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'सोचा नहीं था ऐसा होगा', उपराष्ट्रपति के इस्तीफे से जगदीप धनकड़ के पैतृक गांव में हर आंख हुई नम

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झुंझुनूं: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की खबर ने उनके पैतृक गांव किठाना को झकझोर कर रख दिया है। गांव की गलियों में सन्नाटा है, हर चेहरा हैरान है और हर आंख में चिंता। ऐसा लग रहा है जैसे किसी अपने ने अचानक कोई बड़ा फैसला ले लिया हो, जिसकी भनक तक नहीं लगी। गांव के लोग फोन पर एक-दूसरे से सिर्फ एक ही सवाल पूछ रहे हैं- 'सच में इस्तीफा दे दिया क्या?'





तबीयत तो खराब थी, पर इस्तीफे की उम्मीद नहीं थीहरेंद्र धनखड़, उपराष्ट्रपति के भतीजे ने बताया कि 'सच कहूं तो बाबूसा की तबीयत पिछले कुछ समय से ठीक नहीं है। मार्च में हार्ट सर्जरी भी हुई और पिछले महीने उत्तराखंड में सीने में दर्द की शिकायत भी आई थी। पर ऐसा भी कोई नहीं सोचा कि वो इस्तीफा देंगे। ये खबर हम सबके लिए जैसे किसी तूफान से कम नहीं है।' गांव वालों के अनुसार, इसी महीने की शुरुआत में उपराष्ट्रपति की पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ तीन दिन के लिए गांव आई थीं। मंदिर में दर्शन भी किए और परिजनों से बातचीत में चिंता जाहिर की थी कि 'अब बाबूसा का पहले से ज्यादा ध्यान रखना होगा।'





स्वास्थ्य चिंता की वजह बना कारण?स्थानीय लोग बताते हैं कि मार्च में हृदय ऑपरेशन के बाद से उपराष्ट्रपति का स्वास्थ्य लगातार उतार-चढ़ाव में था। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद यही कारण रहा हो कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया हो। लेकिन किसी को भी इस तरह के बड़े फैसले की भनक तक नहीं थी। गांव की सरपंच सुभिता धनखड़ का कहना है कि धनखड़ साहब तो गांव की शान हैं, उनका इस्तीफा गांव ही नहीं, पूरे झुंझुनूं के लिए बहुत बड़ा झटका है।





झुंझुनूं से था गहरा लगाव: 3 साल में 7 बार आएउपराष्ट्रपति बनने के बाद भी जगदीप धनखड़ ने अपने गांव और जिले से नाता नहीं तोड़ा। तीन साल के कार्यकाल में सात बार झुंझुनूं आए। कभी बच्चों को मोटिवेट करने, कभी धार्मिक स्थलों पर आशीर्वाद लेने और कभी स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करने। इनमें कुछ खास यात्राएं रहीं। इनमें तीन बार तो वे विद्यार्थियों से रूबरू होने ही झुंझुनूं आए और उन्हें मोटिवेट किया।

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