पिछले 17 साल से चर्चा में रहे साल 2008 के मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में आख़िरकार फ़ैसला आ गया है.
मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने इस मामले में अभियुक्त रहीं बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सात लोगों को बरी कर दिया है.
विशेष अदालत के न्यायाधीश एके लाहोटी ने सभी अभियुक्तों को निर्दोष करार देते हुए कहा, "यह एक अत्यंत गंभीर मामला है जिसमें आम नागरिकों की जान गई. लेकिन अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने के लिए निर्णायक सबूत पेश नहीं कर पाया."
न्यायाधीश लाहोटी ने कहा, "केवल शक के आधार पर आरोप सिद्ध नहीं किए जा सकते."
जिस तरह इस मामले की जाँच और मुक़दमे की गूँज देशभर में सुनाई दी थी, उसी तरह इस फ़ैसले पर भी व्यापक प्रतिक्रिया आने की संभावना है.
दरअसल, 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए इस ब्लास्ट में सात लोगों की मौत हो गई थी और 93 लोग घायल हुए थे.
यह ब्लास्ट किसने करवाया, 17 साल बाद भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला है.
कुछ ही दिन पहले ही 11 जुलाई 2006 को मुंबई लोकल ट्रेन में हुए ब्लास्ट के मामले में भी सभी अभियुक्त बरी हो गए थे.
एक ही महीने में आए इन दो फ़ैसलों ने जाँच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
मालेगांव का मामला इसलिए भी अधिक संवेदनशील और राजनीतिक रूप से बड़ा बन गया, क्योंकि पहली बार ऐसी घटना में हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.
इसके अलावा, लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को भी धमाके की साज़िश के आरोप में अभियुक्त बनाया गया था. वे उस समय भारतीय सेना में कार्यरत थे. ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था.
अब साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के साथ ही रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर द्विवेदी को भी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है.
साल 2017 में 'महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम' (मकोका) की धाराएँ इन अभियुक्तों पर से हटा ली गई थीं.
लेकिन अब 'ग़ैर क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम' (यूएपीए) के तहत चल रहे मुक़दमे में भी सबूतों के अभाव में इन्हें बरी कर दिया गया है.
- मालेगांव ब्लास्ट: साध्वी प्रज्ञा समेत सभी अभियुक्तों के बरी होने पर पीड़ित पक्ष बोला, 'हमारे साथ ग़लत हुआ'
- मुसलमान हमारे अपने लोग हैं: साध्वी प्रज्ञा
साजिश रचने से लेकर विस्फोटक हासिल करने और कई लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराने जैसे गंभीर आरोप इन अभियुक्तों पर लगाए गए थे.
जब साल 2008 में एंटी टेरेरिज़्म स्क्वॉड (एटीएस) ने इस मामले की जाँच शुरू की, तब कुछ ही महीनों के अंदर 14 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.
एटीएस ने यह मामला एनआईए को सौंपे जाने से पहले दो चार्जशीट दाखिल की थीं. इसके बाद एनआईए ने 2016 में एक पूरक आरोप पत्र दाखिल किया था.
इसके बाद इस मामले में एक लंबी न्यायिक प्रक्रिया चली.
इस मामले में विशेष सरकारी वकील अविनाश रसाल ने 'बीबीसी मराठी' को बताया था कि उन्होंने इस सुनवाई के दौरान कुल 324 गवाहों से पूछताछ की. इनमें से 34 गवाह मुकर गए.
हालाँकि उन्होंने 8 मई की सुनवाई से पहले कहा था कि उन्होंने परिस्थितिजन्य साक्ष्य ठीक तरह से पेश किए हैं.
लेकिन 31 जुलाई को अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि इन सभी साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर जो मुक़दमा खड़ा हुआ, वह अभियुक्तों का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी रहा कि जो 'आरडीएक्स' विस्फोट के लिए इस्तेमाल हुआ, उसका स्रोत जाँच एजेंसियां सिद्ध नहीं कर पाईं.
अदालत ने कहा कि यह आरोप लगाया गया था कि विस्फोटक पुरोहित ने कश्मीर से हासिल किया था, लेकिन 'इसका कोई सबूत नहीं दिया गया और यह भी प्रमाणित नहीं किया गया कि किसी भी अभियुक्त के घर पर बम तैयार किया गया था'.

- 'साध्वी के श्राप BJP को असमंजस में डालते रहेंगे'
- साध्वी प्रज्ञा को हटाने के लिए संघ ने लिखी चिट्ठी?
जिस मोटरसाइकिल पर विस्फोटक रखा गया था, उसका साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से ठोस सबूतों के साथ संबंध सिद्ध नहीं हो सका, ऐसा भी अदालत ने कहा.
