नई दिल्ली, 4 मई . केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रविवार को नई दिल्ली में 1008 संस्कृत संभाषण शिविरों के सामूहिक समापन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती ने 1008 संस्कृत संभाषण शिविरों के आयोजन का एक बहुत साहसिक काम किया है. संस्कृत के ह्रास की शुरुआत गुलामी के कालखंड से पहले ही हो गई थी और इसके उत्थान में भी समय लगेगा.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज देश में संस्कृत के उत्थान के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है. चाहे सरकार हो, जनता हो या सोच हो, ये सभी संस्कृत और संस्कृत के उत्थान के प्रति कटिबद्ध और वचनबद्ध हैं.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संस्कृत भारती 1981 से संस्कृत में उपलब्ध ज्ञान के भंडार को विश्व के सामने रखने, लाखों लोगों को संस्कृत बोलने और संस्कृत में प्रशिक्षित करने का काम कर रही है. दुनिया के कई महान विचारकों ने संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में स्वीकार किया है. हमें अब संस्कृत के ह्रास के इतिहास को स्मरण करने की जगह संस्कृत के उत्थान के लिए काम करना चाहिए. पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में एक ऐसी सरकार है, जो संस्कृत के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं लाई है.
उन्होंने कहा कि अष्टादशी योजना के तहत लगभग 18 परियोजनाओं को लागू किया गया है, दुर्लभ संस्कृत पुस्तकों के प्रकाशन, थोक खरीद और उन्हें दोबारा प्रिंट करने के लिए भी भारत सरकार वित्तीय सहायता देती है. प्रख्यात संस्कृत पंडितों की सम्मान राशि में भी वृद्धि की गई है. मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति में इंडियन नॉलेज सिस्टम पर फोकस किया गया है और इसका बहुत बड़ा वर्टिकल संस्कृत है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में अपग्रेड किया गया है. सहस्त्र चूड़ामणि योजना के माध्यम से सेवानिवृत्त हो चुके प्रख्यात संस्कृत विद्वानों को अध्यापन के लिए नियुक्त करने का काम भी केंद्र सरकार ने किया है. मोदी सरकार ने सबसे बड़ा काम, हमारी प्राकृत और संस्कृत में बिखरी पांडुलिपियों को एकत्रित करने के लिए लगभग 500 करोड़ के बजट से एक अभियान चलाने का किया है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपए के आधार कोष के साथ ज्ञान भारतम मिशन की शुरुआत की है और हर बजट में इसके लिए एक निश्चित राशि आवंटित की जाएगी. उन्होंने बताया कि अब तक 52 लाख से अधिक पांडुलिपियों का डॉक्यूमेंटेशन, साढ़े तीन लाख पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया गया है और ‘नमामि डॉट गॉव डॉट इन’ पर 1,37,000 पांडुलिपियां उपलब्ध कराई गई हैं. दुर्लभ पांडुलिपियों का अनुवाद और उनके संरक्षण के लिए हर विषय और भाषा के विद्वानों की टीम गठित की गई है.
उन्होंने बताया कि आज यहां 1008 संस्कृत संभाषण शिविरों का समापन हुआ है. इसके तहत 23 अप्रैल से लेकर 10 दिन तक 17 हजार से ज्यादा लोगों का संस्कृत से परिचय हुआ और उन्होंने संस्कृत बोलने का अभ्यास भी किया, जिससे लोगों की रुचि संस्कृत में बढ़ेगी.
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एसके/एबीएम
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