काठमांडू: भारत और नेपाल छह साल केबाद एक बार फिर से सीमा वार्ता शुरू कर रहे हैं। नेपाल के विदेश विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बाउंडी वर्किंग ग्रुप यानी BWG का सांतवां संस्करण भारतीय राजधानी नई दिल्ली में 27-29 जुलाई को आयोजित होगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लोक बहादुर छेत्री ने कहा, 'बैठक तय हो गई है। यह एक नियमित बैठक है, जो कोविड महामारी के कारण रुकी हुई थी।' बीडब्ल्यूजी को सुस्ता और कालापानी के विवादित क्षेत्रों को छोड़कर बाउंड्री पिलर के निर्माण, जीर्णोद्धार और मरम्मत, निर्जन जमीन को साफ करने और अन्य तकनीकी कार्यों का काम सौंपा गया है।
इस बैठक की तारीख सामने आने के बाद भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है, जिसने दो पुराने दोस्तों के बीच तनाव पैदा कर दिया है। पिछले साल नेपाल ने एक नया करेंसी नोट जारी किया, जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को दिखाया गया था। यह तीनों इलाके वर्तमान में भारत के नियंत्रण में हैं। भारत ने करेंसी नोट जारी होने पर इसे नेपाल की एकतरफा कार्रवाई बताया था और कहा था कि इससे जमीन हकीकत नहीं बदलेगी।
कालापानी, लिपुलेख लिम्पियाधुरा की कहानी
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब नेपाल ने इन इलाकों को अपना बताया था। 18 जून 2020 को नेपाल ने इस क्षेत्र को अपने नए राजनीतिक मानचित्र में शामिल किया। भारत ने इसे खारिज किया और इसे 'कृत्रिम विस्तार' और 'अस्थिर' कहा। 370 वर्ग किलोमीटर की यह पट्टी भारत, नेपाल और चीन के बीच ट्राइजंक्शन पर स्थित है। यह जमीन लंबे समय से भारतीय प्रशासन के अधीन रही है, जो ब्रिटिश काल से चला आ रहा है।
सुगौली की संधि में क्या है?
आधुनिक नेपाल की क्षेत्रीय सीमा 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुई सुगौली संधि से निर्धारित की गई थी। इसमें कहा गया है कि काली नदी (भारत में शारदा) नेपाल के पश्चिमी भाग की सीमा निर्धारित करती है, जबकि मेची नदी पूर्वी भाग की सीमा निर्धारित करती है। यह संधि गोरखा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध के बाद हुई थी। ये सीमाएं किसी मानचित्र पर नहीं अंकित थीं।
काली नदी की दो सहायक नदियां हैं- एक लिपुलेख से और दूसरी लिम्पियाधुरा से। नेपाल का तर्क है कि काली नदी पश्चिम में लिम्पियाधुरा से शुरू होती है, जबकि भारत का दावा है कि यह नदी लिपुलेख से शुरू होती है। यह उस दर्रे के पूर्व में स्थित है, जिस पर नेपाल अपना दावा करता है। भारत का दावा 1879 के उस नक्शे पर आधारित है, जो उसे स्वतंत्रता के दौरान मिला था।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सीमा को कालापानी के पूर्व में किया तो उस समय नेपाल पर शासन करने वाले सम्राट ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई। भारत की आजादी के बाद भी यह जारी रहा। 1960 के दशक की शुरुआत में राजा महेंद्र ने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिपुलेख-कालापानी क्षेत्र का उपयोग जारी रखने की सहमति दी।
लिपुलेख का भारत के लिए महत्व
लिपुलेख दर्रा भारत और तिब्बत के बीच व्यापार मार्गों में से एक है और इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। भारत-चीन युद्ध के दौरान पर नज़र रखी जा रही थी क्योंकि डर था कि चीनी सैनिक घुसपैठ के लिए इसका इस्तेमाल एक गुप्त मार्ग के रूप में कर सकते हैं। 1962 में भारत ने चीन-भारत युद्ध के बाद इस व्यापार मार्ग को बंद कर दिया।
नेपाल ने कब उठाया मुद्दा
नेपाल ने पहली बार इस मुद्दे को भारत के साथ 1991 में उठाया, जब राजशाही से लोकतांत्रिक सरकार के रूप में बदलाव हुआ। नवनिर्वाचित सरकार ने भारत के साथ सुगौली संधि को लेकर कई आपत्ति जताई। परिणामस्वरूप एक समिति का गठन हुआ। कई दावों का निपटारा कर दिया गया, लेकिन लिम्पियाधुरा-कालापानी-लिपुलेख क्षेत्र अधूरा रहा। नवम्बर 2019 में नई दिल्ली के मानचित्र जारी करने के बाद विवाद बढ़ा, जिसमें इस विवादित क्षेत्र को भारत का हिस्सा दिखाया गया। यह तनाव और बढ़ गया जब भारत ने लिपुलेख से होकर गुजरने वाले 80 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग का उद्घाटन किया। यह नई सड़क उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को धारचुला से जोड़ती है, जिसे नेपाल अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
