जंगल में घूम रहे इस बाघ को ये आसान शिकार लगा होगा. उसके सामने ही एक मादा भालू और उसका शावक दिख रहा था.
ये दोनों देश के एक सफ़ारी लॉज के पास मौजूद पानी के स्रोत से दूर जा रहे थे.
बाघ झाड़ियों में दोनों का पीछा करते हुए हमले की तैयारी करता है. लेकिन तभी चीज़ें अप्रत्याशित मोड़ ले लेती हैं.
बाघ के पैंतरे से डर कर ठिठकने या भागने के बजाय मादा भालू पूरी तरह चौंकन्नी होकर बाघ पर हमला कर देती है.
बाघ उठकर जवाबी हमला करता है और फिर शुरू होती है 45 मिनट लंबी भयंकर लड़ाई. दोनों एक-दूसरे को दांत और पंजों से नोचते-खसोटते रहते हैं.
दुनिया के सबसे ख़तरनाक भालूभारत में पाए जाने वाले ये भालू (स्लॉथ बियर या भारतीय भालू) दुनिया के सबसे ख़तरनाक भालू माने जाते हैं.
भारत में जैसे-जैसे उनके रहने की जगह सिकुड़ती जा रही है, यहां के जंगलों में रह रहे समुदाय उनके साथ तालमेल बिठाकर रहने के नए तरीक़े ईजाद कर रहे हैं.
स्लॉथ भालू (जिनका नाम उनके लंबे पंजों और दांतों के कारण पड़ा, क्योंकि यह स्लॉथ प्राणी से मिलते-जुलते हैं) भारत, नेपाल और श्रीलंका में पाए जाते हैं और इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे आक्रामक जानवरों में गिना जाता है.
ये जिस किसी को भी ख़तरा मानते हैं, चाहे वह बाघ हो या इंसान, उस पर अचानक और तेज़ी से हमला कर सकते हैं.
1950 से 2019 के बीच दुनिया भर में बड़े मांसाहारी जानवरों की ओर से इंसानों पर हुए हमलों के एक अध्ययन में पाया गया कि सबसे ज़्यादा हमले भालुओं के हुए.
हमलावर जानवरों में टाइगर, शेर, भेड़िये और अन्य भालू भी शामिल थे.
इस दौरान भालुओं के इंसानों पर 1,337 हमले दर्ज हुए, जबकि बाघों के 1,047, भेड़ियों के 414 और ध्रुवीय भालुओं के सिर्फ़ 23 हमले दर्ज किए गए.
हालांकि, बाघ, शेर और बिल्ली प्रजाति के अन्य बड़े जानवरों के हमले ज़्यादा घातक होते हैं.
इनमें लगभग 65 फ़ीसदी मामलों में इंसान की मौत हो जाती है, जबकि भालुओं (स्लॉथ भालू) के हमलों में यह दर लगभग 8 फ़ीसदी है.
लेकिन ये भालू भी कई ख़तरों का सामना कर रहे हैं, जिनमें इनके रहने की जगह का सिकुड़ना और उन पर इंसानों के हमले शामिल हैं.
इनकी संख्या लगातार घट रही है और इन्हें उस श्रेणी में रखा जा सकता है जिनके विलुप्त होने का ख़तरा है.
अनुमान है कि पूरी दुनिया में इनकी संख्या 20 हज़ार से भी कम रह गई होगी.
यह समस्या सिर्फ भालुओं की नहीं है. ये भालू हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं. ये फलों के बीज फैलाते हैं और दीमक की आबादी को नियंत्रित करते हैं.
शोध से पता चलता है कि इन भालुओं के व्यवहार को समझना इंसानों और इन जानवरों- दोनों की सुरक्षा में मददगार हो सकता है, ख़ासकर यह समझना कि ये भालू किसी ख़तरे पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं.
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इन भालुओं की आक्रामकता हैरान कर सकती है क्योंकि उनका आहार मुख्य रूप से फल, दीमक और चींटियां हैं और वे स्तनधारियों का शिकार नहीं करते.
