अप्रैल 2025 में विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी- इंडियाज पावर्टी एंड एक्विटी ब्रीफ। मोदी सरकार के साथ ही अडानी-अंबानी के मीडिया की बौद्धिक विकलांगता तो देखिए- इस रिपोर्ट पर अब चर्चा की जा रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि देश में गरीबी का पैमाना 2.15 डॉलर प्रतिदिन माना जाए तो वर्ष 2011-2012 से 2022-2023 के बीच 17.1 करोड़ आबादी गरीबी से ऊपर उठ गई। वर्ष 2011-2012 में इस पैमाने से 16.2 प्रतिशत आबादी गरीब थी, पर वर्ष 2022-2023 तक महज 2.3 प्रतिशत आबादी ही गरीब रह गई। दूसरी तरफ यदि गरीबी का पैमाना प्रतिदिन 3.65 डॉलर से कम की आय मानी जाए, तो वर्ष 2011-2012 से 2022-2023 के बीच 37.8 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से ऊपर उठ गई।
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आर्थिक असमानता का स्तर गिनीज कोअफिशन्ट के संदर्भ में 25.5 है। आर्थिक असमानता के संदर्भ में गिनीज कोअफिशन्ट व्यापक उपयोग में आने वाला पैमाना है, जो 0 से 100 तक होता है और इसमें जितने कम अंक होते हैं, आर्थिक समानता उतनी अधिक रहती है। इस संदर्भ में भारत में आर्थिक समानता बहुत अधिक है।
यहां तक सत्ता और दलाल मीडिया खूब प्रचारित कर रहे हैं। पर, विश्व बैंक की रिपोर्ट में इसके ठीक बाद लिखा है कि ये आंकड़े इसलिए हैं क्योंकि भारत के आंकड़े अपर्याप्त हैं। लगातार, गरीबी का पैमाना और आकलन की विधि बदले जाने के कारण एक साल के आंकड़ों की तुलना दूसरे साल से नहीं की जा सकती है। रिपोर्ट में आगे लिखा है कि वर्ल्ड इनइक्वालिटी डेटाबेस के अनुसार, भारत में वर्ष 2004 में गिनीज कोअफिशन्ट 52 था, जो वर्ष 2023 तक बढ़कर 62 तक पहुंच गया था- यानि वर्ष 2004 की तुलना में देश में वर्ष 2023 में आर्थिक असमानता बढ़ चुकी है। दूसरी तरफ, 25.5 के गिनीज कोअफिशन्ट के साथ कहीं यह नहीं लिखा है कि आर्थिक समानता के संदर्भ में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है।
जाहिर है, अप्रैल 2025 में प्रकाशित विश्व बैंक की इस रिपोर्ट को प्रचारित करने में आखिर 3 महीने का समय रिपोर्ट में जो नहीं लिखा है उसे खोजने में लगा। वैसे भी गरीबी दूर करने का आंकड़ा मोदी सरकार में एक मजाक बन कर रह गया है। विश्व बैंक का एक पैमाना वर्ष 2011-2012 से 2022-2023 के बीच 17.1 करोड़ तो दूसरा पैमाना 37.8 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर करने का दावा करता है। पर, इन आंकड़ों को ना तो प्रधानमंत्री मोदी ने, ना तो दलाल मीडिया ने और ना ही अनीति फैलाते नीति आयोग ने कभी बताया। फिर, ये कौन सी गरीबी है जो कम होती है पर सरकार को पता नहीं होता।
प्रधानमंत्री मोदी अप्रैल 2024 से पहले तक पांच वर्षों में 13.5 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर करने का दावा करते थे, इसके बाद 10 सालों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर कर दिया। 3 फरवरी 2025 को संसद में भी प्रधानमंत्री ने 25 करोड़ का आंकड़ा दोहराया था। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने भी 17 जुलाई 2023 के रिलीज में 13.5 करोड़, 19 जनवरी 2024 को 2013-2014 से 2022-2023 के बीच 24.82 करोड़ और 14 मार्च 2024 को 9 वर्षों में 25 करोड़ गरीबों को गरीबी से बाहर किया था। विश्व बैंक ने भी 8 जून 2025 को एक रिलीज में बताया था कि वर्ष 2011-2012 से 2022-2023 के बीच में देश में 27 करोड़ लोग गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो गए।
मोदी जी के तथाकथित आर्थिक समानता वाले देश के बारे में वर्ष 2024 में वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि देश की अर्थव्यवस्था अब अरबपतियों के चंगुल में है और आर्थिक असमानता अंग्रेजों की गुलामी के दौर से भी अधिक है। देश की सकल आय का 22.6 प्रतिशत सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत जनता के हिस्से में जाता है जबकि गरीबी के संदर्भ में सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में महज 15 प्रतिशत ही आता है।
