वॉशिंगटन: यूक्रेन की सेना ने अमेरिका की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल जेवलिन का इस्तेमाल करते हुए रूसी टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया। अब भारत उसी मिसाइल को अमेरिका के साथ मिलकर बनाना चाहता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने अमेरिका को जवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) के ज्वाइंट प्रोडक्शन के लिए औपचारिक रूप से एक 'लेटर ऑफ रिक्वेस्ट' भेज दिया है। दोनों देशों के बीच जेवलिन एंटी टैंक मिसाइल के ज्वाइंट प्रोडक्शन को लेकर लंबे वक्त से बात चल रही थी और अब भारत ने आधिकारिक तौर पर चिट्ठी भेज दी है। भारत, मेक इन इंडिया के तहत इस मिसाइल का निर्माण करना चाहता है, जिसे एक सैनिक अपने कंधे पर रखकर आसानी से फायर कर सकता है। इसीलिए इस मिसाइल को टैंकों का काल माना जाता है।
जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें अमेरिका की सबसे एडवांस थर्ड जेनरेशन की एंटी-टैंक मिसाइलें मानी जाती हैं। रूस ने जब अपने सैकड़ों टैंकों को यूक्रेन में भेज दिया था, उसके बाद यूक्रेन को अमेरिका ने इस मिसाइलों को सौंपा था। यूक्रेन के जवान कहीं से भी छिपकर रूसी टैंकों को निशाना बना रहे थे। आखिरकार रूस को अपनी अग्रिम पंक्ति से अपने टैंकों को हटाना पड़ा। यह सिस्टम टॉप-अटैक क्षमता के लिए जाना जाता है, यानी यह दुश्मन के टैंक को ऊपर से निशाना बनाकर नष्ट करता है। टैंक का ये हिस्सा सबसे कमजोर होता है, इसीलिए टैंक काफी आसानी से ध्वस्त हो जाता है। जमीनी लड़ाई के समय ये मिसाइल काफी ज्यादा असरदार साबित हुआ है।
भारत की जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल बनाने की कोशिश
दि हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के एक सीनियर डिफेंस अधिकारी ने अमेरिका को चिट्ठी भेजे जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों को लेटर सौंप दिया गया है। भारतीय अधिकारी ने कहा कि सौदा हो जाने पर ये भारत की विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम करेगा और भारत अपनी जरूरत के मुताबिक एंटी टैंक का खुद प्रोडक्शन कर पाएगा। उन्होंने कहा है कि बातचीत अंतिम चरण में है। अधिकारी ने ये भी कहा है कि वे आपातकालीन खरीद के तहत जेवलिन मिसाइलों की खरीद के लिए पहले से ही अमेरिका के संपर्क में हैं। दरअसल, भारत की सेना पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों के लिए ऐसे मिसाइल सिस्टम चाहती है, जो काफी हहल्के हों और जवान आसानी से उसे ऑपरेट कर सकें। उन्हें किसी भी परिस्थिति में इस्तेमाल किया जा सके। जेवलिन मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे एक या दो सैनिक ही चला सकते हैं, वो भी बिना किसी वाहन या लॉन्चर के।
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में अमेरिका के डिफेंस सेक्रेटरी पीट हेगसेथ से टेलीफोन पर बातचीत की थी। इस दौरान दोनों के बीच डिफेंस सहयोग को बढ़ाने को लेकर काफी अहम बातचीत की गई है। इससे पहले दोनों देशों के बीच GE-414 जेट इंजन को भारत में बनाने की डील पर भी चर्चा हुई है। अब जैवलिन मिसाइलों की को-प्रोडक्शन से रक्षा साझेदारी को नई गति मिलने की उम्मीद है। इस मिसाइल को अमेरिकी रक्षा कंपनियां रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन मिलकर बनाती हैं। ये मिसाइल नाटो देशों की सेनाओं के लिए एक शानदार हथियार रहा है। अगर भारत इसे बनाता है तो इससे भारत के पास भी एंटी-टैंकों की टेक्नोलॉजी आएगी। इस बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि 2019 तक जेवलिन मिसाइल कम से कम 5000 सफल मिशन को अंजाम दे सकी है।
जेवलिन मिसाइल की क्षमता और कीमत
