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क्या है थायराइड का असली कारण? जानें लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

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थायराइड एक तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है, जो खासतौर पर महिलाओं में अधिक पाई जाती है। यह बीमारी थायराइड ग्रंथि की कार्यक्षमता में गड़बड़ी के कारण होती है, जिससे शरीर के कई जरूरी कार्य प्रभावित होते हैं। आइए जानें इसके पीछे के कारण, इसके लक्षण और आयुर्वेद में उपलब्ध प्राकृतिक उपचार।

थायराइड क्या है?

थायराइड एक तितली के आकार की ग्रंथि होती है जो गर्दन के सामने स्थित होती है। यह थायरॉक्सिन (T4) और ट्रायआयोडोथायरोनिन (T3) नामक हार्मोन बनाती है, जो शरीर की मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।

थायराइड के प्रकार:

  • हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism) – हार्मोन की कमी

  • हाइपरथायराइडिज्म (Hyperthyroidism) – हार्मोन की अधिकता

  • थायराइड के प्रमुख कारण:

    • आयोडीन की कमी या अधिकता

    • आनुवंशिक कारण

    • ऑटोइम्यून विकार (जैसे हाशिमोटो या ग्रेव्स डिज़ीज)

    • तनाव और अनियमित जीवनशैली

    • हार्मोनल असंतुलन

    थायराइड के लक्षण:

    • वजन का अचानक बढ़ना या घटना

    • अत्यधिक थकान

    • बालों का झड़ना

    • त्वचा का सूखापन

    • मूड में चिड़चिड़ापन या डिप्रेशन

    • मासिक धर्म की अनियमितता (महिलाओं में)

    • दिल की धड़कन तेज या धीमी होना

    • नींद की समस्या

    आयुर्वेदिक उपचार:

    1. त्रिकटु चूर्ण:
    त्रिकटु (सौंठ, काली मिर्च और पिपली) पाचन और मेटाबॉलिज्म को सुधारता है, जो थायराइड नियंत्रण में सहायक हो सकता है।

    2. अश्वगंधा:
    यह एक शक्तिशाली एडाप्टोजेन है जो थायराइड हार्मोन के संतुलन में मदद करता है, खासकर हाइपोथायराइड में।

    3. ब्राह्मी और शंखपुष्पी:
    ये मानसिक तनाव को कम करते हैं जो थायराइड का एक प्रमुख कारण हो सकता है।

    4. आयोडीन युक्त प्राकृतिक आहार:
    समुद्री सब्जियां, सेंधा नमक और दही आयोडीन के अच्छे स्रोत हैं।

    5. योग और प्राणायाम:
    विशेषकर सर्वांगासन, मत्स्यासन, और उज्जायी प्राणायाम थायराइड ग्रंथि को सक्रिय रखते हैं।

    जीवनशैली संबंधी सुझाव:

    • नियमित व्यायाम और योग करें

    • प्रोसेस्ड फूड और कैफीन से परहेज करें

    • तनाव कम करने की तकनीकें अपनाएं

    • नियमित नींद और समय पर भोजन करें

    थायराइड आज के दौर में एक आम लेकिन अनदेखी की जाने वाली समस्या है। यदि समय रहते लक्षणों को पहचाना जाए और आयुर्वेदिक उपायों को जीवनशैली में शामिल किया जाए, तो इसे प्राकृतिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

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