जाँच एजेंसियों का कहना था कि इस घटना से पहले एक बड़ा साज़िश रचा गया था, जिसके तहत इंदौर, उज्जैन, पुणे जैसी अलग-अलग जगहों पर इन सभी अभियुक्तों की बैठकें हुईं और वहीं साज़िश रची गई.
लेकिन न्यायाधीश लाहोटी ने फ़ैसला सुनाते समय कहा कि इन बैठकों के होने के कोई भी विश्वसनीय सबूत अदालत के सामने पेश नहीं किए गए.
इन अभियुक्तों पर यह आरोप भी था कि उन्होंने मिलकर 'अभिनव भारत' नामक संगठन की स्थापना की और उसी के तहत यह साज़िश रची.
हालाँकि अदालत ने कहा कि भले ही अभियुक्तों के बीच हुए कुछ आर्थिक लेन-देन के सबूत पेश किए गए, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि वह पैसा किसी हिंसक गतिविधि के लिए इस्तेमाल हुआ.
न्यायाधीश लाहोटी ने फ़ैसले में महाराष्ट्र एटीएस की शुरुआती चरण में की गई जाँच की भी आलोचना की.
अदालत ने कहा कि अभियुक्तों और उनसे संबंधित लोगों के कॉल रिकॉर्ड निकालते समय ज़रूरी क़ानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. इसके लिए ज़रूरी अनुमति भी नहीं ली गई थी.
अदालत ने ये भी कहा कि जहाँ यह घटना हुई, वहाँ पंचनामा भी सही तरीक़े से नहीं किया गया और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई.
फ़ैसले के बाद मीडिया से बात करते हुए सुधाकर द्विवेदी के वकील रणजीत सांगले ने कहा, "जो फ़ॉरेसिंक सबूत पेश किए गए वे ग़लत तरीक़े से इकट्ठा किए गए थे और घटनास्थल से जो सबूत जुटाए गए, वे बिगड़ चुके थे. इसलिए उन्हें बतौर सबूत नहीं माना जा सकता."
"कुल मिलाकर सरकारी पक्ष विश्वसनीय साक्ष्य पेश करने में असफल रहा और केवल संदेह के आधार पर अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. भले ही यह गंभीर अपराध हो, लेकिन सबूतों के अभाव में अभियुक्तों को संदेह का लाभ देना पड़ रहा है."
ऐसा कहते हुए अदालत ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया.
- हेमंत करकरे 'शहीद' थे या 'षड्यंत्रकारी'?
- कर्नल पुरोहित: एटीएस और एनआईए के अलग-अलग सुर
साल 2008 का मालेगांव ब्लास्ट मामला अभियुक्तों की वजह से तो लगातार चर्चा में रहा ही, लेकिन इसकी जाँच और इसमें जाँच एजेंसियों की भूमिका को लेकर भी विवाद बना रहा.
एनआईए ने साल 2016 में इस मामले में पूरक आरोपपत्र दाखिल किए. एनआईए की जाँच, एटीएस की शुरुआती दिशा से मिलती-जुलती थी, फिर भी एजेंसी की ओर से कही गई बातों पर विवाद हुआ.
एनआईए ने इस मामले में अभियुक्तों पर से 'मकोका' की धाराएँ हटाने की सिफ़ारिश की. साथ ही यह भी कहा कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत कुछ अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आगे मुक़दमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
हालाँकि साल 2017 में विशेष अदालत ने मकोका हटाने की अनुमति तो दी, लेकिन साध्वी प्रज्ञा और अन्य छह लोगों को दोषमुक्त करने की अनुमति नहीं दी.
इन पर अन्य धाराओं के साथ-साथ यूएपीए के तहत मुक़दमा जारी रहा.
साल 2015 में, जब इस मामले की सरकारी वकील रोहिणी सालियन थीं, तब उन्होंने एक इंटरव्यू में आरोप लगाया था कि सरकार एनआईए के ज़रिए उन पर इस मामले में नरम रुख अपनाने का दबाव बना रही है.
इसके बाद बड़ा विवाद खड़ा हुआ था. कुछ समय बाद सालियन की जगह इस मुक़दमे में सरकारी वकील के तौर पर अविनाश रसाल ने काम संभाला.
अब जब सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है, तो रोहिणी सालियन ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में कहा, "यह सभी को पता था कि ऐसा ही होगा. अगर आप सच्चे सबूत अदालत के सामने पेश ही नहीं करेंगे, तो फिर अलग नतीजे की उम्मीद कैसे की जा सकती है?"
