ग़ज़ा में भोजन बांटने का मामला उलझता जा रहा है. मंगलवार को मदद बांटने वाले एक विवादास्पद संगठन ने वहाँ काम करना शुरू किया लेकिन जल्द ही स्थिति बिगड़ गई.
हज़ारों फ़लस्तीनियों ने दक्षिणी ग़ज़ा में खुले ग़ज़ा ह्यूमनेटेरियन फ़ाउंडेशन (जीएचएफ़) नाम के इस संगठन के अड्डे को तहस-नहस कर दिया है.
संगठन ने कहा कि भोजन लेने वालों की भारी संख्या के कारण उनकी टीम को पीछे हटना पड़ा है. इसराइली सेना ने कहा कि संगठन की सुरक्षा करने वालों ने चेतावनी के तौर पर गोलियाँ चलाईं.
इस संगठन को अमेरिका और इसराइल का समर्थन हासिल है और ये संयुक्त राष्ट्र को दरकिनार कर ग़ज़ा में मदद करने का इरादा रखता है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसे अनैतिक और अव्यवहारिक बताते हुए ख़ारिज कर दिया है.
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इससे पहले जीएचएफ़ ने कहा था कि भोजन से लदे उसके ट्रक ग़ज़ा में सुरक्षित ठिकानों पर पहुंच गए हैं और लोगों को खाना बांटना भी शुरू कर दिया है. लेकिन ये नहीं बताया था कि अब तक कहां और कितनी मदद पहुंचाई गई है.
ये संगठन हथियारबंद सुरक्षा गार्डों का इस्तेमाल कर रहा है.
विशेषज्ञों को ग़ज़ा में पिछले 11 सप्ताह से चली आ रही नाकेबंदी की वजह से बड़े पैमाने पर अकाल की चिंता सता रही है. उन्होंने इसके बारे में चेतावनी दी है.
संगठन का विरोध क्यों?
संयुक्त राष्ट्र और ग़ज़ा में मदद पहुंचाने वाले दूसरे संगठनों ने जीएचएफ़ के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है.
इन संगठनों का कहना है कि जीएचएफ़ के काम करना का तरीका मानवता के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है और ऐसा लगता है कि ये संगठन 'मदद को हथियार' के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है.
जीएचएफ़ ने सोमवार को पत्रकारों को भेजे एक बयान में कहा है कि उसने 'ग़ज़ा में अपना ऑपरेशन' शुरू कर दिया है.
संगठन की ओर से जारी तस्वीरों में दिख रहा है कुछ लोग किसी अनाम जगह से पेटियां उठाए चले जा रहे हैं.
बीबीसी ने जीएचएफ़ से पूछा है कि अब तक ग़ज़ा में सहायता सामग्री की कितनी गाड़ियां आई हैं और कितने लोगों ने ये मदद हासिल की है. लेकिन जीचएफ़ की ओर से जवाब मिलना बाक़ी है.
जीएचएफ़ के बयान में कहा गया है कि अब जॉन एक्री संगठन के अंतरिम कार्यकारी निदेशक हैं. जॉन एक्री यूएएसए़ड में सीनियर मैनेजर रह चुके हैं. यूएसएड विदेशों में मदद करने वाली अमेरिका की सरकारी एजेंसी है.
एक्री ने जेक वुड की जगह ली है. उन्होंने इस पद से रविवार को इस्तीफ़ा दे दिया था.
वुड ने कहा था जीएचएफ़ का सहायता बांटने वाला सिस्टम 'मानवता, तटस्थता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर बरकरार रहते हुए अपना मक़सद पूरा नहीं कर सकता.'
जीएचएफ़ ने इस आलोचना को ख़ारिज करते हुए कहा, ''कुछ लोग मदद को आने देने की तुलना में इस व्यवस्था को तोड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.''
ग़ज़ा ह्यूमेनेटेरियन फ़ाउंडेशन ने कहा है कि उसका सिस्टम पूरी तरह से मानवता के सिद्धांत पर काम करता है.
संगठन ने दावा किया वो इस सप्ताह के अंत तक 10 लाख लोगों तक राशन पहुंचा चुका होगा.
विवाद की जड़ में क्या है?
संयुक्त राष्ट्र और अन्य एजेंसियां इस संगठन के मदद बांटने के तरीके से बिल्कुल असहमत हैं.
ग़ज़ा ह्यूमनटेरियन फ़ाउंडेशन से मदद लेने आने वालों की सुरक्षा जांच होती है. इसके बाद ही उन्हें भोजन और साफ़-सफ़ाई में काम आने वाले सामान के बॉक्स दिए जाते हैं.
ये सामान जीएचएफ़ के डिस्ट्रीब्यूशन सेंटरों में मिलता है. संगठन के ज़्यादातर सेंटर दक्षिणी ग़ज़ा में हैं.
संगठन के भोजन बांटने के सेंटर प्राइवेट सुरक्षा गार्डों की हिफ़ाज़त में हैं और इनके चारों ओर इसराइली सैनिक गश्त लगा रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र और दूसरी सहायता एजेंसियां इस बात पर जोर दे रही हैं कि वो ऐसी किसी सहायता स्कीम को उनका सहयोग नहीं मिलेगा जो मानवता के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में नाकाम हैं.
