सूरज की किरणें कार्सिनोजेनिक होती हैं. यानी इनमें कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं.
आम तौर पर ये माना जाता है कि सूरज की हानिकारक किरणों से बचाव के लिए सनस्क्रीन लगाना सबसे अच्छे तरीकों में से एक हो सकता है.
दुनिया भर में मेलेनोमा स्किन कैंसर के 80 फ़ीसदी मामलों की वजह सनबर्न यानी धूप से त्वचा का झुलसना है.
स्किन कैंसर के ऐसे मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है. एक अनुमान के मुताबिक़ दुनिया भर में हर साल स्किन कैंसर के 15 लाख नए मामले सामने आते हैं.
2040 तक ये तादाद और 50 फ़ीसदी बढ़ने की आशंका है.
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लेकिन इस कड़वी हक़ीक़त और सूरज की तेज रोशनी से होने वाले नुक़सान के बारे में पब्लिक हेल्थकेयर से जुड़ी एजेंसियों की चेतावनी के बावजूद सनस्क्रीन (सनक्रीम) को लेकर काफी भ्रम फैला हुआ है.
सनस्क्रीन कैसे और कब लगाया जाए, इस बारे में आम लोगों के बीच सही और सटीक जानकारी का अभाव है.

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफ़ेसर रिचर्ड गैलो कहते हैं कि सूरज की अल्ट्रावॉयलेट विकिरण से हमारी त्वचा की कोशिकाओं के डीएनए, प्रोटीन्स और उनमें मौजूद छोटे कणों को नुक़सान पहुंचता है.
अगर हमारी त्वचा को एक निश्चित मात्रा में सीमित अल्ट्रा वॉयलेट किरणें मिलती हैं तो इसकी कोशिकाएं विटामिन डी पैदा करती हैं. ज्यादा धूप में रहने पर हमारी त्वचा मेलानिन पैदा करती हैं. इस प्रक्रिया में ये खुद को टैन ( त्वचा का रंग गहरा होना) करके अपना बचाव करती है.
गैलो कहते हैं, ''अगर सूरज की रोशनी का एक्सपोजर ज़्यादा है तो त्वचा खुद को बचा नहीं पाती है और सनबर्न हो जाता है.''
वो कहते हैं कि इससे हमारी कोशिकाओं के डीएनए को नुक़सान पहुंचता है और इससे हम समय से पहले बूढ़े होने लगते हैं. इससे स्किन कैंसर का ख़तरा हो सकता है.
सूरज की अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (विकिरण) स्किन कैंसर की सबसे आम वजह है.
वो कहते हैं, ''कम यानी लो एसपीएफ सनस्क्रीन सूरज की रेडिएशन से थोड़ा बचाव करती है. लेकिन ज़्यादातर मामलों में रेडिएशन का नुक़सानदेह असर बना ही रहता है. भले ही कम मात्रा में लेकिन सूरज की रेडिएशन में संभावित कार्सिनोजेन होते ही हैं.''
एसपीएफ क्या है, कितनी मात्रा ज़रूरी?एसपीएफ़ का मतलब होता है ''सन प्रोटेक्शन फै़क्टर'' . अमूमन सनस्क्रीन (क्रीम) की बोतलों पर एक नंबर लिखा होता है. एसपीएफ़ जितना ज्यादा होगा आपकी त्वचा को वो सूरज की किरणों से उतना ज्यादा सुरक्षित रखेगी.
हालांकि एसपीएफ़ सिर्फ़ अल्ट्रावॉयलेट (ए) किरणों से सुरक्षा का स्तर बताता है. जबकि यूवीए सुरक्षा एक अलग रेटिंग से निर्धारित होती है.
पूरे दिन हम जिस अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के संपर्क में आते हैं वो बदलती रहती है.
जैसे-जैसे सूरज की किरणें तेज होती है हम ज्यादा सौर ऊर्जा के संपर्क में आते जाते हैं. सूरज की किरणें सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक सबसे तेज होती हैं.