सालियन ने सवाल उठाया, "जिन लोगों ने अदालत में ये सबूत पेश किए, मैं उनमें शामिल नहीं थी. मैं साल 2017 से इस केस में नहीं हूँ. लेकिन उससे पहले मैंने अदालत में पर्याप्त सबूत दिए थे और सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें स्वीकार किया था. तो फिर वे सबूत कहाँ गए?"
उन्होंने कहा, "एनआईए ने कहा कि पहले दाखिल किए गए सबूत झूठे हैं. इसलिए उन्होंने दोबारा जाँच की और गवाहों के नए बयान लिए. ये बयान पहले 164 के तहत दर्ज किए गए बयानों से अलग थे. उन्हें नए सबूत के तौर पर अदालत में पेश किया गया और उसी आधार पर यह फ़ैसला आया."
- प्रज्ञा ठाकुर को लेकर अब क्यों मचा है बवाल
- हेमंत करकरे पर दिए बयान को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने वापस लिया
मालेगांव के व्यस्त भिकू चौक के पास 29 सितंबर 2008 को एक दोपहिया वाहन में बम धमाका हुआ था. इस घटना में कुल सात लोगों की मौत हुई, जबकि 92 लोग घायल हो गए.
इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मामले की जाँच एटीएस को सौंपने की घोषणा की.
उस समय एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे थे, जिनकी बाद में मुंबई में हुए 26/11 हमलों में मौत हो गई.
प्रारंभिक जाँच में जिस मोटरसाइकिल पर विस्फोटक रखा गया था, उसने पुलिस को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर तक पहुंचाया. आरोपपत्र के अनुसार, अब तक फ़रार अभियुक्त रामजी कलसांगरा ने वही मोटरसाइकिल घटनास्थल पर रखी थी.
23 अक्तूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मध्य प्रदेश से गिरफ़्तार कर अन्य अभियुक्तों के साथ एटीएस ने नासिक कोर्ट में पेश किया.
इसके बाद कुछ ही समय में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के पुणे, नासिक जैसे स्थानों से एटीएस ने कई गिरफ़्तारियाँ कीं.
इसी दौरान सेना में कार्यरत एक अधिकारी की इस साज़िश में भूमिका की ख़बरें सामने आने लगीं.
4 नवंबर 2008 को लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को सेना ने मध्य प्रदेश से एटीएस के हवाले किया और उन्हें नासिक और पुणे की अदालतों में पेश किया गया.
इस मामले में आगे भी गिरफ़्तारियों का सिलसिला जारी रहा और नवंबर में ही सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मेजर रमेश उपाध्याय और समीर कुलकर्णी को भी गिरफ़्तार किया गया.
एटीएस ने अदालत में कहा कि उपाध्याय और पुरोहित ने मिलकर 2003–04 के दौरान हासिल किया गया आरडीएक्स मालेगांव विस्फोट में इस्तेमाल किया.
साथ ही साज़िश के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में बैठकें की गई थीं.
20 जनवरी 2009 को इस विस्फोट के मामले में कुल 14 लोगों के ख़िलाफ़ एटीएस ने आरोपपत्र दाखिल किए.
अन्य धाराओं के अलावा, इन सभी पर संगठित अपराध के लिए लागू 'मकोका' (एमसीओसीए) की धाराएँ भी लगाई गईं.
आरोपपत्र में कहा गया कि साध्वी प्रज्ञा, लेफ़्टिनेंट कर्नल पुरोहित और मेजर उपाध्याय साज़िश के मुख्य सूत्रधार थे और विस्फोट में इस्तेमाल की गई बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी.
एटीएस ने इस मामले में कुल दो आरोपपत्र दाखिल किए थे.
साल 2010 में यह मामला 'राष्ट्रीय जांच एजेंसी' (एनआईए) को सौंप दिया गया.
और अब अदालत ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की साजिश की पूरी कहानी
- समझौता ब्लास्ट: धमाके से फ़ैसले तक
- प्रज्ञा ठाकुर के विवादित बयानों की लंबी है लिस्ट, गोडसे को बता चुकी हैं 'देशभक्त'
You may also like
न करें नजरअंदाज. लीवर को सड़ाˈ देती है ये बीमारी, आंखों में पीलापन समेत दिखते हैं ये लक्षण
PM मोदी के बाद कौन बनेगाˈ प्रधानमंत्री? ज्योतिष के अनुसार इन 3 नेताओं की किस्मत चमक रही है
10 की उम्र में छोड़ा घर।ˈ सड़कों पर बेचे गोलगप्पे। आज है टीम इंडिया का बेहतरीन खिलाडी
भारत और अमेरिका के पंखों में ब्लेड की संख्या का रहस्य
इन कारणों की वजह से पतिˈ नही बनाना चाहते है सम्बन्ध, जब पति नज़दीकियों से कतराने लगें तो इन संकेतों को न करें नज़रअंदाज़