Mumbai , 18 अगस्त . हिंदी नाटक के इतिहास में लक्ष्मी नारायण मिश्र (1903-1987) का नाम आधुनिकता और मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद के प्रतीक के रूप में लिया जाता है. मिश्र ने अपने नाटकों में समकालीन सामाजिक और मानसिक समस्याओं को गहराई से उतारा था.
उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से समाज की रूढ़ियों, परंपराओं और व्यक्ति के आंतरिक संघर्षों को मंच पर उतारा. 18 वर्ष की आयु से ही लक्ष्मी नारायण मिश्र साहित्य लिखने लगे थे.
Tuesday को उनकी पुण्यतिथि है. आइए जानते हैं उनके कुछ बेहतरीन नाटकों के बारे में. उनके नाटक समय से भी आगे थे. लक्ष्मी नारायण मिश्र के नाटकों ने हिंदी रंगमंच की दिशा बदल दी और उसे एक नई बौद्धिक गहराई प्रदान की.
‘लक्ष्मीनारायण मिश्र का रचना संसार’ किताब में इनका जिक्र मिलता है.
संन्यासी- यह उनका सबसे मशहूर नाटक है. यह नाटक आधुनिक शिक्षा प्राप्त युवक जयदेव और भारतीय संन्यासी परंपरा के बीच के द्वंद्व को दिखाता है. जयदेव पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित है, जबकि उसके विचार संन्यास और त्याग की भावना से भी प्रभावित हैं.
राक्षस का मंदिर- यह नाटक सामाजिक कुरीतियों और पाखंड पर एक तीखा व्यंग्य है. यह दिखाता है कि कैसे समाज में धर्म और नैतिकता के नाम पर स्वार्थ और भ्रष्टाचार पनपता है. इसके जरिये सामाजिक संरचना में व्याप्त खोखलेपन को उजागर किया गया है.
अशोक- लक्ष्मी नारायण मिश्र ने ऐतिहासिक नाटकों की भी रचना की, ये उसी में से एक है. इसमें उन्होंने ऐतिहासिक घटना को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा है. यह नाटक राजा अशोक के कलिंग युद्ध के बाद के पश्चात्ताप और हृदय परिवर्तन की कहानी कहता है.
गरुड़ध्वज- इस नाटक का कथानक उस युग का है, जिसकी अधिक सामग्री इतिहास में नहीं मिलती. इसमें उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति से शुंग वंश के काल पर सुन्दर प्रकाश डाला है. ‘गरुड़ध्वज’ में शुंग के वंशज अग्निमित्र की कहानी है.
सिंदूर की होली- यह नाटक समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके सम्मान के मुद्दे पर केंद्रित है. यह विवाह, प्रेम और सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़े सवालों को उठाता है. यह दर्शाता है कि कैसे समाज के नियम महिलाओं को सम्मान देने के बजाय उन्हें एक वस्तु की तरह देखते हैं.
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जेपी/जीकेटी
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