नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक आदेश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी से जुड़े नियमों के उल्लंघन को लेकर सख्त चेतावनी दी है। अदालत ने कहा कि जो भी अधिकारी गिरफ्तारी संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।26 मार्च को दिए फैसले में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि हरियाणा पुलिस ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में तय किए गए दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया और न केवल मौके पर बल्कि बाद में पुलिस स्टेशन में भी शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।बेंच को बताया गया कि जैसे ही याचिकाकर्ता को हिरासत में लिया गया, उसके भाई ने पुलिस अधीक्षक को इस बारे में एक ईमेल भेजा। इससे पुलिस अधिकारी नाराज हो गए और कथित रूप से याचिकाकर्ता को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। यह भी आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के लगभग 2 घंटे बाद एक बदले की FIR दर्ज की गई। डीजीपी को पेश होने का दिया था निर्देशपंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने 12 जनवरी 2023 को याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई एक दीवानी अवमानना याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ मौजूदा विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (DGP) को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था। जब अदालत ने मामले से जुड़े दस्तावेजों की जांच की, तो उसे पुलिस अधिकारियों के आचरण में स्पष्ट मनमानी नजर आई। ‘अपराधी से कानून के मुताबिक व्यवहार’अदालत ने यह याद दिलाया कि आरोपियों के भी अधिकार होते हैं। अदालत ने कहा कि भले ही कोई व्यक्ति 'अपराधी' हो, कानून कहता है कि उसके साथ कानून के अनुसार ही व्यवहार किया जाए। हमारे देश के कानून के तहत, एक 'अपराधी' भी कुछ सुरक्षा उपायों का हकदार होता है ताकि उसकी गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इस मामले में, जब याचिकाकर्ता को पुलिस ने पकड़ा, तब वह अधिकतम एक आरोपी था। यह तो कहा जा सकता है कि एक आम नागरिक अपनी सीमा पार कर सकता है (जिसके बाद कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी), लेकिन पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। सतर्क रहने, सावधानी बरतने की जरूरतसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित पुलिस अधिकारियों को सतर्क रहने और भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी दी जाती है। पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि इस प्रकार की घटनाएं दोबारा न हों और किसी भी अधीनस्थ अधिकारी द्वारा किए गए अधिकार के दुरुपयोग के प्रति वरिष्ठ अधिकारियों की जीरो-टॉलरेंस (शून्य सहनशीलता) नीति हो। पुलिस राज्य व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसका समाज की सुरक्षा और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, पुलिस में आम जनता और समाज का विश्वास बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। गिरफ्तारी से जुड़े निर्देशों का उल्लंघनअदालत ने अपने 2024 के फैसले सोमनाथ बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024 LiveLaw (SC) 252) का हवाला दिया, जिसमें यह अफसोस व्यक्त किया गया था कि पुलिस अभी भी गिरफ्तारी से जुड़े दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश की एक प्रति और सोमनाथ मामले में दिए गए फैसले की एक प्रति देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों (DGP) और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पुलिस आयुक्त को भेजने का निर्देश दिया, ताकि हिरासत में लिए गए लोगों के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जा सके। गिरफ्तारी पर क्या कहता है कानूनCRPC की धारा- 41 और 41ए में गिरफ्तारी का तरीका बताया गया है। अगर संज्ञेय अपराध हुआ हो यानी आमतौर पर 3 साल से ज्यादा सजा के मामलों में पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। वहीं अरनेश कुमार बनाम बिहार में सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल से कम सजा के मामले में गिरफ्तारी पर गाइडलाइंस दे रखी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती कि मामला संज्ञेय और गैर जमानती है और पुलिस को ऐसा करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा था, 7 साल से कम सजा वाले मामले में रूटीन और मैकेनिकल तरीके से गिरफ्तारी न करें बल्कि पहले संतुष्ट हों कि गिरफ्तारी जरूरी है।
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