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Mundeshwari Devi Temple Mystery: अहिंसक बलि की रहस्यमयी सनातनी परंपरा

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Mundeshwari Devi Temple Mystery: अहिंसक बलि की रहस्यमयी सनातनी परंपरा

News india live, Digital Desk: सनातन धर्म विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध जीवन शैली तथा सांस्कृतिक परंपरा है। लेकिन इसी परंपरा से जुड़े कुछ शब्दों को गलत धारणाओं ने विवादित बना दिया है। ऐसा ही एक शब्द है “बलि”, जिसे आजकल जीव हत्या से जोड़कर देखा जाता है। जबकि वेदों के अनुसार बलि का वास्तविक अर्थ आहुति, दान या अर्पण होता है।

ऋग्वेद के आठवें मंडल की एक प्रसिद्ध ऋचा स्पष्ट कहती है, “मा नो गोषु, मा नो अश्वेसु रीरिषः”—जिसका अर्थ है “हमारी गायों और घोड़ों को मत मारो”। यह ऋचा स्पष्ट रूप से पशु हत्या का विरोध करती है। प्राचीन सनातन ग्रंथों में पशु हत्या को पाप माना गया है, यजुर्वेद और सामवेद में भी इसका उल्लेख है।

भारत में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां प्रतीकात्मक बलि दी जाती है। ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर बिहार के कैमूर क्षेत्र में स्थित मुंडेश्वरी देवी का मंदिर है। इस मंदिर में अक्षत (चावल) से अहिंसक बलि का प्रचलन है, जो एक चमत्कारिक घटना की तरह देखा जाता है।

मां मुंडेश्वरी मंदिर में भक्त अपनी मन्नत पूरी करने के लिए बकरे लाते हैं, लेकिन यहां जीव की हत्या नहीं होती। पुजारी अक्षत को माता के चरणों में अर्पित कर उसे बकरे पर डालते हैं, जिससे बकरा कुछ देर के लिए मुर्छित हो जाता है। इसके बाद फिर अक्षत डालने से वह पुनः सचेत हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में ना तो रक्त बहता है और ना ही किसी जीव को नुकसान पहुंचता है। इस अनूठे चमत्कार को देखने और मन्नतें मांगने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

यह मंदिर षट्कोण आकार में बना है, जो स्वयं में एक रहस्य है। पुरातत्वविदों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण लगभग तीसरी-चौथी शताब्दी में हुआ था, और यहां गुप्त वंश कालीन सिक्के व शिलालेख मिले हैं। मंदिर का नाम “मुंडेश्वरी” चंड और मुंड नामक दो राक्षसों के संहार के कारण पड़ा।

यह मंदिर न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी अपनी अहिंसक बलि की रहस्यमयी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, जो सनातनी मूल्यों और मानवता के सिद्धांतों को पुनः स्थापित करता है।

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