लेकिन 2024 की एक स्टडी के मुताबिक़ भालुओं की इस प्रजाति ने संभवतः यह विस्फोटक रणनीति बाघ जैसे मांसाहारी शिकारी जीवों के बीच जीवित बचे रहने के लिए विकसित की है.
स्टडी के लेखकों के मुताबिक़, "किसी संभावित ख़तरे की ओर तेज़ी से दौड़कर हमला करना इन भालुओं के लिए सैकड़ों हज़ार और शायद लाखों सालों से कारगर साबित हुआ है."
शोधकर्ताओं ने इन भालुओं और बाघों के बीच हुए 43 मुक़ाबलों का विश्लेषण किया है. उन्होंने पाया है कि भालुओं की ये रणनीति कारगर होती है. ज़्यादातर मामलों में दोनों पक्ष पीछे हट जाते हैं और बाघ लगभग बिना चोट के भाग खड़ा होता है.
सफ़ारी लॉज के पास हुई इस लड़ाई में भी ये भालू और नर बाघ ताक़त के मामले में काफ़ी हद तक बराबरी के प्रतिद्वंद्वी साबित हुए. जिस नेचुरलिस्ट ने ये मुठभेड़ देखी थी उसका यही कहना था.
महाराष्ट्र के ताडोबा नेशनल पार्क स्थित बैम्बू फ़ॉरेस्ट सफ़ारी लॉज के मुख्य नेचुरलिस्ट और मैनेजर अक्षय कुमार ने इस घटना का वीडियो शूट किया था.
उनका कहना है, ''बाघ बहुत ताक़तवर होते हैं लेकिन लंबे समय तक दमखम बनाए रखने के मामले में वे उतने मज़बूत साबित नहीं होते. भालू का शरीर बेहद रोएंदार होता है, इसलिए बाघ को उसके गले पर सही पकड़ नहीं मिल पाई.''
अंत तक आते-आते नर बाघ पूरी तरह थक चुका था.
अक्षय कुमार कहते हैं, "वह पानी के तालाब में आकर बैठ गया. थकान से चूर यह बाघ वहां दो घंटे तक बैठा रहा, जबकि मादा भालू वहां से निकल गई."
अगले कुछ दिनों में उन्होंने दोनों को आमने-सामने नहीं देखा. दोनों अलग-अलग घूम रहे थे. लेकिन ठीक लग रहे थे.
लेकिन इंसानों के लिए ऐसी मुठभेड़ का नतीजा कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है.
सबसे पहले तो बाघों के उलट इंसान भालुओं से तेज़ नहीं दौड़ सकते.
भालुओं के हमले इंसानों के लिए बेहद घातक हो सकते हैं क्योंकि ये ज़्यादातर सिर पर हमला करते हैं. उनके लंबे, नुकीले पंजे इंसानों का चेहरा फाड़ सकते हैं और आंखें निकाल सकते हैं.
जूनागढ़ में बीकेएनएम यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर वाइल्डलाइफ़ रिसर्च के डायरेक्टर निशिथ धरैया कहते हैं, ''इंसान और भालुओं के संघर्ष से जुड़े कई मामले हैं. ज़्यादातर मामलों में ये भालू इंसानों पर हमला करते हैं."
धरैया कहते हैं कि जवाबी हमलों में इन भालुओं के मारे जाने के भी ख़तरे रहते हैं.
भालू और इंसानों के बीच मुठभेड़ बढ़ रही हैं. भालुओं के प्राकृतिक ठिकानों में गिरावट से यह स्थिति और गंभीर हो गई है.
धरैया के मुताबिक़ इन टकरावों से बचा जा सकता है. यह तब हो सकता है कि जब यह समझने की कोशिश की जाए कि ये भालू कैसे, क्यों और कब हमला करते हैं.
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धरैया कहते हैं कि ज़रूरी नहीं कि ये भालू स्वभाव से आक्रामक हों या इंसानों को मारने का इरादा रखते हों.
अगर वे इंसानों के लिए घातक माने जाते हैं तो यह उनकी रक्षा रणनीति का हिस्सा है. दरअसल, यह इस रणनीति का अनचाहा नतीजा है, जिसके तहत दुश्मन को डराकर भगा देना उद्देश्य होता है.
