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बड़ी आंखें..तेज आवाज, उत्तराखंड में पौड़ी के जंगलों में पहली बार मिला मायावी पक्षी

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उत्तराखंड के जंगलों में पहली बार एक मायावी पक्षी देखा गया है। विशाल आकार..गहरा भूरा रंग..बड़ी आंखें और तेज आवाज वाला इस दुर्लभ पक्षी को देखकर हर कोई हैरान है। गढ़वाल मंडल के मुख्यालय पौड़ी में यह 'Brown Wood Owl' (उल्लू) पहली बार देखा गया है। यह इसलिए भी खास है क्योंकि इस खूबसूरत पक्षी के लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसीलिए इसे ‘खतरे के करीब’ वाले पक्षियों श्रेणी में रखा गया है।



खुशी की बात यह है कि यहां एक नहीं बल्कि उत्तराखंड के जंगलों में 2-2 दुर्लभ पक्षी देखे गए हैं। व्योमेश चंद्र जुगरान ने अपने लेख इस बारे में जानकारी दी। पक्षी विशेषज्ञ जब किसी नए पक्षी को देखते हैं तो वे इसे ‘लाइफर’ कहते हैं। पौड़ी के नागदेव व कंडोलिया के जंगलों में एक नहीं, दो-दो लाइफर देख बर्ड वॉचर सतपाल गांधी यहां बिखरी जैव विविधता के मुरीद हो गए। ब्राउन वुड आउल के अलावा उन्होंने जो दूसरा लाइफर यहां देखा वह था- Grey Crowned Goldfinch। यह बेहद खूबसूरत पक्षी है जिसके चेहरे पर गाढ़ा लाल रंग और पंखों पर चमकदार पीली छींट होती है।



प्रजनन के लिए पसंद है हिमालय हिमालय में यह एक प्रवासी पक्षी है और ऊंचाई वाले इलाकों में ही प्रजनन करता है। हालांकि हिमालयन गोल् डफिंच को यूरोपीय गोल् डफिंच का ही सहोदर माना जाता था। लेकिन जब बारीकी से इसके फीचर्स देखे गए तो ‘बर्ड लाइफ इंटरनेशनल’ ने 2016 में इसे अलग प्रजाति मान लिया। 2024 में अंतरराष् ट्रीय पक्षीविज्ञान कांग्रेस ने भी इसे अपनी सूची में शामिल कर लिया।



पौड़ी में 180 से ज्यादा प्रजातियां वन विभाग के अनुमान के मुताबिक पौड़ी में पक्षियों की करीब 180 प्रजातियां हो सकती हैं। पिछले साल वन विभाग, देहरादून के सहयोग से की गई गणना के मुताबिक राज्य के 13 जिलों में पक्षियों की 729 प्रजातियां पाई गईं। पक्षी विविधता के मामले में नैनीताल जिला सबसे संपन्न घोषित किया गया है। यहां 251 प्रजाति के पक्षी पाए गए। इसके बाद देहरादून और फिर पौड़ी का नंबर है। अब मुख्यालय पौड़ी भी बर्ड-वॉचिंग डेस्टिनेशन के रूप में पहचान बनाने को उतावला है। ‘जय कंडोलिया महोत्सव’ के अंतर्गत आयोजित ‘बर्ड वॉचिंग ईवेंट’ इन्हीं प्रयासों की कड़ी में था।



ब्राउन वुड आउल उत्तराखंड के कई इलाकों में ब्राउन वुड आउल दिखाई देते हैं। हालांकि इन्हें अभी लुप्त प्राय पक्षियों की सूची में नहीं रखा गया है। खासतौर से नैनीताल के आसपास सातताल वाले क्षेत्र में यह अक्सर देखे जा सकते हैं। भले ही इन्हें खतरे वाली श्रेणी में नहीं रखा गया हो, लेकिन इनकी संख्या बहुत ही तेजी से कम हो रही है। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका समेत दक्षिण एशिया में इन्हें देखा जा सकता है।

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