बॉम्बे हाई कोर्ट ने उच्चतम न्यायालय के एक निर्देश के बाद मराठा आरक्षण प्रदान करने वाले कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ का गठन किया।
महाराष्ट्र की लगभग एक-तिहाई आबादी वाले मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के प्रावधान वाला यह कानून पिछले साल लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक विमर्श के केन्द्र में था।
शुक्रवार को जारी एक नोटिस में उच्च न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र राज्य में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 से संबंधित जनहित याचिकाओं और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई और फैसला करने के लिए न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे, न्यायमूर्ति एन जे जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पूर्ण पीठ गठित की जाती है।
हालांकि नोटिस में उस तारीख का उल्लेख नहीं किया गया है कि किस दिन पीठ याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
पिछले वर्ष उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की अध्यक्षता वाली एक पूर्ण पीठ ने इस कानून को इस आधार पर चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी कि मराठा पिछड़ा समुदाय नहीं है जिसे आरक्षण का लाभ चाहिए।
याचिकाओं में यह भी दावा किया गया कि महाराष्ट्र ने पहले ही आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा पार कर ली है। हालांकि, इस साल जनवरी में मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय का दिल्ली उच्च न्यायालय में तबादला हो जाने के बाद सुनवाई रुक गई।
उच्चतम न्यायालय ने 14 मई को मुंबई उच्च न्यायालय को एक विशेष पीठ गठित करने और मामले की तत्काल सुनवाई करने का निर्देश दिया था।
पीटीआई के इनपुट के साथ
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