अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक और एआईसीसी सत्र (8-9 अप्रैल) आयोजित करना हिम्मत की बात है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक, यह ऐसा कदम था जिससे न केवल कांग्रेस ने राज्य में अपनी गहरी जड़ों को याद किया बल्कि जोश-ओ-खरोश के साथ अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने का ऐलान भी कर दिया। कांग्रेस का गुजरात से ऐतिहासिक नाता रहा है। इसके संस्थापकों में से एक दादाभाई नौरोजी के अलावा स्वतंत्रता संग्राम के तीन सबसे बड़े कांग्रेस नेताओं में से दो- महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल- गुजरात से ही थे।
शायद मौजूदा पीढ़ी संघ-बीजेपी की मशीनरी के हल्ले-गुल्ले में इन गहरी जड़ों को भूल गई है। आजादी के बाद बनी पहली सरकार में सरदार पटेल नेहरू के समर्पित साथी और उनके डिप्टी थे। नेहरू को बदनाम करने और उन्हें सरदार पटेल के विरोधी के रूप में पेश करने का संघ का अभियान अगर इतना घिनौना नहीं होता तो हास्यास्पद ही कहा जाता।
संघ ने गांधी के हत्यारे को भी ऊंचे स्थान पर बिठा रखा है। पटेल पर दावा करने का संघ-बीजेपी का पूरा आधार नेहरू के साथ उनके रिश्तों के बारे में फैलाए गए दुष्प्रचार पर टिका है। पटेल की विरासत को हड़पने का बीजेपी का प्रयास जड़हीन है। ‘दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा’ केवल दिखावा है और यह विडंबना ही है कि 3,000 करोड़ की लागत वाली इस प्रतिमा का कुछ हिस्सा चीन में बना है।
जैसा कि युवा कांग्रेस के गुजरात के पूर्व प्रमुख इंद्रविजय सिंह गोविल ने बड़े ही मार्मिक ढंग से कहा: ‘बीजेपी के पटेल कांसे के बने हैं, हमारे पटेल जमीन पर रहते थे और लड़ते थे।’ एआईसीसी का प्रस्ताव बीजेपी-आरएसएस के दुष्प्रचार पर सीधा हमला करता है। बारडोली सत्याग्रह (गुजरात के बारडोली तालुका में किसानों पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा लगाए गए 22 फीसदी कर वृद्धि के खिलाफ 1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में अहिंसक विरोध) का हवाला देते हुए प्रस्ताव बीजेपी को ब्रिटिश चालों को दोहराने का दोषी मानता है, खासकर किसानों के साथ उसके व्यवहार के लिए।
पार्टी ने उचित मुआवजा कानून के अधिकार को कमजोर करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए अपने समर्थन को दोहराया। गुजरात के कांग्रेसियों ने अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल क्रिकेट स्टेडियम के 2015 के विध्वंस को भी याद किया। मोटेरा में जो नया स्टेडियम बना, उसका नाम नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम रखा गया। उन्होंने कहा कि राज्य बीजेपी ने करमसद (राज्य के आणंद जिले) में पटेल के पैतृक घर को संरक्षित करने के लिए कुछ नहीं किया, उल्टा इसके रखरखाव के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले 3 करोड़ रुपये के सालाना अनुदान को भी रोक दिया गया।
बेबाक सत्र
एआईसीसी सत्र में कई वक्ताओं ने अपनी स्पष्टवादिता दिखाई। यह उन लोगों के लिए आंख खोलने वाला सत्र था जो कहते हैं कि पार्टी में ‘आंतरिक लोकतंत्र’ नहीं है। इस अधिवेशन का नाम न्याय पथ दिया भी गया था। शशि थरूर जैसे दिग्गज और उत्तर प्रदेश के आलोक मिश्रा जैसे अपेक्षाकृत अज्ञात वक्ताओं ने बेबाक अंदाज में अपनी बात रखी। थरूर ने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस को हर समय आलोचनात्मक, नाराज और ‘नकारात्मक’ दिखने के बजाय ‘सकारात्मक नैरेटिव’ स्थापित करने और उम्मीद जगाने की जरूरत है। जबकि मिश्रा के बोल बेहद तीखे थे और उन्होंने तालियां भी बटोरीं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के संगठनों का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथों में रहने का कोई मतलब नहीं जिनके बच्चे दूसरी पार्टियों के लिए काम करते हैं। उन्होंने पूछा कि अगर ऐसे मुखिया का एक बेटा समाजवादी पार्टी में और दूसरा बीजेपी में है तो क्या फायदा? वह वही दोहरा रहे थे जो मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने भी कहा था- पार्टी में बीजेपी के स्लीपर सेल हैं और इन्हें पहचानने और खत्म करने की जरूरत है।