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नेपाल की संसद ने साल 2020 एक संविधान संशोधन विधेयक को मंज़ूरी दे दी। इसने देश के नए मानचित्र का समर्थन किया, जिसमें भारत के साथ लगे क्षेत्र - लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी - नेपाल में शामिल दिखाए गए। बीते साल नेपाल ने 100 रुपये का नोट जारी किया जिसमें इस क्षेत्र को फिर से हिस्सा दिखाया गया।
इस बैठक की तारीख सामने आने के बाद भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है, जिसने दो पुराने दोस्तों के बीच तनाव पैदा कर दिया है। पिछले साल नेपाल ने एक नया करेंसी नोट जारी किया, जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को दिखाया गया था। यह तीनों इलाके वर्तमान में भारत के नियंत्रण में हैं। भारत ने करेंसी नोट जारी होने पर इसे नेपाल की एकतरफा कार्रवाई बताया था और कहा था कि इससे जमीन हकीकत नहीं बदलेगी।
कालापानी, लिपुलेख लिम्पियाधुरा की कहानी
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब नेपाल ने इन इलाकों को अपना बताया था। 18 जून 2020 को नेपाल ने इस क्षेत्र को अपने नए राजनीतिक मानचित्र में शामिल किया। भारत ने इसे खारिज किया और इसे 'कृत्रिम विस्तार' और 'अस्थिर' कहा। 370 वर्ग किलोमीटर की यह पट्टी भारत, नेपाल और चीन के बीच ट्राइजंक्शन पर स्थित है। यह जमीन लंबे समय से भारतीय प्रशासन के अधीन रही है, जो ब्रिटिश काल से चला आ रहा है।
सुगौली की संधि में क्या है?
आधुनिक नेपाल की क्षेत्रीय सीमा 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुई सुगौली संधि से निर्धारित की गई थी। इसमें कहा गया है कि काली नदी (भारत में शारदा) नेपाल के पश्चिमी भाग की सीमा निर्धारित करती है, जबकि मेची नदी पूर्वी भाग की सीमा निर्धारित करती है। यह संधि गोरखा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध के बाद हुई थी। ये सीमाएं किसी मानचित्र पर नहीं अंकित थीं।
काली नदी की दो सहायक नदियां हैं- एक लिपुलेख से और दूसरी लिम्पियाधुरा से। नेपाल का तर्क है कि काली नदी पश्चिम में लिम्पियाधुरा से शुरू होती है, जबकि भारत का दावा है कि यह नदी लिपुलेख से शुरू होती है। यह उस दर्रे के पूर्व में स्थित है, जिस पर नेपाल अपना दावा करता है। भारत का दावा 1879 के उस नक्शे पर आधारित है, जो उसे स्वतंत्रता के दौरान मिला था।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सीमा को कालापानी के पूर्व में किया तो उस समय नेपाल पर शासन करने वाले सम्राट ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई। भारत की आजादी के बाद भी यह जारी रहा। 1960 के दशक की शुरुआत में राजा महेंद्र ने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिपुलेख-कालापानी क्षेत्र का उपयोग जारी रखने की सहमति दी।
लिपुलेख का भारत के लिए महत्व
लिपुलेख दर्रा भारत और तिब्बत के बीच व्यापार मार्गों में से एक है और इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। भारत-चीन युद्ध के दौरान पर नज़र रखी जा रही थी क्योंकि डर था कि चीनी सैनिक घुसपैठ के लिए इसका इस्तेमाल एक गुप्त मार्ग के रूप में कर सकते हैं। 1962 में भारत ने चीन-भारत युद्ध के बाद इस व्यापार मार्ग को बंद कर दिया।
नेपाल ने कब उठाया मुद्दा
नेपाल ने पहली बार इस मुद्दे को भारत के साथ 1991 में उठाया, जब राजशाही से लोकतांत्रिक सरकार के रूप में बदलाव हुआ। नवनिर्वाचित सरकार ने भारत के साथ सुगौली संधि को लेकर कई आपत्ति जताई। परिणामस्वरूप एक समिति का गठन हुआ। कई दावों का निपटारा कर दिया गया, लेकिन लिम्पियाधुरा-कालापानी-लिपुलेख क्षेत्र अधूरा रहा। नवम्बर 2019 में नई दिल्ली के मानचित्र जारी करने के बाद विवाद बढ़ा, जिसमें इस विवादित क्षेत्र को भारत का हिस्सा दिखाया गया। यह तनाव और बढ़ गया जब भारत ने लिपुलेख से होकर गुजरने वाले 80 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग का उद्घाटन किया। यह नई सड़क उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को धारचुला से जोड़ती है, जिसे नेपाल अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
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नेपाल की संसद ने साल 2020 एक संविधान संशोधन विधेयक को मंज़ूरी दे दी। इसने देश के नए मानचित्र का समर्थन किया, जिसमें भारत के साथ लगे क्षेत्र - लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी - नेपाल में शामिल दिखाए गए। बीते साल नेपाल ने 100 रुपये का नोट जारी किया जिसमें इस क्षेत्र को फिर से हिस्सा दिखाया गया।
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