नई दिल्ली, 25 अप्रैल . जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों पर हुए हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को लेकर अहम कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है. इसी सिलसिले में शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर एक उच्चस्तरीय बैठक चल रही है.
बैठक में अमित शाह के साथ केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर मौजूद हैं. इनके अलावा कई वरिष्ठ अधिकारी भी इस रणनीतिक बैठक में शामिल हैं.
सूत्रों के अनुसार, बैठक में सिंधु जल संधि को निलंबित करने को लेकर सरकार के फैसले के क्रियान्वयन पर विस्तृत रोडमैप पर चर्चा हो रही है.
इससे पहले जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा को एक पत्र लिखा. पत्र के माध्यम से उन्होंने औपचारिक रूप से पाकिस्तान को सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने के फैसले के बारे में जानकारी दी.
पत्र में कहा गया कि यह भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान सरकार को भेजे गए नोटिसों के संदर्भ में है, जिसमें संधि के अनुच्छेद 12 (3) के तहत 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन की मांग की गई थी. नोटिसों में बदलती परिस्थितियों, जैसे जनसंख्या में भारी वृद्धि, स्वच्छ ऊर्जा विकास की आवश्यकता, और जल बंटवारे से जुड़े मूलभूत अनुमानों में बदलाव का जिक्र किया गया है.
भारत का कहना है कि इन कारणों से संधि के विभिन्न अनुच्छेदों और अनुबंधों के तहत दायित्वों की पुन: समीक्षा जरूरी है. पत्र में पाकिस्तान पर संधि का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया गया है.
भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को लगातार बढ़ावा दिया है, जिसके कारण सुरक्षा अनिश्चितताओं ने भारत के संधि के तहत अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने में बाधा डाली है.
इसके अलावा, पाकिस्तान ने संधि के तहत वार्ता शुरू करने के भारत के अनुरोध का जवाब नहीं दिया, जो संधि का पूरी तरह से उल्लंघन है.
देवश्री मुखर्जी ने पत्र में स्पष्ट किया कि संधि को निलंबित करने का निर्णय भारत सरकार ने गहन विचार-विमर्श के बाद लिया है. भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखा जाएगा.
उल्लेखनीय है कि सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, जिसके तहत भारत ने तीन पूर्वी नदियों का जल उपयोग करने का अधिकार रखा था, जबकि तीन पश्चिमी नदियों का बहाव पाकिस्तान को दिया गया था.
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डीएससी/एकेजे
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