उदाहरण के लिए, जब कोई मादा भालू अपने शावकों के साथ ख़तरा महसूस करती है तो वह अपने दुश्मन से बड़ा दिखने की कोशिश करती है, चाहे यह दुश्मन बाघ, तेंदुआ, भेड़िया या इंसान ही क्यों न हो.
वह कहते हैं, ''ऐसे में मादा भालू अपने पिछले पैरों पर खड़ी हो जाती है और फिर अगले पैरों से हमला कर देती है. इनमें लंबे नाखून होते हैं, जो चींटियां खोदने जैसे भोजन खोजने की उसकी सामान्य आदत में भी काम आते हैं.''
बाघों के साथ लड़ाई में खड़े हो जाना भालुओं को अहम बढ़त दिला सकता है. भालू और बाघ की लड़ाइयों के वीडियो का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग सभी स्लॉथ भालू तब खड़े हो गए थे जब बाघ पास आ गया था. एकमात्र स्लॉथ भालू जो खड़ा नहीं हुआ था, वह मारा गया था.
इसके उलट, किसी भी मुठभेड़ में कोई बाघ गंभीर रूप से घायल या मारा नहीं गया. शायद इसलिए कि वे स्लॉथ भालुओं से तेज़ होते हैं और बस दौड़कर दूर निकल सकते हैं.
लेकिन इंसानों के लिए स्लॉथ भालू से आगे निकल भागना आमतौर पर संभव नहीं है.
इंसान न केवल बाघों से बहुत धीमे होते हैं, बल्कि हमलों से बचे लोगों की रिपोर्ट से पता चलता है कि स्लॉथ भालू कभी-कभी अचानक ही, बिना दिखे, इंसानों की ओर दौड़ पड़ते हैं.
धरैया कहते हैं, ''अगर खड़ा भालू किसी व्यक्ति पर पंजा मारता है तो उसके अगले पैर और पंजे सीधे इंसान के चेहरे से टकराते हैं. यह हमारे शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है.''
वह कहते हैं, ''इसी वजह से स्लॉथ भालू के हमले घातक होते हैं. भालू परिवार में उन्हें आक्रामक भालू के तौर पर जाना जाता है. वास्तव में वे दूसरे भालुओं से ज़्यादा आक्रामक नहीं होते, लेकिन उनके हमले का तरीक़ा ज़्यादा घातक होता है.''
ऐसे घातक हमलों का नतीजा बेहद भयावह हो सकता है. इससे आप स्थायी तौर पर घायल हो सकते हैं- यानी आपको ऐसी चोटें लग सकती हैं जो जीवन भर आपके साथ रहें.
2020 में श्रीलंका में 50 वर्षीय एक आदमी जंगल में इमली चुन रहा था. उसी दौरान एक स्लॉथ भालू ने उस पर हमला करते हुए उसके चेहरे की चमड़ी फाड़ डाली.
इसी तरह के एक मामले में, 2023 में श्रीलंका में 43 वर्षीय एक चरवाहे का चेहरा भी स्लॉथ भालू ने बुरी तरह नोच दिया. दोनों ही मामलों में घायलों की आंखों की रोशनी चली गई.
ओडिशा में 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक व्यक्ति पर स्लॉथ भालू ने इतना भयानक हमला किया कि उसके मस्तिष्क का एक हिस्सा बाहर निकल आया.
ऐसे हमलों के शिकार बचे लोगों का कहना था कि उनके पास कुछ कर पाने का समय ही नहीं था.
एक और शख़्स ने बताया, ''यह हमला इतनी जल्दी हुआ कि मैंने भालू को आते देखा ही नहीं. बस धूल, उड़ते पत्ते, और भालू की गुर्राहट और चीख़ें सुनाई पड़ रही थीं.''
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धरैया और उनकी टीम मध्य गुजरात के इलाके में अध्ययन करती है, जहां की आदिवासी आबादी के सामने ऐसे अनचाहे टकराव का जोखिम बना रहता है.
