लाजवंती का परिचय
लाजवंती के औषधीय गुण
पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि छुईमुई की जड़ और पत्तों का चूर्ण दूध में मिलाकर सेवन करने से बवासीर और भगंदर में राहत मिलती है।
खांसी के लिए, लाजवंती की जड़ के टुकड़ों की माला पहनने से गले में आराम मिलता है।
मधुमेह के रोगियों के लिए, छुईमुई की 100 ग्राम पत्तियों का काढ़ा फायदेमंद होता है।
स्तनों के ढीलापन को दूर करने के लिए, छुईमुई और अश्वगंधा की जड़ों का लेप किया जा सकता है।
खूनी दस्त के लिए, छुईमुई की जड़ों का चूर्ण दही के साथ देने से लाभ होता है।
इस पौधे में एंटीमायक्रोबियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो त्वचा संक्रमण में मदद करते हैं।
टांसिल्स की समस्या में, इसकी पत्तियों का लेप गले पर लगाने से राहत मिलती है।
यदि गर्भाशय बाहर आता है, तो पत्तियों का लेप उस स्थान पर करने से लाभ होता है।
नपुंसकता के लिए, छुईमुई की जड़ें और इलायची का मिश्रण दूध में मिलाकर सेवन करना फायदेमंद है।
हृदय या किडनी के आकार को कम करने के लिए, इस पौधे के सभी अंगों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
पेशाब की अधिकता को रोकने के लिए, लाजवंती के पत्तों का लेप नाभि के नीचे करने से लाभ होता है।
लाजवंती, जिसे वैज्ञानिक रूप से माईमोसा पुदिका के नाम से जाना जाता है, नमी वाले क्षेत्रों में अधिकतर पाया जाता है। यह पौधा भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है और इसके छोटे-छोटे पौधों में कई शाखाएँ होती हैं। इसके पत्ते छूने पर सिकुड़ जाते हैं, जिससे इसे लजौली नाम से भी जाना जाता है। इसके गुलाबी फूल बेहद आकर्षक होते हैं और इसे छुईमुई भी कहा जाता है।
लाजवंती के औषधीय गुण
➡ औषधीय उपयोग:
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