Next Story
Newszop

भारत का जिक्र किए बिना पाकिस्तान का समर्थन करने से संप्रभुता को खतरा नहीं, इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला

Send Push
राजेश कुमार पांडेय, प्रयागराज: उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान समर्थित पोस्ट के मामले में अहम फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी विशिष्ट घटना का जिक्र किए बिना या भारत का जिक्र किए बिना सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन व्यक्त करना भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 (भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य) के तहत पहली नजर में अपराध नहीं बनता है। हाई कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ इंस्टाग्राम पोस्ट में पाकिस्तान का समर्थन करने के आरोपी रियाज की जमानत याचिका मंजूर कर ली।



इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने मामले की सुनवाई के क्रम में कहा कि रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि आवेदक ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जो हमारे देश के प्रति अनादर दर्शाता हो। हाई कोर्ट ने 10 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि किसी भी देश के प्रति समर्थन दर्शाने के लिए केवल एक मैसेज पोस्ट करने से भारत के नागरिकों में गुस्सा या वैमनस्य पैदा हो सकता है।



हाई कोर्ट ने कहा कि यह बीएनएस की धारा 196 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत दंडनीय हो सकता है, लेकिन धारा 152 के तहत 'निश्चित रूप से लागू नहीं होगा'।



सावधानी बरतने का अनुरोधजस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने मामले की सुनवाई क्रम में बीएनएस की कठोर धारा 152 का हवाला देते हुए 'उचित सावधानी' बरतने का अनुरोध किया। दरअसल, बीएनएस की धारा 196 में सात साल तक की जेल का प्रावधान है, जबकि धारा 152 के तहत अपराध गैर-जमानती है। इसमें आजीवन कारावास या सात साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।



जस्टिस देशवाल ने बीएनएस की धारा 152 का हवाला देते हुए उचित सावधानी बरतने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह कठोर सजा का प्रावधान करने वाला एक नया प्रावधान है, जिसकी आईपीसी में कोई समानता नहीं है।



कोर्ट ने किया स्पष्टहाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि धारा 152 के तत्वों को लागू करने के लिए, मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य चित्रणों, इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने या अलगाव की भावना को बढ़ावा देने या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का उद्देश्य होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी देश के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट से लोगों में गुस्सा या वैमनस्य पैदा हो सकता है।



हाई कोर्ट ने 10 जुलाई कहा कि यह भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 196 के तहत दंडनीय हो सकता है, जिसमें सात साल तक की जेल का प्रावधान है, लेकिन निश्चित रूप से भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 152 के तत्वों को लागू नहीं किया जाएगा।



अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिक्रजस्टिस देशवाल ने कहा कि सोशल मीडिया पर बोले गए शब्द या पोस्ट भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आते हैं। उनकी संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि वे ऐसी प्रकृति के न हों। वे देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पहुंचाते हों या अलगाववाद को बढ़ावा देते हों। सुनवाई के दौरान आवेदक ने अपने वकील के माध्यम से दलील दी कि उसके सोशल मीडिया पोस्ट से देश की गरिमा और संप्रभुता को कोई ठेस नहीं पहुंची।



आवेदक ने तर्क दिया कि उसने न तो भारत का नाम लिया गया, न ही भारतीय ध्वज या कोई ऐसी तस्वीर पोस्ट की, जिससे देश का अनादर होता हो। आवेदक के वकील ने कहाकिसी देश का समर्थन करना, भले ही वह देश भारत का दुश्मन ही क्यों न हो, बीएनएस की धारा 152 के तहत नहीं आता।

Video

सरकार ने किया विरोधराज्य सरकार ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि इस तरह के पोस्ट अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं। जमानत देते हुए हाई कोर्ट ने आवेदक को सोशल मीडिया पर ऐसी कोई भी सामग्री पोस्ट न करने का निर्देश दिया, जिससे लोगों के बीच वैमनस्य पैदा हो। हाई कोर्ट के आदेश और सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर की गई टिप्पणी को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

Loving Newspoint? Download the app now