जयपुर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ईडी की कार्रवाई के बाद सुर्खियों में आ गए हैं। हालांकि वे पार्टी के बेबाक और चर्चित नेताओं में शुमार हैं लेकिन ईडी की शिकंजे में आने पर लोगों के जहन में यही सवाल है कि प्रताप सिंह खाचरियावास इस शिकंजे में कैसे फंसे। क्या वाकई ईडी ने किसी के दबाव में यह कार्रवाई की है या कोई ऐसा मामला भी है जिसके तार खाचरियावास से जुड़े हैं। आज हम आपको बता रहे हैं उस कंपनी के बारे में जिसकी वजह से प्रताप सिंह खाचरियावास ईडी के रडार पर आए हैं। इस कंपनी का नाम है पर्ल एग्रो कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी पीएसीएल जिस पर 48,000 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप लगे हैं। जयपुर में हुआ रजिस्ट्रेशन, पहली FIR भी जयपुर मेंपीएसीएल नाम की जिस कंपनी की वजह से कांग्रेस नेता ईडी के निशाने पर आए हैं। उसका रजिस्ट्रेशन वर्ष 1983 में जयपुर में हुआ था। यह कंपनी मोटे मुनाफे का लालच देकर लोगों ने निवेश कराती थी। निवेश की गई रकम से जमीनें खरीदी जाती थी और कुछ वर्षों बाद निवेशकों को कई गुणा लाभ दिए जाने के दावे किए गए थे। जयपुर सहित राजस्थान के कई जिलों के लोगों ने लालच में आकर इस कंपनी में निवेश किया। बाद में लोगों को मुनाफा नहीं मिला तो लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है। पीएसीएल पर धोखाधड़ी करने के आरोप की पहली FIR जयपुर के चौमू थाने में दर्ज हुई।
जयपुर के लोगों के साथ हुई थी बड़ी ठगीनवगठित जिला कोटपूतली पहले जयपुर जिले का ही हिस्सा था। जयपुर में रजिस्टर्ड पीएसीएल में सबसे ज्यादा निवेश जयपुर और आसपास के लोगों ने किया। करीब एक हजार करोड़ रुपए की रकम से जयपुर के आसपास के क्षेत्रों में 223 जमीनें खरीदी गई। जानकारी के मुताबिक इस कंपनी की फ्राइचेंजी रखने वाले खाचरियावास परिवार के लोग थे। करीब 30 करोड़ हुए की हिस्सेदारी उनकी बताई जा रही है। एक एफआईआर होने के बाद लगातार मुकदमे दर्ज होते गए और यह कंपनी आयकर और ईडी की चपेट में आ गई। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस के नेतृत्व में कमेटी भी बनी और निवेशकों को ब्याज सहित रुपए वापस लौटाने के फैसले हुए। इसके बावजूद भी 5.85 करोड़ निवेशक ऐसे हैं जिन्हें ब्याज सहित निवेश की रकम वापस नहीं मिली। हालांकि प्रताप सिंह की घोषित संपत्ति पर नजर डाले तो उनके पास कोई बहुत बड़ी रकम नहीं रही। किस्तों में निवेश के प्लानपीएसीएल में निवेश के लिए अलग अलग प्लान बना रखे थे। इसके तहत लोगों को जमीन खरीद कर देने के दावे किए गए थे। 150 गज से लेकर 9 हजार गज तक के भूखंड खरीदे जा रहे थे। इसके लिए निवेशकों को किस्तों में रुपए जमा कराने थे। पीएसीएल की ओर किस्तों में राशि ली जाती थी और 25 से 50 फीसदी मुनाफे के दावे किए जाते थे। चैन सिस्टम के जरिए एक के बाद करोड़ों निवेशक कंपनी से जुड़े। ना केवल राजस्थान बल्कि देश के कई राज्यों में पीएसीएल ने पैर पसार लिए थे। सेबी ने लगाई लगामजब धोखाधड़ी के आरोप लगे तो केंद्रीय एजेंसी सेबी भी हरकत में आई। बिना अनुमति के धन एकत्रित करने पर सेबी ने पीएसीएल पर लगाम लगानी शुरू की। चूंकि पीएसीएल कंपनी की ओर से निवेशकों से रुपए लेने के बाद खुद के नाम से पट्टे दिए जाते थे। सेबी ने कार्रवाई करते हुए कंपनी के खाते सीज कर दिए। इसके बाद निवेशकों की राशि कंपनी के खातों में अटक गए। फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि सभी निवेशकों को ब्याज सहित उनकी राशि लौटाई जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी कंपनी निवेशकों को राशि नहीं लौटा सकी है। ऐसे में अब एक बार फिर ईडी की ओर से अलग अलग राज्यों में कंपनी से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी की गई। प्रताप सिंह खाचरियावास पर भी इसी कंपनी से जुड़े लेन देन के आरोप हैं। हालांकि खाचरियावास ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई राजनैतिक द्वैषता के कारण की गई है।

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