नई दिल्ली: शिक्षा की मूल आत्मा ही विकृत हो गई है। इसकी वजह है कि छात्रों को एक दूसरे से आगे बढ़ने की अंधाधुंध दौड़ में धकेला जा रहा है। उन पर लगातार मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप आत्महत्या के मामलों की संख्या बढ़ रही है। यह बातें सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहीं। साथ ही शीर्ष अदालत ने कोचिंग सेंटरों सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने संस्थानों को कई अहम निर्देश भी दिए। इनमें योग्य काउंसलर्स या मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति, शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर बैचों में विभाजन से बचना। साथ ही सर्टिफाइट मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की तरफ से अपने कर्मचारियों को वर्ष में दो बार अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग दिलाना भी शामिल है।
छात्रों की जिंदगी बचाने के लिए बने सिस्टम
एजुकेशन सिस्टम की उपलब्धि, स्थिति और आर्थिक सुरक्षा जैसे संकीर्ण रूप से परिभाषित लक्ष्यों वाली एक उच्च-दांव वाली दौड़ में तब्दील हो जाने पर दुख व्यक्त करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि विभिन्न कारणों से चरम कदम उठाने वाले छात्रों के जिंदगी बचाने के लिए एक सिस्टम बनाया जाना चाहिए।
पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस मेहता ने कहा कि सीखने की खुशी की जगह रैंकिंग, नतीजों और लगातार प्रदर्शन के पैमानों को लेकर चिंता ने ले ली है। छात्र, खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र, अक्सर ऐसे जाल में फंस जाते हैं जहां जिज्ञासा की बजाय अनुरूपता, समझ की बजाय परिणाम और खुशहाली की बजाय सहनशीलता को तरजीह दी जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें युवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए।
शिक्षा का उद्देश्य बोझ डालना नहीं
कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को मुक्त करना है, बोझ डालना नहीं। इसकी सच्ची सफलता ग्रेड या रैंकिंग में नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के समग्र विकास में निहित है जो सम्मान, आत्मविश्वास और उद्देश्य के साथ जीवन जीने में सक्षम हो। कोर्ट ने यह आदेश एक आत्महत्या करने वाले मेडिकल छात्र के माता-पिता की तरफ से दायर याचिका पर पारित किया। साथ ही आंध्र प्रदेश पुलिस की तरफ से की गई जांच में खामियों को देखते हुए मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया।
परीक्षा में फेल होने पर 2248 मौत
कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर सभी प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स के लिए रजिस्ट्रेशन, छात्र सुरक्षा मानदंड और शिकायत निवारण तंत्र अनिवार्य करने वाले नियम अधिसूचित करने का निर्देश दिया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 1,70,924 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 7.6%, लगभग 13,044, छात्र आत्महत्याएं थीं।
गौरतलब है कि इनमें से 2,248 मौतें सीधे तौर पर परीक्षा में असफलता के कारण हुईं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में छात्रों में आत्महत्या की संख्या 2001 में 5,425 से बढ़कर 2022 में 13,044 हो गई है।
कोर्ट ने संस्थानों को कई अहम निर्देश भी दिए। इनमें योग्य काउंसलर्स या मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति, शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर बैचों में विभाजन से बचना। साथ ही सर्टिफाइट मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की तरफ से अपने कर्मचारियों को वर्ष में दो बार अनिवार्य रूप से ट्रेनिंग दिलाना भी शामिल है।
छात्रों की जिंदगी बचाने के लिए बने सिस्टम
एजुकेशन सिस्टम की उपलब्धि, स्थिति और आर्थिक सुरक्षा जैसे संकीर्ण रूप से परिभाषित लक्ष्यों वाली एक उच्च-दांव वाली दौड़ में तब्दील हो जाने पर दुख व्यक्त करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि विभिन्न कारणों से चरम कदम उठाने वाले छात्रों के जिंदगी बचाने के लिए एक सिस्टम बनाया जाना चाहिए।
पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस मेहता ने कहा कि सीखने की खुशी की जगह रैंकिंग, नतीजों और लगातार प्रदर्शन के पैमानों को लेकर चिंता ने ले ली है। छात्र, खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र, अक्सर ऐसे जाल में फंस जाते हैं जहां जिज्ञासा की बजाय अनुरूपता, समझ की बजाय परिणाम और खुशहाली की बजाय सहनशीलता को तरजीह दी जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें युवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए।
शिक्षा का उद्देश्य बोझ डालना नहीं
कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को मुक्त करना है, बोझ डालना नहीं। इसकी सच्ची सफलता ग्रेड या रैंकिंग में नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के समग्र विकास में निहित है जो सम्मान, आत्मविश्वास और उद्देश्य के साथ जीवन जीने में सक्षम हो। कोर्ट ने यह आदेश एक आत्महत्या करने वाले मेडिकल छात्र के माता-पिता की तरफ से दायर याचिका पर पारित किया। साथ ही आंध्र प्रदेश पुलिस की तरफ से की गई जांच में खामियों को देखते हुए मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया।
परीक्षा में फेल होने पर 2248 मौत
कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर सभी प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स के लिए रजिस्ट्रेशन, छात्र सुरक्षा मानदंड और शिकायत निवारण तंत्र अनिवार्य करने वाले नियम अधिसूचित करने का निर्देश दिया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 1,70,924 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 7.6%, लगभग 13,044, छात्र आत्महत्याएं थीं।
गौरतलब है कि इनमें से 2,248 मौतें सीधे तौर पर परीक्षा में असफलता के कारण हुईं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में छात्रों में आत्महत्या की संख्या 2001 में 5,425 से बढ़कर 2022 में 13,044 हो गई है।
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