ईरान पर अमेरिका के अचानक किए गए हमले के बाद पाकिस्तान की राजनीति और सेना की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। खासतौर से इसलिए क्योंकि हाल ही में पाकिस्तान सरकार और सेना ने डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया था। अब इसी ‘नोबेल नॉमिनी’ ट्रंप द्वारा ईरान पर बम गिराए जाने से पाकिस्तान बुरी तरह से घिर गया है। देश के अंदर ही आलोचना का तूफान खड़ा हो गया है, संसद से लेकर सोशल मीडिया तक विरोध की लहर फैल गई है।
नोबेल नॉमिनी के युद्धक कृत्य पर फूटा गुस्सा
पाकिस्तान की पूर्व राजदूत और वरिष्ठ राजनयिक मलीहा लोधी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि "जिन लोगों ने डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल मांगा है, उन्हें अब माफी मांगनी चाहिए।" उनका यह बयान तब आया जब अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमले किए और इसे एक ‘रक्षात्मक कदम’ करार दिया। मलीहा ने इस पूरे प्रकरण को पाकिस्तान के लिए शर्मनाक बताया।
पत्रकारों और विश्लेषकों ने भी जताया विरोध
जाने-माने लेखक और पत्रकार जाहिद हुसैन ने एक्स पर लिखा, "हमारे नोबेल नॉमिनी डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर बमबारी की है और दुनिया को एक नई बर्बादी के मुहाने पर खड़ा कर दिया है।" इस बयान को मलीहा लोधी ने रीट्वीट करते हुए पाकिस्तान सरकार की नीति को लेकर सवाल उठाए और कहा कि इस स्थिति पर खामोश रहना आत्मघाती है।
पार्लियामेंट में उठे तीखे सवाल, एयरबेस देने की अटकलों पर बवाल
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भी मामला गरमा गया। सांसद साहिबजादा हामिद रजा ने संसद में अमेरिका को एयरबेस दिए जाने की अटकलों पर तीखी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया कह रही है कि आप अपने एयरबेस और समुद्री क्षेत्र अमेरिका को देने जा रहे हैं। लेकिन ये जमीन इस मुल्क की है, किसी एक शख्स की जागीर नहीं।” उन्होंने सरकार से यह स्पष्ट मांग की कि वे अमेरिका को सैन्य ठिकाने देने के फैसले का खंडन करें।
इमरान खान के समर्थकों की चेतावनी – ईरान से बचा तो पाक मिटाएगा
साहिबजादा हामिद रजा ने इमरान खान के पुराने स्टैंड को दोहराते हुए कहा कि “हम इजरायल का वजूद ही नहीं मानते। अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो पाकिस्तान ईरान के साथ खड़ा होगा। इमरान खान जेल में हैं, लेकिन उनकी राय जाननी है तो कोई वहां जाकर वीडियो बना ले, आज भी वह अपने स्टैंड पर कायम हैं।”
डोनाल्ड ट्रंप की वॉशिंगटन मीटिंग के बाद भड़की आशंका
यह विवाद तब और बढ़ गया जब बीते हफ्ते पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने वॉशिंगटन में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी। इस मीटिंग के बाद से अटकलें थीं कि पाकिस्तान, अमेरिका को ईरान के खिलाफ सैन्य सहायता देने को राजी हो सकता है – जैसे कि एयरबेस, समुद्री मार्ग या लॉजिस्टिक सपोर्ट। अब इस ‘लंच डिप्लोमेसी’ को लेकर भी पाकिस्तान में सवाल उठने लगे हैं कि क्या एक भोज की कीमत पर राष्ट्रीय हितों की बलि दी जा रही है?
पाकिस्तानी सत्ता के खिलाफ जनविरोध की लहर
इस पूरे घटनाक्रम से पाकिस्तान की सेना और सरकार संसद, मीडिया और जनता के कटघरे में आ खड़ी हुई है। आलोचकों का कहना है कि देश की विदेश नीति में पारदर्शिता और राष्ट्रहित को दरकिनार किया जा रहा है। अमेरिका के साथ कथित मिलीभगत और ट्रंप की नोबेल सिफारिश अब उलटी पड़ती दिख रही है।
ईरान पर अमेरिकी हमले के बाद पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में एक नया बवंडर पैदा हो गया है। डोनाल्ड ट्रंप के नोबेल नामांकन ने जिस ‘शांति दूत’ की छवि गढ़ने की कोशिश की थी, वह अब युद्धकारी फैसले से पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। पाकिस्तान की सरकार और सेना को अब जनता के सवालों का जवाब देना होगा – क्या उन्होंने सचमुच अमेरिका को सैन्य मदद देने का वादा किया था? और क्या अब पाकिस्तान को खुद को पश्चिम एशिया की इस जंग से अलग रखने की हिम्मत है?
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