प्रशांत अस्थाना: मिजोरम जल्द ही देश के रेल नेटवर्क से जुड़ने जा रहा है। इसके बाद यहां पहुंचना आसान हो जाएगा। यह खबर विकास के नजरिए से बेहद अहम है। इससे राज्य में कारोबार, पर्यटन और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। लेकिन, इसके साथ एक चिंता भी सिर उठा रही है, ‘क्या हम अपनी पहचान बचा पाएंगे?’ आईजोल में रहने वाले 42 वर्षीय जॉन 18 साल दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में रह चुके हैं।
वह कहते हैं, ‘ट्रेन शुरू होगी तो बहुत लोग आएंगे। कौन होगा, कैसे रहेगा, क्या करेगा - ये सब कंट्रोल करना कठिन होगा। हमने बड़ी मुश्किल से अपनी संस्कृति बचाई है। लड़कियां यहां पूरी तरह सुरक्षित महसूस करती हैं। हमारे यहां अपराध की दर बहुत कम है। क्या हम ये सब खो देंगे?’ जॉन की चिंता सिर्फ उनके अपने अनुभवों पर आधारित नहीं है। यह उस सामूहिक डर का हिस्सा है, जो मिजोरम और नॉर्थ ईस्ट के कई लोगों के दिलों में पल रहा है - बाहरी असर से अपने समाज, संस्कृति और सुरक्षा को खो देने का डर।
नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध जिन 10 राज्यों में होते हैं, उनमें से 5 नॉर्थ ईस्ट में हैं। मिजोरम, सिक्किम के बाद दूसरे नंबर पर आता है। पूर्वोत्तर में जेंडर इक्वेलिटी पर रिसर्च करने वाले लालसंग बताते हैं, ‘मिजोरम में कहीं भी चले जाइए, महिलाएं देर रात सड़क किनारे सामान बेचती दिख जाएंगी, वह भी बिना किसी पुरुष की मौजूदगी के।
यह सिर्फ सुरक्षा नहीं, समाज की सोच को भी दर्शाता है। यहां महिलाएं बाइक टैक्सी चलाती हैं, खुद फैसले लेती हैं और हर क्षेत्र में आगे हैं।’ पूर्वोत्तर ने ऐसी दुनिया बनाई है, जहां महिलाओं को बराबरी और सम्मान - दोनों मिलता है। उन्हें कोई जज नहीं करता, कोई तंग नहीं करता। लेकिन, उन्हें डर है कि बाहरी प्रभाव उनके शांत समाज और पारंपरिक जीवनशैली को बदल सकता है। नॉर्थ ईस्ट में तैनात एक अधिकारी बताते हैं, ‘यहां के लोग मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन यह जुड़ाव सम्मान और समझ के साथ हो।’ जॉन कहते हैं, ‘हम विकास चाहते हैं, लेकिन अपनी संस्कृति, अपनी पहचान की कीमत पर नहीं।’
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