जेवलिन मिसाइल की क्षमता फायर-एंड-फॉरगेट की है, यानि एक बार लक्ष्य लॉक हो जाने पर ऑपरेटर को वहीं रुकने की जरूरत नहीं होती। यह मिसाइल खुद ही गाइड होती है। ये कंधे से दागे जाने वाली एंटी-टैंक मिसाइल है। इसका वजन करीब 22 किलो है और इसकी लंबाई करीब 1.1 मीटर है। इसका रेंज करीब 65 मीटर से 2.5 किलोमीटर तक है। इसके नये वैरिएंट का रेंज 4 किलोमीटर तक है। ये मिसाइल हाई एक्सप्लोसिव फायर कर सकती है और इसकी स्पीड Mach-1 सब सोनिक स्पीड है। इसकी प्रति यूनिट की कीमत 1 लाख 75 हजार से 2 लाख 50 हजार डॉलर के बीच है। भारत में अगर इसका प्रोडक्शन शुरू होता है तो कीमत और कम हो सकती है। ये मिसाइल किले, बंकर, इमारत या हेलिकॉप्टर जैसे सीधे दिखने वाले लक्ष्यों पर भी हमला कर सकती है।
जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें अमेरिका की सबसे एडवांस थर्ड जेनरेशन की एंटी-टैंक मिसाइलें मानी जाती हैं। रूस ने जब अपने सैकड़ों टैंकों को यूक्रेन में भेज दिया था, उसके बाद यूक्रेन को अमेरिका ने इस मिसाइलों को सौंपा था। यूक्रेन के जवान कहीं से भी छिपकर रूसी टैंकों को निशाना बना रहे थे। आखिरकार रूस को अपनी अग्रिम पंक्ति से अपने टैंकों को हटाना पड़ा। यह सिस्टम टॉप-अटैक क्षमता के लिए जाना जाता है, यानी यह दुश्मन के टैंक को ऊपर से निशाना बनाकर नष्ट करता है। टैंक का ये हिस्सा सबसे कमजोर होता है, इसीलिए टैंक काफी आसानी से ध्वस्त हो जाता है। जमीनी लड़ाई के समय ये मिसाइल काफी ज्यादा असरदार साबित हुआ है।
भारत की जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल बनाने की कोशिश
दि हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के एक सीनियर डिफेंस अधिकारी ने अमेरिका को चिट्ठी भेजे जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों को लेटर सौंप दिया गया है। भारतीय अधिकारी ने कहा कि सौदा हो जाने पर ये भारत की विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम करेगा और भारत अपनी जरूरत के मुताबिक एंटी टैंक का खुद प्रोडक्शन कर पाएगा। उन्होंने कहा है कि बातचीत अंतिम चरण में है। अधिकारी ने ये भी कहा है कि वे आपातकालीन खरीद के तहत जेवलिन मिसाइलों की खरीद के लिए पहले से ही अमेरिका के संपर्क में हैं। दरअसल, भारत की सेना पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों के लिए ऐसे मिसाइल सिस्टम चाहती है, जो काफी हहल्के हों और जवान आसानी से उसे ऑपरेट कर सकें। उन्हें किसी भी परिस्थिति में इस्तेमाल किया जा सके। जेवलिन मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे एक या दो सैनिक ही चला सकते हैं, वो भी बिना किसी वाहन या लॉन्चर के।
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में अमेरिका के डिफेंस सेक्रेटरी पीट हेगसेथ से टेलीफोन पर बातचीत की थी। इस दौरान दोनों के बीच डिफेंस सहयोग को बढ़ाने को लेकर काफी अहम बातचीत की गई है। इससे पहले दोनों देशों के बीच GE-414 जेट इंजन को भारत में बनाने की डील पर भी चर्चा हुई है। अब जैवलिन मिसाइलों की को-प्रोडक्शन से रक्षा साझेदारी को नई गति मिलने की उम्मीद है। इस मिसाइल को अमेरिकी रक्षा कंपनियां रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन मिलकर बनाती हैं। ये मिसाइल नाटो देशों की सेनाओं के लिए एक शानदार हथियार रहा है। अगर भारत इसे बनाता है तो इससे भारत के पास भी एंटी-टैंकों की टेक्नोलॉजी आएगी। इस बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि 2019 तक जेवलिन मिसाइल कम से कम 5000 सफल मिशन को अंजाम दे सकी है।
जेवलिन मिसाइल की क्षमता और कीमत
जेवलिन मिसाइल की क्षमता फायर-एंड-फॉरगेट की है, यानि एक बार लक्ष्य लॉक हो जाने पर ऑपरेटर को वहीं रुकने की जरूरत नहीं होती। यह मिसाइल खुद ही गाइड होती है। ये कंधे से दागे जाने वाली एंटी-टैंक मिसाइल है। इसका वजन करीब 22 किलो है और इसकी लंबाई करीब 1.1 मीटर है। इसका रेंज करीब 65 मीटर से 2.5 किलोमीटर तक है। इसके नये वैरिएंट का रेंज 4 किलोमीटर तक है। ये मिसाइल हाई एक्सप्लोसिव फायर कर सकती है और इसकी स्पीड Mach-1 सब सोनिक स्पीड है। इसकी प्रति यूनिट की कीमत 1 लाख 75 हजार से 2 लाख 50 हजार डॉलर के बीच है। भारत में अगर इसका प्रोडक्शन शुरू होता है तो कीमत और कम हो सकती है। ये मिसाइल किले, बंकर, इमारत या हेलिकॉप्टर जैसे सीधे दिखने वाले लक्ष्यों पर भी हमला कर सकती है।
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