नई दिल्ली, 30 जून . 15 मार्च 2012, ये वो तारीख थी, जब उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया अध्याय जुड़ा. यूपी की कमान एक ऐसे शख्स के हाथों में आई, जो नई सोच और जोश से भरपूर था. उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे की कमान संभालना महज 38 साल के शख्स के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. इसके बावजूद युवा सोच से भरपूर इस नेता ने समाजवादी विकास का एक ऐसा एजेंडा पेश किया, जिसमें समाज को बदलने का माद्दा था. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बरसों को खुद को तपा कर राजनीतिक क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल किया.
अखिलेश यादव, जिन्हें प्यार से ‘टीपू’ भी कहा जाता है, वे भारतीय राजनीति में समाजवादी विचारधारा के एक प्रखर और प्रगतिशील नायक हैं. अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को न केवल संभाला, बल्कि उसे आधुनिकता का नया रंग दिया. टेक्नोक्रेट बनने का सपना देखने वाले इस युवा नेता को 2000 में परिस्थितियों ने सियासत के मैदान में उतारा और तब से उन्होंने युवाओं की उम्मीदों को आवाज दी.
अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और मालती देवी के घर हुआ. इटावा के एक छोटे से गांव सैफई में जन्मे अखिलेश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा धौलपुर मिलिट्री स्कूल, राजस्थान से प्राप्त की और बाद में मैसूर यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक किया. आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सिडनी यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया का रुख किया, जहां उन्होंने पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की.
कहा जाता है कि अखिलेश यादव सियासत में नहीं आना चाहते थे, लेकिन अखिलेश के सामने परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि पिता मुलायम सिंह यादव ने उन्हें साल 2000 में समाजवाद की कठिन सियासी डगर पर उतार दिया. न चाहते हुए भी अखिलेश यादव को पिता की बात मानकर राजनीति के मैदान में उतरना पड़ा. टेक्नोक्रेट बनने का सपना देखने वाले अखिलेश ने साल 2000 में कन्नौज से लोकसभा उपचुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. एक दशक तक उन्होंने संसद से लेकर सड़क तक सरकार और सिस्टम से युवाओं के लिए लड़ाई लड़ी. लंबे जुझारू संघर्ष की बदौलत वे युवाओं में एक उम्मीद बनकर उभरे.
जब युवाओं के बीच अखिलेश यादव नाम की उम्मीद ने अंगड़ाई ली तो सूबे की बागडोर महज 38 साल के इस युवा नेता के हाथों में आ गई. 2012 में, उन्होंने समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई और महज 38 साल की उम्र में वह उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. उन्होंने विकासवादी राजनीति के कामयाब समाजवादी मॉडल के जरिए 20 करोड़ की विशाल आबादी वाले सूबे में हाशिए पर खड़े अंतिम इनसान तक संसाधनों को पहुंचाने का काम किया.
हालांकि, जितनी चर्चा अखिलेश के काम को लेकर हुई, उतनी ही आलोचनाओं का सामना उन्हें करना पड़ा. अखिलेश के नेतृत्व वाली सरकार को साढ़े पांच मुख्यमंत्रियों वाली सरकार भी कहा जाता था. जब अखिलेश यादव 2012 में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे, तो शुरुआत में यह बात कही जाती थी कि असली ताकत अभी भी उनके पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव के पास है. कहा जाता है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में इन नेताओं की दखलअंदाजी बहुत ज्यादा थी, जिसकी वजह से सरकार के निर्णय पर इस लॉबी का गहरा असर दिखाई देता था.
इसके बावजूद अखिलेश ने अपनी युवा छवि और विकास-केंद्रित नीतियों के दम पर पार्टी को नई ऊर्जा दी, लेकिन जैसे-जैसे 2017 का विधानसभा चुनाव नजदीक आया तो पार्टी के भीतर पुरानी और नई पीढ़ी के बीच मतभेद उभरने लगे. अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे खनन मंत्री गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था. यह कदम उनकी स्वच्छ छवि को मजबूत करने की कोशिश थी, लेकिन यह मुलायम और शिवपाल के करीबी माने जाने वाले नेताओं के खिलाफ था, जिससे परिवार में तनाव बढ़ा. 2017 की जनवरी आते-आते सपा में दो गुट बन गए, जिसमें एक अखिलेश का और दूसरा मुलायम-शिवपाल का गुट था. दोनों गुटों ने पार्टी के चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ पर दावा किया. आखिर में चुनाव आयोग ने अखिलेश गुट को साइकिल चिह्न और आधिकारिक पार्टी की मान्यता दी और वह बाद में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए.
सियासत से इतर अखिलेश यादव की प्रेम कहानी भी किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह थी. अखिलेश और डिंपल यादव की प्रेम कहानी किसी रोमांटिक फिल्म से कम नहीं है. यह कहानी दोस्ती, प्यार, दूरी और परिवार की मंजूरी की जद्दोजहद से भरी है, जो अंत में एक खूबसूरत वैवाहिक बंधन में सबके सामने आई. अखिलेश और डिंपल की मुलाकात 90 के दशक में एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी. पहली मुलाकात में दोनों में दोस्ती हुई, जो धीरे-धीरे गहरी होती चली गई. कई साल तक चली अपनी दोस्ती को दोनों ने प्यार में बदल दिया. हालांकि, अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद उनके पिता मुलायम सिंह यादव थे. दोनों के परिवार इस रिश्ते के खिलाफ थे और मुलायम सिंह इस शादी से सहमत नहीं थे, लेकिन समाजवादी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद आखिरकार दोनों परिवार राजी हो गए. 24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल शादी के बंधन में बंधे.
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एफएम/केआर
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