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जीवंत हुआ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का गवाह रहा कुआं

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बलिया, 18 जून (हि.स.)। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी रहे जिले के मुख्य कोषागार परिसर में एक ऐसा कुआं भी था जिसका पानी पीकर क्रांतिकारी आजादी की लड़ाई को धार देते थे। समय के साथ उपेक्षा का शिकार यह कुआं दम तोड़ चुका था। मगर मुख्य कोषाधिकारी आनंद दूबे ने अपने प्रयासों से न सिर्फ इस कुएं को जीवंत कर दिया है, बल्कि इसके आसपास के समूचे परिसर को हरा-भरा बना दिया है।

जिला मुख्यालय स्थित ट्रेजरी कार्यालय से जिले भर के पेंशनरों को पेंशन मिलती है। यहां रोजाना सैकड़ों बुजुर्ग पेंशनर प्रतिदिन आते हैं। उनके कार्य में विलम्ब होने पर बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं थी। ट्रेजरी के सामने ही न्यायेश्वर मंदिर है। जिससे सटे ट्रेजरी का एक हिस्सा वीरान पड़ा था। जिसमें झाड़-झंखाड़ उग आए थे। इसी बीच मुख्य कोषाधिकारी बनकर आए आनंद दूबे की इस वीरान पड़े हिस्से पर नजर पड़ी। उन्होंने इसे साफ कराया तो एक कुआं दिखा, जो लगभग आधा भर गया था। उन्होंने पता किया तो इस कुएं का क्रन्तिकारी इतिहास निकला।

1913 में प्रतिष्ठित व्यवसायी महादेव प्रसाद के द्वारा निर्मित कराए इस कुएं के पास बैठकर ही चित्तू पाण्डेय और पंडित महानंद मिश्र जैसे क्रांतिकारी पानी पीते थे और अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला डाली। कुएं का क्रांतिकारी इतिहास पता लगने पर सीटीओ आनंद दूबे ने इसके जीर्णोद्धार का संकल्प लिया। नगर पालिका के सहयोग से इसमें जमा मलबे को निकलवाया। जिसके बाद कुएं में पानी निकल आया। उन्होंने बताया कि इसका नाम क्रांति कुआं रखा जाएगा, ताकि यहां आने वाले लोगों को जिले का क्रांतिकारी इतिहास याद रहे।

सीटीओ श्री दूबे ने कुएं के आसपास के परिसर की सफाई कराकर रुद्राक्ष, बरगद, नीम, कदम जैसे पौधे लगवाए हैं। पेंशनरों के बैठने के लिए स्थान बनवा रहे हैं। इस पूरे परिसर को आनंद उपवन नाम दिया गया है। बुधवार को ट्रेजरी में अपने कामकाज के लिए आए पेंशनरों ने आनंद उपवन का भ्रमण कर सीटीओ आनंद दूबे की जमकर सराहना की। आनंद दूबे ने बताया कि दूर दराज से आने वाले पेंशनरों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। बुजुर्ग पेंशनर घंटों खड़े रहें, यह काफी ख़राब लगता था। इसी वजह से बेकार पड़ी जमीन का सदुपयोग किया गया है। जल्द ही इस आनंद उपवन का लोकार्पण कराया जाएगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / नीतू तिवारी

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