साल 2018 की एक स्टडी के मुताबिक़ सनस्क्रीन लगाने के बाद इसका अल्ट्रावॉयलेट प्रोटेक्शन तुरंत काम करना शुरू कर देता है.
हालांकि इसे स्थिर होने में लगभग दस मिनट लगता है लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि धूप में जाने से 20 से 30 मिनट पहले इसे लगा लेना चाहिए ताकि ये आपकी त्वचा में पूरी तरह से समा जाए. उनके मुताबिक़ इसे दो बार लगाना अच्छा होता है.
कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि अमूमन लोग इसे कम लगाते हैं.
एक अन्य स्टडी के मुताबिक़ रिसर्चरों ने इसमें हिस्सा लेने वाले 31 लोगों को लैब के अंदर ब्लैक लाइट में सनस्क्रीन लगाने को कहा.
रिसर्चरों ने पाया कि दो बार लगाने से स्किन की सतह का दायरा कम हो गया था. जबकि पहली बार सनस्क्रीन लगाने पर ये इलाका छूट गया था. जो बाद में कवर हो गया था.
वैज्ञानिक कहते हैं कि पसीना आने, पानी में भीग जाने या कपड़े या धूल से रगड़ जाने के बाद दोबारा सनस्क्रीन लगाना चाहिए.
लीड्स यूनविर्सिटी के स्कूल ऑफ डिजाइन में सस्टेनेबल मेटेरियल्स के प्रोफ़ेसर रिचर्ड ब्लैकबर्न कहते हैं सनस्क्रीन को दूसरे स्किन प्रोडक्ट के साथ न मिलाना काफी जरूरी बात है.
उनके मुताबिक़ कई सनस्क्रीन में जिंक ऑक्साइड जैसे मैटल नैनोपार्टिकल्स होते हैं. दूसरे स्किन प्रोडक्ट के संपर्क में आने से ये ज्यादा असरदार नहीं रह जाती है.
ब्लैकबर्न कहते हैं, ''अप्रैल से सितंबर तक हर दिन सनस्क्रीन लगाना चाहिए.''

गैलो कहते हैं शीशा सबसे ख़तरनाक रेडिएशन (यूवी-बी) को फिल्टर कर देता है. फिर भी कुछ रेडिएशन अंदर आकर थोड़ा नुक़सान तो पहुंचा ही सकती है.
भले ही शीशे से छन कर आए लेकिन सूरज की रोशनी में बार-बार जाने पर स्किन को नुक़सान हो सकता है.
जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारी स्किन में दिखने वाले परिवर्तन में से 90 फ़ीसदी के लिए यूवी (ए) ही जिम्मेदार होती है.
ये नुकस़ान शीशे के पार से आने वाली सूरज की किरणों से हो सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ सनस्क्रीन क्रीम भी कम प्रभावी रह जाती है. लेकिन ख़रीदने की तारीख से तीन साल तक ये काम कर सकती है.
ब्रिटेन में ज्यादातर सनस्क्रीन की बोतलों पर लिखा होता है कि एक बार ख़ोलने के बाद ये कितने महीनों तक चलेगी.
एक बार सनस्क्रीन की बोतल खोलने के बाद ये चेक करते रहना चाहिए कि क्या इसके कलर और कंसिस्टेंसी तो नहीं बदल रही है.
इसे सीधे सूरज की रोशनी में नहीं रखना चाहिए.
क्या सनस्क्रीन विटामिन डी बनना रोक देती है?विटामिन डी शरीर के अंदर कैल्शियम अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाता है. ये मजबूत हड्डियों और शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बनाए रखने के लिए जरूरी है.
इस बात को लेकर चिंता जताई जाती है कि सनस्क्रीन लगाने से विटामिन डी का शरीर में अवशोषण रुक सकता है. लेकिन कुछ अध्ययनों की समीक्षा के मुताबिक़ इस तरह का जोखिम कम होता है.
