विज्ञान न्यूज़ डेस्क - भारत ने एक बार फिर चांद पर दमदार लैंडिंग के लिए कमर कस ली है। इस बार अंतरिक्ष यान नहीं, बल्कि भारतीय वैज्ञानिक भी उसमें सवार होकर चांद पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। भारत ने अपने अंतरिक्ष मिशन की रूपरेखा तैयार करते हुए 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और 2040 तक मानवयुक्त चांद पर लैंडिंग का लक्ष्य तय किया है। चंद्रयान-4 को तकनीकी रूप से और अधिक शक्तिशाली बनाकर इस मिशन को साकार करने की पूरी उम्मीद है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) के विकास को मंजूरी दे दी है। इसकी पेलोड क्षमता इसरो के प्रक्षेपण यान मार्क-3 से तीन गुना अधिक होगी। एनजीएलवी के विकास, विकासात्मक उड़ानों, आवश्यक सुविधाओं, कार्यक्रम प्रबंधन और प्रक्षेपण अभियानों के लिए 8,240 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और 2040 तक चांद पर भारतीय चालक दल उतारने की क्षमता विकसित करने के लिए इस परियोजना को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
एनजीएलवी की लागत 1.5 गुना अधिक होगी, लेकिन यह कम लागत पर अंतरिक्ष तक पहुंच सुनिश्चित करेगा। एनजीएलवी का प्रदर्शन तीन विकासात्मक उड़ानों के जरिए किया जाएगा। सरकार ने विकास चरण को पूरा करने के लिए 96 महीने (8 साल) का लक्ष्य रखा है। यह पहल भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगी और देश को अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी बनाएगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नए चंद्र मिशन 'चंद्रयान-4' को मंजूरी दे दी। इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है।
इस मिशन के तहत 2040 तक चंद्रमा पर उतरने और वापस लौटने के लिए आवश्यक तकनीकों का विकास किया जाएगा। इसमें अंतरिक्ष यान का अटैचमेंट/डिटैचमेंट, लैंडिंग, सुरक्षित वापसी और चंद्र नमूनों का संग्रह शामिल है। इस मिशन के लिए कुल 2,104.06 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इस मिशन के विकास और प्रक्षेपण के लिए जिम्मेदार होगा।