वर्ष 2024 में ब्लूम वेंचर्स नामक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि देश में लगभग 100 करोड़ आबादी के पास उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं हैं- जाहिर है इस रिपोर्ट के अनुसार देश की 100 करोड़ आबादी गरीब है। संसद में सोनिया गांधी ने कहा था कि देश में जनगणना नहीं होने के कारण देश के 16 करोड़ लोगों को गरीब होने के बाद भी सरकारी मुफ़्त राशन नहीं मिल पा रहा है। फिलहाल 81 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है- यदि इस संख्या में 16 करोड़ और जोड़ दें जैसा सोनिया गांधी का दावा है- तब गरीबों की संख्या 97 करोड़ पंहुचती है और यह संख्या ब्लूम वेंचर्स द्वारा बताई गई 100 करोड़ की संख्या के करीब है।
वर्ष 2021 से 81 करोड़ से भी अधिक आबादी को हरेक महीने मुफ्त अनाज दिया जा रहा है और वर्ष 2028 तक यह सिलसिला चलता रहेगा। इन आंकड़ों से तो यही स्पष्ट होता है कि गरीबों की संख्या कम करने के दावों से सत्ता स्वयं आश्वस्त नहीं है। प्रधानमंत्री ने जनवरी 2024 में लोकसभा में वक्तव्य दिया था कि 25 करोड़ लोग पिछले 9 वर्षों में गरीबी रेखा से बाहर आकर मध्यम वर्ग में पहुंच गए हैं, पर उन्हें पहले जैसा ही सरकार द्वारा मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। इससे इतना तो स्पष्ट है कि मध्यम वर्ग भी गरीब है और उसे भी हरेक महीने 5 किलो मुफ्त अनाज देकर जिन्दा रखने की जरूरत है।
मोदी जी द्वारा 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर करने का आधार जनवरी 2024 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में देश की 55.34 प्रतिशत आबादी गरीब थी, पर वर्ष 2013-14 तक यह संख्या 29.17 प्रतिशत ही रह गई। इस पूरे दौर में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार रही और इस रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2014 के बीच 26.17 प्रतिशत आबादी गरीबी से बाहर आ गई। इसके बाद 2022-23 में गरीबों की आबादी 11.28 प्रतिशत ही रह गई। जाहिर है 2014 से 2023 के बीच महज 17.89 प्रतिशत आबादी, यानि 24.82 करोड़ आबादी, ही गरीबी रेखा को लांघ पाई। यह पूरा दौर नरेंद्र मोदी का रहा, जिसमें आजाद भारत के किसी भी दौर से अधिक तेजी से गरीबी कम करने के लगातार दावे किये जाते रहे। पर, नीति आयोग की ही रिपोर्ट इस दावे को झूठा करार देती है।
आईएमएफ ने तमाम देशों की सूची प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर तैयार की है। इस सूची में मोदी जी का विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत 124वें स्थान पर है। सूची में पहले स्थान पर लक्ज़मबर्ग है, इसके बाद के देश क्रम से हैं- सिंगापूर, मकाउ, आयरलैंड, कतार, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड, ब्रुनेई, गुयाना और अमेरिका।
मोदी सरकार में तथ्यों और वास्तविक आंकड़ों को जान पाना कठिन है क्योंकि कोई भी विभाग या मंत्रालय विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं करता। नीति आयोग जैसी संस्थाएं कुछ रिपोर्ट प्रकाशित भी करती हैं, तो सत्ता इसके आकड़ों को अपने तरीके से प्रस्तुत करती है। मोदी सरकार में जनता से जुड़े आंकड़े प्रधानमंत्री और दूसरे बड़बोले मंत्री समय और परिस्थिति के अनुसार गढ़ते हैं, इसीलिए हरेक भाषण में एक ही विषय पर आंकड़े अलग-अलग रहते हैं। सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और तथ्यों को परखने की जिम्मेदारी मीडिया की होती है, पर हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया ही सत्ता भक्ति में लीन होकर झूठ और जुमलों के प्रचार की फैक्ट्री बन चुका है।
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