हाल ही में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज की टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने बलात्कार की शिकार महिला के बारे में यह कहा था कि उसने खुद ही “मुसीबत को आमंत्रित किया”। यह टिप्पणी उस समय की गई थी जब आरोपी को बलात्कार के मामले में जमानत दी जा रही थी। घटना दिल्ली के हौज खास इलाके के एक बार में हुई थी, जहां पीड़िता ने एक व्यक्ति से मुलाकात की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस असंवेदनशील टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गलत और भयावह है और यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के मामले में सतर्कता बरतने की जरूरत है।
कानूनी प्रक्रिया और जमानत पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
यह मामला दिसंबर 2024 से चल रहा था, जब आरोपी को महिला से बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत दी थी और इस दौरान जज संजय कुमार सिंह ने यह टिप्पणी की थी कि पीड़िता कुछ हद तक अपनी असहमति के लिए जिम्मेदार थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि न्यायिक संवेदनशीलता की आवश्यकता है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जमानत देना जज का विवेकाधिकार हो सकता है, लेकिन किसी आरोपी के पक्ष में टिप्पणी करते हुए पीड़िता के खिलाफ बयान देना अनुचित है।
सॉलिसीटर जनरल का बयान और मीडिया की नजर
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस मामले में कहा कि न्यायालय को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सार्वजनिक रूप से ऐसे बयान कैसे परिलक्षित होते हैं। उन्होंने कहा, “न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना चाहिए कि न्याय किया जा रहा है।” सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की पहले की टिप्पणी के संदर्भ में अपनी आपत्ति दर्ज कराई, जिसमें यह कहा गया था कि कुछ कृत्य बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के रूप में नहीं माने जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार और मामलों की अगली सुनवाई
इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशों को स्थगित कर दिया है, यह कहते हुए कि इसमें “संवेदनशीलता की कमी” है और भविष्य में इस तरह की टिप्पणियां करने में अधिक सावधानी बरतने का आग्रह किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया था, बल्कि यह एक बड़े मुद्दे का संकेत था। इस मामले की सुनवाई अगले महीने फिर से होगी।
यह मामला यह दर्शाता है कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय और टिप्पणियां सहानुभूति और संवेदनशीलता के साथ की जाएं, विशेष रूप से उन मामलों में जो यौन हिंसा और उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के होते हैं।
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