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विवेक रामास्वामी और एलन मस्क को ट्रंप ने दी अहम ज़िम्मेदारी

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Getty Images विवेक रामास्वामी और एलन मस्क (दाएं)

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सरकार के अहम पदों पर नियुक्तियां शुरू कर दी हैं.

ट्रंप ने एक्स, टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क के साथ विवेक रामास्वामी को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी (डीओजीई) का प्रमुख बनाया है.

ट्रंप ने इसकी घोषणा करते हुए एलन मस्क को 'ग्रेट एलन मस्क' कहा है और विवेक रामास्वामी को 'देशभक्त अमेरिकी' बताया है.

यह ज़िम्मेदारी मिलने पर विवेक रामास्वामी ने लिखा है- हमलोग नरमी से पेश नहीं आने वाले हैं.

यानी विवेक रामास्वामी ने संकेत दे दिया है कि जो ज़िम्मेदारी मिली है, उसे आक्रामकता के साथ लागू करेंगे और ट्रंप यही चाहते भी हैं.

विवेक को ट्रंप ने वही ज़िम्मेदारी दी है, जिसकी वो वकालत करते रहे हैं. जैसे कई सरकारी विभागों और एजेंसियों को बंद करने की वकालत विवेक रामास्वामी करते रहे हैं.

एलन मस्क के साथ विवेक रामास्वामी सरकार में नौकरशाही, अतिरिक्त नियम-क़ानून और 'अनावश्यक खर्चों' को रोकने के अलावा फेडरल एजेंसियों के पुनर्गठन पर काम करेंगे.

ट्रंप ने इसे 'सेव अमेरिका' अभियान के लिए ज़रूरी बताया है.

इसके साथ ही ट्रंप की ओर से कुछ और अहम नियुक्तियों की घोषणा की गई है.

फ्लोरिडा के सांसद माइकल वाल्ट्ज अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनेंगे और सीनेटर मार्को रूबियो को विदेश मंत्री बनाया जा सकता है.

50 साल के वाॉल्ट्ज पूर्व सैन्य अधिकारी हैं और लंबे समय से ट्रंप के समर्थक रहे हैं.

वो अमेरिकी कांग्रेस के लिए दोबारा चुने गए हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वॉल्ट्ज की नियुक्ति के लिए सीनेट की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होगी.

image Getty Images माइकल वाल्ट्ज (फ़ाइल फ़ोटो) कौन हैं विवेक रामास्वामी image Getty Images विवेक रामास्वामी (फ़ाइल फ़ोटो)

विवेक रामास्वामी रिपब्लिकन पार्टी के लिए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार की दौड़ में शामिल थे. लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी. वो एक भी प्राइमरी नहीं जीत पाए थे और इस दौड़ से बाहर होना पड़ा था.

वोक किताब के लेखक, करोड़ों के मालिक और उद्यमी विवेक रामास्वामी का कहना है कि वो नए अमेरिकी सपने के लिए एक सांस्कृतिक आंदोलन शुरू करना चाहते हैं.

उनका मानना है कि अगर एक दूसरे को साथ लाने के लिए कुछ बड़ा नहीं है तो विविधता का कोई मतलब नहीं है.

39 साल केओहायो में हुआ था. उन्होंने हार्वर्ड और येल से पढ़ाई की और बायो टेक्नॉलजी के क्षेत्र में करोड़ों रुपये कमाए. इसके बाद उन्होंने एसेट मैनेजमेंट फर्म बनाई.

उन्होंने बायोटेक कंपी रोयवेंट साइंसेज की स्थापना की जो अब सात अरब डॉलर की हो चुकी है.

वो एक इन्वेस्टमेंट फर्म के भी सह-संस्थापक हैं. फोर्ब्स के मुताबिक़की कुल संपत्ति 63 करोड़ डॉलर है.

विवेक की शादी अपूर्वा से हुई है और वो ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी वेक्सनर मेडिकल सेंटर में सर्जन और असिस्टेंट में प्रोफ़ेसर हैं. विवेक अपने परिवार के साथ कोलंबस में रहते हैं. उनके दो बेटे हैं.

विवेक रामास्वामी का जन्म प्रवासी भारतीय माता-पिता के परिवार में हुआ.

की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उनका परिवार केरल से अमेरिका गया था.

उनके पिता वी गणपति रामास्वामी ने कालीकट के नेशनल इंस्टीट्यूट से ग्रेजुएशन के बाद इंजीनियर के तौर पर काम किया. उनकी मां ने अमेरिका में एक मनोचिकित्सक के तौर पर काम किया.

2023 में में विवेक ने बताया था कि उनकी मां ने अमेरिकी नागरिकता ली है जबकि उनके पिता के पास अब भी भारतीय पासपोर्ट है.

रामास्वामी पहले रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार पद की दौड़ में थे. लेकिन अयोवा कॉकस में चौथे नंबर पर आने के बाद उन्होंने अपना अभियान छोड़ दिया था.

