सांप काटने से मरे व्यक्ति को नहीं जलाया जाता
काशी के मणिकर्णिका घाट के अंतिम संस्कार से जुड़े नियमों के अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु सांप काटने से हुई है, उसे भी नहीं जलाया जाता क्योंकि मान्यता है कि ऐसे व्यक्ति में 21 दिनों तक सूक्ष्म प्राण रहते हैं और कोई तांत्रिक अपने लाभ के लिए ऐसे व्यक्ति को फिर से जीवित कर सकता है। इस कारण से जिस व्यक्ति की मृत्यु सांप काटने से हुई है उसे जलाने की बजाय पानी में बहा दिया जाता है।
साधुओं के शव को नहीं जलाया जाता
काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधुओं के शव को नहीं जलाया जाता। काशी के मणिकर्णिका घाट पर जब भी किसी साधु की मृत्यु होती है, तो उस साधु के शव को पूरे विधि-विधान के साथ जलसमाधि दी जाती है। वहीं, कई साधुओं के शव को थल समाधि यानी उनके शव को दफना दिया जाता है।
छोटे बच्चों के शव को नहीं जलाया जाता
काशी के मणिकर्णिका घाट पर छोटे बच्चों के शव को नहीं जलाया जाता। वैसे तो हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत छोटे बच्चों के शव को नहीं जलाया जाता लेकिन काशी के इस घाट पर 12 साल से कम उम्र के बच्चों को एक विशेष विधि के द्वारा मिट्टी में उनके शव को दफनाया जाता है।
गर्भवती महिलाओं के शव को नहीं जलाया जाता

काशी के मर्णिकर्णिका घाट से जुड़ा एक और नियम यह है कि अगर किसी महिला की मृत्यु गर्भवती होने के दौरान हुई है, तो भी उसका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर नहीं किया जाता। इसके पीछे कारण यह है कि गर्भवती महिला के शव को जब भी जलाया जाता है, तो आग की लपटों के कारण उनका पेट फट सकता है, जिससे बच्चा आकस्मिक रूप से बाहर आ जाएगा। वहीं, बच्चों को आग में नहीं जलाया जाता इसलिए गर्भवती महिलाओं के शव को जलाना निषेध है।
चर्म रोग या कुष्ट रोग से मरे व्यक्ति को नहीं जलाया जाता
काशी के अंतिम संस्कार के नियमों के अनुसार जिन लोगों की मृत्यु चर्म रोग या कुष्ट रोग से होती है, उन्हें भी काशी के मणिकर्णिका घाट पर नहीं जलाया जाता। इसका कारण यह है कि किसी भी तरह के त्वचा रोग वाले व्यक्ति को अगर घाट पर जलाया जाता है, तो इससे हवा में बैक्टीरिया फैल सकते हैं। इससे रोग का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि काशी में हर रोज लाखों लोगों की आवाजाही बनी रहती है।
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