इन एजेंसियों का कहना है कि जीएचएफ़ का सिस्टम एक तरह से उन लोगों को मदद के दायरे से बाहर कर देगा जो सेंटरों तक नहीं पहुँच सकते.
इनमें घायल, विकलांग और बुज़ुर्ग शामिल हैं. संगठन के आलोचकों का कहना है कि ये सिस्टम विस्थापन को बढ़ावा देगा.
आलोचकों का कहना है कि ये संगठन मदद के लिए शर्तें रख रहा है, इसके राजनीतिक और सैन्य मक़सद हैं. ये संगठन सहायता बांटने की एक ऐसी मिसाल पेश कर रहा है जिसे मंज़ूर नहीं किया जा सकता.
इन एजेंसियों का कहना है कि उनकी हज़ारों गाड़ियां ग़ज़ा के बाहर खड़ी हैं. उनके पास विस्तृत योजना है ताकि लोगों तक सुनिश्चित तौर पर मदद पहुंच सके. साथ ही मदद सामग्री की लूट भी कम से कम हो.
नॉर्वेजियन रिफ़्यूजी काउंसिल के महासचिव जे एजलैंड ने सोमवार को बीबीसी से कहा, ''जीएचएफ़ का सैन्यीकरण, निजीकरण और राजनीतिकरण हो चुका है. ये तटस्थता के साथ काम नहीं कर रहा है. इसके पीछे जो लोग हैं वो सेना के हैं. वो सीआईए के पूर्व कर्मचारी और सेना के लोग हैं.''
इस बीच हमास ने फ़लस्तीनियों से कहा है कि वो जीएचएफ़ के साथ सहयोग न करें.
हमास ने एक बयान में कहा है, ''ये संगठन व्यवस्था की जगह अव्यवस्था पैदा करेगा. ये एक ऐसी नीति थोपेगा जो फ़लस्तीन में लोगों को भुखमरी का शिकार बनाएगी. और युद्ध के समय भोजन को हथियार को तौर पर इस्तेमाल करेगी.''
लेकिन ग़जा ह्यूमेनेटेरियन फ़ाउंडेशन ने हमास के इस बयान की निंदा की है.
संगठन ने कहा है, ''हमास जीएचएफ़ की मदद करने वालों को मौत की धमकी देकर उन्हें निशाना बना रहा है. जीएचएफ़ के सुरक्षित ठिकानों को टारगेट करने की कोशिश हो रही है. साथ ही हमास ग़ज़ा के लोगों को मदद के लिए वितरण केंद्रों पर आने से भी रोक रहा है.''
इसराइल ने दो मार्च को ग़ज़ा में आने वाली मदद की पूरी तरह नाकाबंदी कर दी थी. इसके दो सप्ताह बाद उसने हमास के साथ दो महीने के संघर्ष विराम को ख़त्म कर ग़ज़ा में सैन्य हमले शुरू कर दिए.
इसराइल ने कहा है कि उसने ये क़दम ग़ज़ा में अभी भी हमास की क़ैद में रखे गए 58 बंधकों की रिहाई के लिए उठाया है. माना जा रहा है कि इन बंधकों में से 23 जीवित हैं.
19 मई को इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने एक व्यापक हमले को हरी झंडी देते हुए कहा कि वो सेना को 'ग़ज़ा के सभी इलाकों को नियंत्रण' में लेते हुए देखना चाहेंगे.
कहा जा रहा है कि नेतन्याहू की इस योजना में उत्तरी ग़ज़ा को पूरी तरह नागरिकों से खाली करा कर उन्हें जबरदस्ती दक्षिणी ग़ज़ा में विस्थापित कर देना शामिल है.
हालांकि अमेरिका पर सहयोगी देशों के दबाव के बाद नेतन्याहू ने कहा कि उनका देश ग़ज़ा में 'बुनियादी' मात्रा में भोजन ले जाने की अनुमति देगा ताकि वहां अकाल की स्थिति न आए.
इसराइली अधिकारियों ने कहा है कि इसके बाद से उन्होंने आटे, बेबी फ़ूड्स और मेडिकल के सामान समेत दूसरी चीजों के 665 ट्रकों को ग़ज़ा में आने की अनुमति दी है.
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के प्रमुख ने रविवार को चेतावनी दी थी कि ग़ज़ा में भयावह भूख, बुनियादी भोजन सामग्री के अभाव और आसमान छूती क़ीमतों के बीच ये मदद 'ऊंट के मुंह में जीरे' के बराबर है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, आने वाले महीनों में ग़ज़ा में लगभग 5 लाख लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा.
7 अक्तूबर 2023 को हमास ने सीमा पार कर इसराइल पर हमला किया था. इस हमले में 1200 लोगों की मौत हो गई थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया गया था.
इसके बाद इसराइल ने ग़ज़ा में हमले शुरू कर दिए थे. हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, अब तक इन हमलों में ग़ज़ा में 53,997 लोग मारे जा चुके हैं. इनमें वो 3,822 लोग भी शामिल हैं जो 10 सप्ताह पहले युद्धविराम के बाद इसराइल की ओर से दोबारा हमले के शिकार हुए हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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