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हरियाणा चुनाव : 'आप' और 'कांग्रेस' में क्यों नहीं हुआ गठबंधन? जानें केजरीवाल के बयान के सियासी मायने

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चंडीगढ़, 22 सितंबर . चुनावी राज्य हरियाणा में राजनीतिक पार्टियों की सक्रियता बढ़ चुकी है. यहां कुछ महीने पहले प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा और और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच सीधा टक्कर माना जा रहा था, लेक‍िन अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ की सक्रियता ने मुकाबले को त्रिकोणीय मोड़ दे दिया है.

हाल ही में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित शराब नीति घोटाले मामले में कुछ शर्तों के साथ जमानत दे दिया. कुछ दिन पहले पार्टी के एक अन्य दिग्गज नेता मनीष सिसोदिया को भी जमानत मिल गई थी. जेल से बाहर आते ही अरविंद केजरीवाल ने कई बड़े स्टेप लिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना और चुनावी राज्य हरियाणा में भव्य रोड शो करना उसी चुनावी कदम का हिस्सा रहा. 20 सितंबर को रोड शो के दौरान केजरीवाल ने एक ऐसा बयान दिया, जो हरियाणा में चुनाव लड़ रहीं सभी राजनीतिक पार्टियों के अंदर चर्चा का विषय बना हुआ है.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को हरियाणा में रोड शो करके अपने चुनाव प्रचार का श्रीगणेश किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश में ‘आम आदमी पार्टी’ के बिना कोई सरकार नहीं बनेगी. पार्टी के दो दिग्गज नेताओं को जेल से मिली जमानत के कारण पहले ही ‘आप’ कार्यकर्ताओं के अंदर जोश और उत्साह देखने को मिल रहा था, वहीं उनके के इस बयान ने पार्टी समर्थकों के जोश में ईंधन डालने का काम कर दिया है.

जहां कुछ दिन पहले तक कांग्रेस के साथ ‘आप’ के गठबंधन की कयास लगाए जा रहे थे, वहीं अब साफ हो गया है कि यहां पर दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी. हरियाणा में कोई भी सरकार ‘आप’ के समर्थन के बिना नहीं बनेगी, केजरीवाल के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं.

केजरीवाल के बयान का पहला मतलब तो यह है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी ‘आप’ अब तीसरे राज्य हरियाणा में अपने फैलाव को लेकर काफी गंभीर है. हालांकि, पिछली बार पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक था और 2019 विधानसभा चुनाव में एक परसेंट से भी कम वोट मिले थे, लेकिन अगर इस बार पार्टी अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने में कामयाब हो जाती है और इसको चार से पांच प्रतिशत तक बढ़ा देती है और सात से आठ सीट निकालने में कामयाब होती है, तो 90 विधानसभा सीटों वाले राज्य में पार्टी किंग मेकर की भूमिका में आ जाएगी.

हरियाणा में बहुमत के लिए किसी भी दल को 46 सीटों की आवश्यकता है और ऐसे में किसी तीसरी पार्टी को पांच या उससे अध‍िक सीट म‍िलती है, तो किसी सरकार को गिराने और बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. हालांकि, हरियाणा को लेकर आम आदमी पार्टी की जो रणनीति है, उसमें साफ दिखता है कि पार्टी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मुखर है, वहीं कांग्रेस को लेकर चुप है. दूसरी तरफ हाल ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के लिए बनाए गए गठबंधन में कांग्रेस और ‘आप’ एक ही विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल थे. ऐसे में अभी भी चुनावी नतीजों के बाद दोनों दलों के साथ मिलने की प्रबल संभावना बनी हुई है.

एससीएच/

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