नई दिल्ली, 3 जुलाई . हाल ही में सरकार की ओर से लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (सीआईआई) को बढ़ाकर वित्त वर्ष 2025-26 और असेसमेंट ईयर 2026-27 के लिए 376 कर दिया गया है, जो कि इससे पिछले वर्ष 363 पर था. ऐसे में यह जनना जरूरी है कि आखिर लागत मुद्रास्फीति सूचकांक क्या होता है और क्यों कैपिटल गेन टैक्स कैलकुलेशन में इसे अहम माना जाता है.
लागत मुद्रास्फीति सूचकांक एक नंबर होता है, जिसे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की ओर से हर साल जारी किया जाता है. यह करदाताओं को लंबी अवधि के कैपिटल गेन टैक्स कैलकुलेशन करने से पहले मुद्रास्फीति के मुताबिक कुछ संपत्तियों के खरीद मूल्य को समायोजित करने में मदद करता है.
सीआईआई सुनिश्चित करता है कि टैक्स केवल आपके वास्तविक मुनाफे पर लगे, न कि मुद्रास्फीति की वजह से कीमत बढ़ने के कारण हुए मुनाफे पर.
सीआईआई की आवश्यकता किसी भी व्यक्ति को संपत्ति बिक्री के बाद हुए मुनाफे पर कैपिटल गेन टैक्स कैलकुलेट करने के समय पड़ती है.
उदाहरण के लिए अगर आपने 2002 में कोई प्रॉपर्टी 10,00,000 रुपए में खरीदी, उस समय सीआईआई 100 पर था.
वहीं, अब 2025-26 में सीआईआई बढ़कर 376 हो गया है. ऐसे में आपने संपत्ति को 50,00,000 रुपए में बेच दिया.
सीआईआई के तहत अब उस संपत्ति की लागत 10,00,000 रुपए × (376 / 100) = 37,60,000 रुपए होगी.
ऐसे में बिक्री पर आपको 50,00,000 रुपए -37,60,000 रुपए = 12,40,000 रुपए का कैपिटल गेन होगा और आपको इस राशि पर टैक्स का भुगतान करना होगा.
अगर आप सीआईआई के बिना कैलकुलेशन किया जाता, तो कैपिटल गेन 40,00,000 रुपए होगा.
सीआईआई के संबंध में समग्र नियमों में बदलाव हुए हैं. सरकार के कर सरलीकरण प्रयासों के हिस्से के रूप में, 2024 के वित्त अधिनियम ने कैपिटल गेन टैक्स के लिए नए नियम पेश किए थे.
अपडेट किए गए नियमों के तहत, सीआईआई के लाभ मुख्य रूप से 23 जुलाई, 2024 से पहले बेची गई संपत्तियों के लिए उपलब्ध होंगे.
इस तिथि के बाद की गई बिक्री के लिए, कोई निवासी व्यक्ति और हिंदू अविभाजित परिवार (एयूएफ) अभी भी सीआईआई लाभ का दावा कर सकते हैं, लेकिन यह केवल तभी लागू होगा, जब संपत्ति 23 जुलाई, 2024 से पहले अर्जित की गई हो.
ऐसे मामलों में करदाताओं को दो विकल्प दिए गए हैं. पहला, वे सीआईआई के बिना नई फ्लैट 12.5 प्रतिशत दर पर कर का भुगतान कर सकते हैं. दूसरा- सीआईआई के साथ 20 प्रतिशत दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर का भुगतान करना चुन सकते हैं.
हालांकि, यह विकल्प अनिवासी भारतीयों (एनआरआई), कंपनियों के लिए उपलब्ध नहीं है. उन्हें अब नई फ्लैट-रेट प्रणाली का पालन करना होगा.
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एबीएस/
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