भोपाल: मध्य प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती से संबंधित मामले में राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका उस समय दायर की गई थी जब राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाया जो परीक्षा में सफल हुए थे।
मामले की पृष्ठभूमि यह है कि कुछ अभ्यर्थियों ने भर्ती प्रक्रिया में चयन को लेकर विवाद उठाया था। उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वे भर्ती में सफल रहे, लेकिन 'लाइव रोजगार पंजीकरण प्रमाणपत्र' की कमी के कारण उन्हें चयन सूची से बाहर कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने इन अभ्यर्थियों के पक्ष में निर्णय देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उनके मामलों पर पुनर्विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहराया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि उच्च न्यायालय का निर्णय उचित है और इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।
इस फैसले से उन अभ्यर्थियों को राहत मिली है, जिन्हें रोजगार पंजीकरण प्रमाणपत्र की कमी के कारण चयन से बाहर किया गया था। अब राज्य सरकार को इन मामलों पर पुनर्विचार करना होगा और नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।
अधिवक्ता दिनेश सिंह चौहान ने उच्च न्यायालय में कहा था कि सरकारी भर्तियों में रोजगार पंजीकरण की वैधता अनिवार्य नहीं है, और यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई पूर्व निर्णयों में कहा है कि सार्वजनिक नियुक्तियों के लिए रोजगार पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
उच्च न्यायालय ने दो हफ्ते में पुलिस कांस्टेबल भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों को जॉइनिंग देने का आदेश दिया था। हालांकि, राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को मान्यता देते हुए सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। अब उम्मीद है कि उच्च न्यायालय का आदेश मान लिया जाएगा और चयनित अभ्यर्थियों की जॉइनिंग जल्द ही होगी।
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