख्या को समर्पित है, जिन्हें तंत्र साधना और कामशक्ति की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमान के चलते आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव करने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित किया और जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए। कामाख्या मंदिर उस स्थान पर बना है जहां माता सती का योनिभाग गिरा था। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां कोई प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक रूप से बनी योनिकुंड की पूजा होती है। यह कुंड सदैव गीला रहता है और वर्ष में एक बार अंबुबाची मेले के दौरान यह कुछ दिनों तक रक्तवर्ण में परिवर्तित हो जाता है, जिसे देवी का मासिक धर्म माना जाता है।
कामाख्या देवी मंदिर – शक्ति और तंत्र का केंद्रकामाख्या देवी मंदिर को तांत्रिक साधना का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां देश-विदेश से साधक तंत्र विद्या सीखने और साधना करने के लिए आते हैं। मां कामाख्या को 'कामेश्वरी' के रूप में पूजा जाता है जो इच्छा पूर्ण करने वाली देवी हैं। यहां की पूजा विधि सामान्य हिंदू मंदिरों से थोड़ी अलग है। तांत्रिक विधि से की गई पूजा में बलि भी दी जाती है, जो परंपरा का हिस्सा है। कामाख्या मंदिर में अंबुबाची मेला एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व होता है, जिसमें देशभर से श्रद्धालु, साधु-संत, और तांत्रिक यहां एकत्र होते हैं। इस मेले के दौरान मंदिर तीन दिन के लिए बंद रहता है, जिसे देवी का मासिक धर्म काल माना जाता है। चौथे दिन मंदिर के कपाट फिर से खुलते हैं और देवी की विशेष पूजा होती है।
कामाख्या मंदिर – मान्यता और चमत्कारकामाख्या देवी मंदिर से कई धार्मिक और रहस्यमयी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि मां कामाख्या हर उस मनोकामना को पूर्ण करती हैं जो श्रद्धा से मांगी जाती है। विशेष रूप से विवाह, संतान प्राप्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए यहां भक्तगण आते हैं।स्थानीय लोग मानते हैं कि इस मंदिर की शक्तियां इतनी प्रबल हैं कि कोई भी झूठ बोलकर यहां नहीं टिक सकता। यही वजह है कि कई बार लोग सत्य जानने के लिए यहां देवी से प्रार्थना करते हैं। चमत्कारों की अनेक कहानियां यहां के पंडा और स्थानीय लोग श्रद्धापूर्वक सुनाते हैं।
कामाख्या देवी की पूजा विधि और नियमकामाख्या देवी की पूजा विधि पारंपरिक तांत्रिक परंपरा पर आधारित है। यहां रोजाना सुबह और शाम विशेष आरती होती है। देवी को सिंदूर, लाल वस्त्र, चावल, नारियल, और फूल अर्पित किए जाते हैं। महिलाएं विशेष रूप से लाल चूड़ियां और चुनरी चढ़ाती हैं। पूजा के दौरान भक्तजन मंदिर में प्रवेश करने से पहले पवित्र जल से स्नान करते हैं और मानसिक शुद्धता का पालन करते हैं। योनिकुंड के दर्शन करना यहां की सबसे पवित्र क्रिया मानी जाती है। नवरात्रि, अंबुबाची और दुर्गा पूजा के दौरान यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
कामाख्या मंदिर का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वकामाख्या मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह असम की संस्कृति और परंपरा का भी अहम हिस्सा है। यह मंदिर हिंदू धर्म के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत की तांत्रिक परंपराओं को भी जीवित रखे हुए है। यहां हर वर्ष जून माह में आयोजित अंबुबाची मेला न सिर्फ धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक पर्व भी बन चुका है। हजारों साधक, पर्यटक और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, जिससे गुवाहाटी की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है।
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