पंजाब की सरजमीं से एक बड़ी और भावनात्मक खबर सामने आई है। किसान आंदोलन के अहम चेहरों में से एक, जगजीत सिंह डल्लेवाल ने अपने 131 दिनों से जारी आमरण अनशन को आखिरकार समाप्त कर दिया है। फतेहगढ़ साहिब जिले की सरहिंद अनाज मंडी में आयोजित किसान महापंचायत में उन्होंने इस फैसले का ऐलान किया।
किसानों की भावनाओं के आगे झुके डल्लेवाल
जगजीत सिंह डल्लेवाल ने अपने संबोधन में कहा कि किसानों की लगातार अपील और भावनात्मक आग्रह के चलते उन्होंने यह अनशन तोड़ने का निर्णय लिया है। किसानों ने कई बार उनसे आग्रह किया कि उनकी सेहत को खतरे में डालने की बजाय संघर्ष के और तरीके अपनाए जाएं। उनकी इस भावनात्मक पुकार ने डल्लेवाल का दिल छू लिया और उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया।
MSP और किसानों की अन्य मांगों को लेकर शुरू किया था अनशन
बात करें शुरुआत की, तो डल्लेवाल ने अपना आमरण अनशन 26 नवंबर 2024 को शुरू किया था। उनका यह कदम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी समेत किसानों की कई मांगों को लेकर उठाया गया था। यह अनशन एक प्रतीक था—किसानों के हक और अधिकारों के लिए अडिग खड़े रहने का।
पुलिस हिरासत और अस्पताल में भर्ती की कहानी
इस बीच, 19 मार्च को पंजाब पुलिस ने आंदोलनरत किसानों पर बड़ी कार्रवाई की थी। जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवण सिंह पंधेर समेत कई किसानों को हिरासत में ले लिया गया और खनौरी और शंभू बॉर्डर से किसानों को हटाया गया। इस दौरान डल्लेवाल की तबीयत बिगड़ गई, जिसके चलते उन्हें पटियाला के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लंबे इलाज के बाद उन्हें 3 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
संघर्ष की नई राह की शुरुआत
डल्लेवाल ने स्पष्ट किया कि अनशन खत्म करना मतलब संघर्ष से पीछे हटना नहीं है। उन्होंने किसानों को आश्वस्त किया कि लड़ाई अब भी जारी है—सिर्फ तरीका बदला है। अब वह अपने आंदोलन को और संगठित, रणनीतिक और प्रभावशाली रूप से आगे बढ़ाएंगे।
एक प्रेरणादायक निर्णय
131 दिन तक लगातार आमरण अनशन पर रहना कोई आसान बात नहीं। ये सिर्फ एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि एक गहरी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। डल्लेवाल का यह निर्णय बताता है कि किसान नेता न केवल अपनी बात पर अडिग हैं, बल्कि अपने समुदाय की भावनाओं और स्वास्थ्य की चिंता करने वाले सच्चे जनसेवक भी हैं।
अब नजरें सरकार और प्रशासन पर
अब जब डल्लेवाल ने अनशन खत्म किया है, किसानों और देश की नजरें सरकार पर हैं। क्या MSP की मांगों को लेकर कोई ठोस कदम उठाया जाएगा? क्या किसानों की आवाज सुनी जाएगी या फिर उन्हें फिर से सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?
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