इस बात को लेकर चिंता देखी जाती है कि सनस्क्रीन में जिन चीजों का इस्तेमाल होता है वो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं. हालांकि ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, अमेरिका से मंज़ूरी प्राप्त सनस्क्रीन सुरक्षित और असरदार पाए गए हैं.
गैलो कहते हैं कि अगर आपकी त्वचा सनस्क्रीन बनाने में इस्तेमाल किसी पदार्थ के प्रति संवेदनशील या एलर्जिक है तो इस पर लाल चकते पड़ सकते हैं या खुजली हो सकती है.
वो कहते हैं, ''सनस्क्रीन में विषैले तत्वों का होना एक मिथक है. इसे बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाता है. लोग सूरज की विकिरण से नुक़सान से होने वाले जहरीले असर पर बात नहीं करते. त्वचा में सीधे लगाई जाने वाली सनस्क्रीन कोई नुकसान नहीं करती. स्किन कैंसर का शिकार होने से तो अच्छा है स्किन पर सनस्क्रीन लगाई जाए.''
बड़ों और बच्चों को कितनी सनस्क्रीन लगानी चाहिएयूस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) टेस्टिंग के लिए 2 मिलीग्राम सनस्क्रीन लगाने की सलाह देता है. इसका मतलब है कि इससे कम लगाने पर स्किन को रेडिएशन से जितनी सुरक्षा की ज़रूरत है उतनी नहीं मिलेगी.
यह मात्रा एक आम वयस्क के शरीर और चेहरे के हिसाब से छह टीस्पून के बराबर होती है. हालांकि अध्ययनों के मुताबिक़ लोग अमूमन जरूरत से कम सनस्क्रीन लगाते हैं. इसलिए अल्ट्रवॉयलेट रेडिएशन से जितनी सुरक्षा चाहिए उतनी नहीं मिलती है.
छोटे बच्चों की स्किन अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होती है.
छह महीने से छोटे बच्चों को सनस्क्रीन नहीं लगानी चाहिए. अमूमन माना जाता है कि उन्हें धूप का एक्सपोजर उतना नहीं होता.
इतने छोटे बच्चों को सीधे धूप में नहीं लाना चाहिए. उन्हें ढीले-ढाले कपड़े पहनाकर तुलनात्मक तौर पर छाया में रखना चाहिए.
दो साल के बच्चों को आप दो टीस्पून सनस्क्रीन लगा सकते हैं. पांच साल के बच्चों के लिए तीन टीस्पून और 13 साल के बच्चों के लिए पांच टी-स्पून सनस्क्रीन जरूरी है.
इससे बड़े बच्चों को लिए वैज्ञानिक हर दो घंटे में सन-स्क्रीन लगाने की सलाह देते हैं.
कैसी सनस्क्रीन इस्तेमाल की जाए?हाई एसपीएफ वाली सनस्क्रीन लगानी चाहिए, जिसके लेवल ब्रॉड स्पेक्ट्रम लिखा हो. इसका मतलब ये है कि ये यूवी (ए) और यूवी (बी) दोनों से बचाव करती है.
एक और सामान्य तरीका है सनक्रीम की ओर से मिलने वाले यूवीए प्रोटेक्शन का लेवल नापना.
इसे यूवीए स्टार रेटिंग कहते हैं. इसमें गोल संकेत होता है और उसमें 'यूवीए' लिखा होता है. इसके बाद इसमें पांच स्टार तक बने होते हैं.
यूवीए स्टार रेटिंग सिस्टम यूवीबी तुलना में यूवीए से प्रोटेक्शन का स्तर बताता है.
इसलिए एसपीएफ50 सनस्क्रीन अगर पांच यूवीए स्टार के साथ है तो समान यूवीए रेटिंग वाले एसपीएफ30 सनक्रीम से यह ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराएगी.
अमेरिका और यूरोप में यह रेटिंग सिस्टम प्रचलित है.
ब्लैकबर्न कहते हैं कि कम से कम पांच स्टार वाली रेटिंग के साथ एसपीएफ30 सनस्क्रीन क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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