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आखिर रेलवे कैसे करता है आपके सीट की बुकिंग, खाली जगह होते हुए भी आपको क्यों भेज दिया जाता है दूसरी जगह ˠ

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अगर हम रेलवे की बात करे तो इसमें कोई दोराय नहीं कि वर्तमान समय में रेलवे में सुरक्षा का काफी ज्यादा ध्यान रखा जाने लगा है। जी हां तभी तो थिएटर हॉल से ज्यादा रेलवे स्टेशन को लेकर नियम लागू किए जाते है। वो इसलिए क्योंकि थिएटर एक हॉल है, जब कि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है। इसलिए ट्रेनों की सुरक्षा की चिंता ज्यादा की जाती है। हालांकि आज हम आपको ये बताना चाहते है कि आखिर रेलवे कैसे करता है सीट की बुकिंग और क्यों खाली सीट होने के बावजूद भी वह आपको दूसरी जगह भेज देता है।

रेलवे कैसे करता है आपके सीट की बुकिंग :

बता दे कि भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह इस तरह से टिकट बुक करता है, जिससे ट्रेन में समान रूप से लोड वितरित किया जा सके। जैसे कि S1, S2, S3 और S10 नंबर वाली ट्रेन में स्लीपर क्लास के कोच है और उसके हर कोच में 72 सीटें है। ऐसे में जब कोई पहली बार टिकट बुक करता है तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करेगा, जैसे कि S5 बीच की सीट 30-40 के बीच की संख्या में रेलवे पहले ऊपरी वाले की तुलना में निचली बर्थ को भरता है ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके।

बहरहाल यह सॉफ्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है कि सभी कोचों में समान यात्री वितरण हो सके और सीटें बीच की सीटों से शुरू हो कर गेट के पास की सीटों तक अर्थात 1-2 या 71-72 से निचली बर्थ से ऊपरी बर्थ तक भर जाती है। ऐसे में रेलवे बस एक उचित संतुलन सुनिश्चित करना चाहता है ताकि हर कोच में समान भार वितरण किया जा सके। यही वजह है कि जब आप आखिर में टिकट बुक करते है तो आपको हमेशा एक ऊपरी बर्थ और एक सीट लगभग 2-3 या 70 के आसपास ही आवंटित की जाती है। वो भी तब जब आप किसी ऐसे व्यक्ति की सीट न ले रहे हो, जिसने अपनी सीट रद्द कर दी हो।

तकनीकी रूप से करता है हर कार्य :

गौरतलब है कि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है जो रेलवे पर लगभग सौ किलोमीटर घंटा की गति से चलती है। यही वजह है कि ट्रेन में बहुत सारे बल और यांत्रिकी काम करते है। अब जरा सोचिए कि अगर S1, S2 और S3 पूरी तरह से भरे हुए हो तथा ऐसे में S5, S6 पूरी तरह से खाली हो, जब बाकी आंशिक रूप से भरे हुए हो। तो इस दौरान जब ट्रेन एक मोड लेती है तो कुछ डिब्बे अधिकतम का सामना करते है और कुछ न्यूनतम का सामना करते है। ऐसे में ट्रेन के पटरी से उतरने की संभावना अधिक हो जाती है।

बता दे कि यह एक बहुत ही तकनीकी पहलू है और इसलिए जब ब्रेक लगाएं जाते है तो कोच के वजन में भारी अंतर होने के कारण हर कोच अलग अलग ब्रेकिंग फोर्स से काम करता है। इसलिए ट्रेन की स्थिरता हमेशा एक मुद्दा बन जाती है। ये खबर आप हिमाचली खबर में पढ़ रहे हैं। । बहरहाल अब तो आप समझ गए होंगे कि आखिर रेलवे कैसे करता है आपके सीटों की बुकिंग और इसे कितनी बातों को ध्यान में रख कर सीट बुक करनी पड़ती है। यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो जो लोग रेलवे को सीटों की वजह से दोष देते है उन्हें यह जानकारी जरुर पढ़नी चाहिए और हम उम्मीद करते है कि आपको यह जानकारी जरुर पसंद आई होगी।

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