काल भैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है तथा इन्हें मृत्यु, विनाश, सुरक्षा और भय का देवता माना जाता है। काल भैरव की पूजा करने से लोगों को भय, मृत्यु और भूत-प्रेत के भय से मुक्ति मिलती है। अभी कलियुग चल रहा है और शास्त्रों के अनुसार कलियुग में पाप अपने चरम पर होगा। कहीं भी धर्म का कोई निशान नहीं होगा। ऐसे में कलियुग के प्रकोप को कम करने के लिए भगवान भैरव की साधना बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
काल भैरव शिव का उग्र रूप हैं, इसलिए उनकी साधना अधिकतर वे लोग करते हैं जिनके पास सिद्धियां होती हैं या जो गुप्त साधना करते हैं। इन पूजाओं से साधक की शक्तियों में काफी वृद्धि होती है। कहा जाता है कि इस सिद्धि का फल कोई नहीं चुरा सकता। यदि आप सिद्धि के लिए देवी शक्ति के किसी भी रूप की पूजा कर रहे हैं तो इसके लिए भी आपको सबसे पहले काल भैरव की पूजा करनी होगी।
भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध के परिणामस्वरूप हुई थी। यह एक भयंकर रूप है। इससे संबंधित दो कहानियाँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु इस बात पर झगड़ रहे थे कि सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ रचयिता कौन है और वेदों से उन्हें उत्तर में शिव जी का नाम मिला तो ब्रह्मा ने वेदों के साथ-साथ शिव जी का भी मजाक उड़ाया था। उनके इस अहंकार को देखकर उनका चौथा सिर क्रोध से जलने लगा, तब शिव जी ने काल भैरव को उत्पन्न किया और ब्रह्मा के अहंकारी सिर को काट दिया। काशी में भगवान भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर जिस स्थान पर गिरा था, उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर आज तक काल यानि भैरव बाबा काशी में स्थाई रूप से निवास करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान करने के लिए एक यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने सती और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। सती ने यज्ञ में शामिल होने का अनुरोध किया, लेकिन उनके पिता ने उन्हें आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से आहत होकर सती ने यज्ञ के हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया। इसके फलस्वरूप भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ।
भैरव की पूजा सात्विक और तामसिक दोनों तरीकों से की जाती है और दोनों प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। कहा जाता है कि भगवान भैरव की साधना मन में कोई कामना लेकर ही करनी चाहिए क्योंकि यह फलदायी साधना होती है। भैरव की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इनकी साधना से निर्भयता, शत्रुओं का नाश, रोगों से मुक्ति, धन-संपत्ति में वृद्धि तथा अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति का वरदान मिलता है। भैरव की पूजा करने से राहु भी शांत हो जाता है। भगवान भैरव तामसिक शक्तियों से भी जुड़े हैं, इसलिए उनकी पूजा करने से सकारात्मक शक्तियों के साथ-साथ नकारात्मक शक्तियों का भी जुड़ाव होने का भय रहता है। यह पूर्णतः साधक की आंतरिक शक्ति पर निर्भर करता है। इसलिए भैरव की साधना करने के लिए उचित गुरु से मार्गदर्शन लेने की सलाह दी जाती है।
काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन आती है और कहा जाता है कि अगर इस दिन सिद्ध भैरव साधना की जाए तो साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष अष्टमी के दिन ही भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था। भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दौरान काले कपड़े पहनना अनिवार्य है। सिद्ध भैरव साधना के लिए शनिवार और रविवार सर्वोत्तम दिन माने जाते हैं।
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