वह कहते हैं, ''इनमें से ज़्यादातर लोग जंगल में रहने वाले हैं. वे जंगल में लकड़ी, इमारती लकड़ी, फल, शहद और औषधीय पौधे इकट्ठा करने जाते हैं. इस दौरान उनका भालुओं से सामना हो जाता है, जो इन्हीं पौधों और शहद पर निर्भर रहते हैं.''
ख़ास तौर पर गांव वाले जंगल में महुआ के फूल इकट्ठा करने जाते हैं, जिनसे वे एक पारंपरिक शराब बनाते हैं.
धरैया बताते हैं, ''उन्हें यह फूल सुबह-सुबह इकट्ठा करना होता है. उसी समय स्लॉथ भालू भी भोजन की तलाश में होते हैं. यही फूल स्लॉथ भालू का भी भोजन है. इसलिए वह भी उसी इलाके में आते हैं. सुबह के समय कम रोशनी होने के कारण इंसान और भालू के टकराव की संभावना बढ़ जाती है.''
मध्य गुजरात की इन बस्तियों पर किए गए एक सर्वे में ज़्यादातर लोगों ने कहा कि स्लॉथ भालू मानव जीवन के लिए गंभीर ख़तरा हैं.
इस वजह से भालुओं के संरक्षण को लेकर उनका समर्थन बहुत कम है.
धरैया और उनके सहयोगी डब्ल्यूसीबी रिसर्च फ़ाउंडेशन में इस सोच को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
वे हमलों का विश्लेषण करते हैं और बचे हुए लोगों का इंटरव्यू लेकर इसका कारण समझने की कोशिश करते हैं.
फिर उन जानकारियों का इस्तेमाल करके स्थानीय लोगों को भालुओं से बचने में मदद करते हैं.
इन उपायों में स्थानीय लोगों को भालुओं से सुरक्षा के बारे में बताना शामिल है- जैसे चलते समय शोर करना ताकि अचानक भालू से टकराने की संभावना कम हो.
विशेषज्ञ खेतों के किनारों और सड़कों के पास की घनी झाड़ियों और झाड़ को साफ़ करने की भी सलाह देते हैं, ताकि भालू और इंसान एक-दूसरे को आसानी से देख और बच सकें.
वे बस्तियों के पास शौचालय बनाने की भी सलाह देते हैं, ताकि लोगों को अकेले जंगल में कम जाना पड़े.
भालू भगाने वाली 'घंटी काठी'शोधकर्ताओं ने एक खास एंटी-स्लॉथ-भालू स्टिक भी बनाई है, जिसमें घंटियां और थोड़े कम नुकीले कांटे लगे होते हैं.
इसे 'घंटी काठी' कहा जाता है. धरैया बताते हैं कि इस डंडे का मक़सद भालुओं को डराना और टकराव से बचना है.
वह कहते हैं कि उन्होंने और उनकी टीम ने ऐसे 500 डंडे आदिवासी समुदायों और वन विभाग के उन कर्मचारियों को बांटे हैं, जो उन स्थानीय जंगलों में गश्त करते हैं जहां स्लॉथ भालू रहते हैं.
धरैया बताते हैं, ''लोगों का कहना है कि यह डंडा न केवल भालुओं को, बल्कि जंगली सूअर और तेंदुए जैसे अन्य जानवरों को भी दूर रखने में मददगार है. यह उन्हें डरा देता है.''
उन्हें उम्मीद है कि जैसे-जैसे लोग यह जानेंगे कि स्लॉथ भालू की मौजूदगी में कैसे सुरक्षित रहा जाए, वे इसे ऐसा जानवर मानने लगेंगे जिसे संरक्षित किया जा सकता है.
इन भालुओं पर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि इनके बारे में वन विभाग के फील्ड स्टाफ की राय आम ग्रामीणों की तुलना में ज़्यादा सकारात्मक थी.
धरैया कहते हैं, "स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप का जानवर है, इसलिए इसे संरक्षित करना हमारी ज़िम्मेदारी है. स्लॉथ भालू जंगल के इंजीनियर हैं. वे चींटियों और दीमक की आबादी को नियंत्रित करते हैं, बीज फैलाते हैं और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करते हैं.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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