एक प्रतिनिधि ने फिलिस्तीन में नरसंहार पर कांग्रेस नेताओं की चुप्पी पर निराशा जताते हुए कहा कि केवल प्रियंका गांधी ने ही इस मसले पर एक्स पर बोलने की जहमत उठाई है। इसी मामले पर बिहार के प्रतिनिधि ने कहा कि कांग्रेस को गाजा पर मोदी सरकार की कायरता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए।
एक अन्य वक्ता ने हैरानी जताई कि पार्टी धर्मनिरपेक्षता और कथित ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के बारे में माफी मांगने के अंदाज में क्यों आ जाती है? लक्षित हिंसा के पीड़ितों को ‘पिछड़े वर्ग’ या ‘अल्पसंख्यक समुदायों’ से संबंधित क्यों बताया जाता है? साफ-साफ क्यों नहीं कहा जाता कि वे मुस्लिम या दलित हैं? कई वक्ताओं ने कहा कि इस मामले में पार्टी का रुख स्पष्ट और सुसंगत होना चाहिए। ‘उत्पीड़ित’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल छोड़ दिया जाना चाहिए और मॉब लिंचिंग में हत्या, जातिगत अत्याचार और सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों की पहचान बताई जानी चाहिए। राहुल गांधी ने भी इस भावना का जोरदार समर्थन किया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दो टूक कहा कि नेता या तो काम करें, या रिटायर हो जाएं। उन्होंने बेबाक तरीके से यह स्वीकार किया कि पार्टी अपने सिद्धांतों, अपने मूल मूल्यों को बताने में पिछड़ती रही है। संभवतः यह पहली बार था जब किसी कांग्रेस अध्यक्ष ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि पार्टी का खजाना खाली है: ‘पार्टी के पास पैसे नहीं हैं’। ‘अहमदाबाद मिरर’ की रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है जिसमें कहा गया है कि बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले गुजरात में राजनीतिक दलों को दिए गए 404.5 करोड़ रुपये में से 401.9 करोड़ रुपये मिले थे, यानी राजनीतिक दलों को दिए गए कुल दान का 99.3 फीसद।
नूतन गुजरात, नूतन कांग्रेस
कांग्रेस पिछले 30 वर्षों से गुजरात में सत्ता से बाहर है। 2024 में, इसने केवल एक लोकसभा सीट जीती। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मामूली अंतर से जीत हासिल की थी। पांच साल बाद 2022 में बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की। (उस साल राहुल गांधी ने प्रचार नहीं किया था क्योंकि वह भारत जोड़ो यात्रा पर थे।) हैरानी नहीं कि बीजेपी गुजरात में एआईसीसी की सफलता से उतनी ही बेपरवाह दिखती है, जितनी कि राहुल गांधी के इस आत्मविश्वास भरे दावे से कि कांग्रेस 2027 में अगला विधानसभा चुनाव जीतेगी।
हालांकि, कांग्रेस बीजेपी और मोदी-शाह की जोड़ी को उनके ही गढ़ में चुनौती देने के लिए पूरी तरह गंभीर है। एआईसीसी सत्र के बाद गुजरात और अन्य राज्यों में जिला कांग्रेस समितियों का सत्र होना है। एआईसीसी ने ‘नूतन गुजरात, नूतन कांग्रेस’ शीर्षक से एक प्रस्ताव भी पारित किया। यह प्रस्ताव बहुचर्चित ‘गुजरात मॉडल’ की तीखी आलोचना करता है, जिसमें बढ़ती बेरोजगारी, हजारों मध्यम और छोटे उद्यमों के बंद होने और भाजपा के शासन में औद्योगिक गिरावट को उजागर किया गया है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि पीएम मोदी ने 2023 में सूरत डायमंड बोर्स का उद्घाटन किया। आज हीरा पॉलिशिंग उद्योग अपनी धार खो चुका है। दुनिया के 80 फीसद कच्चे हीरों को प्रोसेस करने वाले सूरत को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सूरत के एक एआईसीसी प्रतिनिधि ने कहा, ‘मोदी ने जिल बिडेन को 20,000 डॉलर (लगभग 17 लाख रुपये) का 7.5 कैरेट का लैब में तैयार हीरा उपहार में दिया, लेकिन उन्होंने हमारे उद्योग की रक्षा के लिए एक शब्द नहीं बोला।’ उन्होंने कहा, ‘मीडिया में हकीकत नहीं बताई जा रही है, लेकिन स्थिति 2008 के वित्तीय संकट से भी बदतर है। मंदी से सभी निर्माता प्रभावित होंगे, लेकिन छोटे व्यवसायी तो खत्म ही हो जाएंगे।’ कांग्रेस ने संवैधानिक सिद्धांतों और सरदार पटेल के आदर्शों पर गुजरात के पुनर्निर्माण की कसम खाई, जिन्होंने रिकॉर्ड 25 वर्षों तक गुजरात कांग्रेस का नेतृत्व किया।
कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन का प्रस्ताव नीचे पढ़ सकते हैं:
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