इसके बाद जब वो ट्रंप के पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट के लिए उनके साथ अटलांटा गए तो ये ख़बरें आईं कि वो रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बन सकते हैं.

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विवेक रामास्वामी के एजेंडे

विवेक रामास्वामी अपने ख़ास एजेंडों के लिए भी जाने जाते हैं. जैसे यूक्रेन और रूस की जंग को ख़त्म करना, बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना और संघीय विभागों को बंद करने की योजना भी रखते हैं.

जैसे शिक्षा विभाग, परमाणु नियामक आयोग, घरेलू राजस्व सेवा और एफ़बीआई को बंद करने की वकालत करते हैं.

विवेक रामास्वामी चाहते हैं कि एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम ख़त्म हो. अमेरिका में विदेशी कुशल कर्मचारियों को भर्ती करने के लिए नियोक्ताओं द्वारा इस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जाता है. अगर ये ख़त्म होता है तो भारतीयों को भी नुक़सान होगा.

रामास्वामी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और उनके प्रोडक्ट को "लत लगाने वाला" बताते हुए आलोचना की थी. हाल ही में उन्होंने टिक टॉक को "डिजिटल फेंटानिल" तक कहा.

उन्होंने कहा था, "इन्हें इस्तेमाल करने वाले 12-13 साल के बच्चों पर क्या असर होता होगा, इसे लेकर मैं चिंतित हूं."

रिपब्लिकन डिबेट के दूसरे चरण में उन्होंने बच्चों द्वारा सोशल मीडिया इस्तेमाल पर बैन लगाने की बात कही थी ताकि "देश की मानसिक सेहत को सुधारा" जा सके.

लेकिन रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वियों ने रामास्वामी की आलोचना की क्योंकि कुछ दिन पहले ही वो टिक टॉक से जुड़े थे.

रामास्वामी का मानना है कि रूस यूक्रेन युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से ख़त्म करने के लिए रूस को कुछ बड़ी छूट देनी चाहिए.

उन्होंने जून में एसीबी न्यूज़ से कहा था कि कोरियाई युद्ध की तरह एक ऐसा समझौता होना चाहिए जिसमें दोनों पक्षों को अपने अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों पर वैधता दे दी जाए.

image Getty Images ट्रंप ने विवेक रामास्वामी को देशभक्त अमेरिकी कहा है चीन-रूस गठबंधन पर विवेक की राय

उनका मानना है कि अमेरिकी सेना के लिए सबसे बड़ा ख़तरा चीन-रूस गठबंधन और नेटो में यूक्रेन के न शामिल होने का स्थायी आश्वासन है. लेकिन इसके बदले रूस को अपने गठबंधन और चीन के साथ सैन्य समझौते से पीछे हटना होगा.

उनके अनुसार, रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन को अधिक हथियार देना, रूस को चीन के हाथों में धकेलने जैसा है.

रामास्वामी का कहना है कि वोट देने की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 25 साल किया जाना चाहिए.

उनका प्रस्ताव है कि 18 साल तक के लोगों को भी वोट का अधिकार तभी मिले जब वो "राष्ट्रीय सेवा ज़रूरतों" की शर्त पूरा करते हों. यानी या तो वो इमरजेंसी में मददगार हुए हों या सेना में छह महीने की सेवा दे चुके हों.

उन्होंने ये भी कहा कि 18 साल के उन लोगों को वोट देने का अधिकार देना चाहिए जो अमेरिकी नागरिकता वाला टेस्ट पास कर लें.

लेकिन समस्या ये है कि वोटिंग की उम्र बढ़ाने का मतलब है संविधान में बदलाव, यानी कांग्रेस में दो तिहाई बहुमत होना चाहिए.

रामास्वामी कई संघीय विभागों को बंद करने की योजना भी रखते हैं. जैसे शिक्षा विभाग, परमाणु नियामक आयोग, घरेलू राजस्व सेवा और एफ़बीआई आदि.

एनबीसी न्यूज़ से उन्होंने कहा, "अधिकांश मामले में ये एजेंसियां बेकार हो चुकी है और इनकी जगह कई अन्य विभाग काम करते हैं."

उन्होंने पुनर्गठन का सुझाव दिया जिसमें एफ़बीआई की फंडिंग को सीक्रेट सर्विस, फ़ाइनेंशियल क्राइम्स एनफ़ोर्समेंट नेटवर्क और डिफ़ेंस इंटेलिजेंस एजेंसी में बांटा जाए.

रिपब्लिकन उम्मीदवारों की दौड़ में शामिल पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप एफ़बीआई पर उनके ख़िलाफ़ बदले की भावना से कार्रवाई करने के आरोप लगाते रहे हैं.

जून में फ़ॉक्स न्यूज़ पोल में पता चला कि रिपब्लिकन लोगों में एफ़बीआई को लेकर भरोसा कम क़रीब 20 प्रतिशत तक कम हुआ है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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