निर्देशक, प्रोड्यूसर और लेखिका ताहिरा कश्यप को फिर ब्रेस्ट कैंसर हुआ है. अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर की गई एक पोस्ट में उन्होंने यह जानकारी दी है.
ताहिरा कश्यप, अभिनेता आयुष्मान खुराना की पत्नी हैं. उन्हें साल 2018 में पहली बार ब्रेस्ट कैंसर का पता चला था.
इंस्टाग्राम पर ताहिरा कश्यप ने लिखा है, ''सात साल की इच (परेशानी) या लगातार स्क्रीनिंग (चेकअप) कराने की ताक़त, ये नज़रिए हैं और मैं इसमें दूसरे विकल्प को चुनती हूँ. मैं सभी को ये सुझाव दूँगी कि रेगुलर मैमोग्राम करवाती रहें. मेरे लिए ये दूसरा राउंड है.''
इससे पहले भी ताहिरा कश्यप अपने कैंसर के बारे में खुलकर बात करती रही हैं.
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अपने संघर्ष को वो सोशल मीडिया पर शेयर करती रही हैं. चाहे वह कीमोथेरेपी के बाद उनका 'बॉल्ड लुक' हो या उनकी पीठ पर दाग. उन्होंने कैंसर के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को बहादुरी से पेश किया है.
एक बार वर्ल्ड कैंसर डे पर उन्होंने पोस्ट किया था , "आज मेरा दिन है. हमें इससे जुड़े टैबू या स्टिग्मा को हटा देना चाहिए. हमें कैंसर को लेकर जागरुकता फैलानी चाहिए. चाहे कुछ हो, ख़ुद से प्यार करना चाहिए. मैं इससे जुड़े दाग को अपनाती हूँ और इन्हें अपनी शान में बैज के रूप में लेती हूँ.''

जर्नलिज़्म और मास कम्युनिकेशन में डिग्री हासिल करने वाली ताहिरा कश्यप रेडियो जॉकी रह चुकी हैं. इसके बाद उन्होंने लेखन की ओर रुझान किया. साल 2011 में उन्होंने किताब 'आई प्रॉमिस' लिखी. मीडिया में छपी जानकारी के मुताबिक़, इसके बाद उन्होंने निर्देशन की दिशा में कदम बढ़ाया और ज़िंदगी इन शॉर्ट, शर्माजी की बेटी जैसी फिल्में बनाईं. साथ ही वे कुछ किताबें भी लिख चुकी हैं.
ताहिरा कश्यप की इंस्टाग्राम पोस्ट के बाद उन्हें कई लोगों ने संदेश लिखे हैं. इसमें अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे ने लिखा, "कोई शब्द नहीं है बेबी. आपको प्यार, हिम्मत और प्रार्थना भेज रही हूँ.''
सोनाली बेंद्रे ख़ुद कैंसर पीड़ित रह चुकी हैं. वे इस बारे में खुलकर बोलती रही हैं और जागरुकता पर ज़ोर देती रहती हैं.
अभिनेत्री और लेखिका ट्विंकल खन्ना ने पोस्ट किया है, "मैं आपके साथ हूँ दोस्त. तुम हम सबको बॉलिंग में पछाड़ देती हो वैसे ही इसे भी पछाड़ दोगी. ढेर सारा प्यार.''
ताहिरा कश्यप ही नहीं, बॉलीवुड और हॉलीवुड की कई अभिनेत्रियाँ हैं जिन्होंने कैंसर से अपने संघर्ष के बारे में खुलकर बात की है. इनमें से कई को दोबारा कैंसर हुआ है और वे लगातार इसके बारे में जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं.
हाल ही में हिना ख़ान ने अपने ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जानकारी दी थी. वहीं किरण खेर, लीसा रे, मनीषा कोइराला, छवि मित्तल, महिमा चौधरी जैसे नाम हैं जो कैंसर का सामना कर चुकी हैं. कुछ की थेरेपी अब भी जारी है.
वहीं, अमेरिकी अभिनेत्री केथी बेट्स दो बार कैंसर का सामना कर चुकी हैं. पहले उन्हें ओवेरियन कैंसर हुआ और फिर ब्रेस्ट कैंसर.
कई अभिनेत्रियाँ ऐसी भी हैं जिन्होंने 'बाइलेटरल मासटेक्टमी' यानी दोनों स्तनों को हटवाने का निर्णय लिया. इनमें कुछ को शुरुआती स्टेज का कैंसर था या फिर उनके परिवार में किसी सदस्य को यह बीमारी हो चुकी थी. अमेरिकी कॉमेडी ड्रामा सेक्स एंड द सिटी की अभिनेत्री सिंथिया निक्सन ने 35 साल की उम्र से रेगुलर मैमोग्राम शुरू कर दिया था क्योंकि उनकी मां को ब्रेस्ट कैंसर था.
इन्हीं में से एक अभिनेत्री एंजेलिना जोली भी हैं, जिन्होंने कैंसर से बचने के लिए 'प्रीवेंटिव डबल मासटेक्टमी' करवा ली थी.
बायोमेड सेंट्रल मेडिकल पब्लिक हेल्थ में छपी ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में महिलाओं में होने वाले कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर सबसे ज़्यादा सामने आता है और इससे होने वाली मौतें भी पहले नंबर पर हैं. वहीं भारत में 45 साल और उससे ऊपर की केवल 1.3 प्रतिशत महिलाओं ने ही मैमोग्राफ़ी करवाई है.
कैंसर से जुड़े मामलों को लेकर लोकसभा में यह सवाल पूछा गया था कि क्या कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी होगी और क्या ब्रेस्ट कैंसर भारत और वैश्विक स्तर पर सबसे आम कैंसर है?
इस पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्यमंत्री प्रो. सत्यपाल सिंह बघेल ने जवाब दिया था कि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च–नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (आईसीएमआर-एनसीआरपी) के मुताबिक़, भारत में कैंसर के मामले साल 2022 में 14.61 लाख थे, जो 2025 तक बढ़कर 15.7 लाख तक पहुँच सकते हैं.
ब्रेस्ट कैंसर पर उन्होंने कहा कि ग्लोबल कैंसर ऑब्ज़र्वेटरी, आईएआरसी-डब्ल्यूएचओ 2022 के मुताबिक़, ब्रेस्ट कैंसर वैश्विक स्तर पर सबसे आम कैंसर है. जवाब में बताया गया कि साल 2022 में भारत में ब्रेस्ट कैंसर से 98,337 महिलाओं की मौत हुई. यह संख्या दुनियाभर में इस कैंसर से होने वाली मौतों में सबसे ज़्यादा है.
ताहिरा कश्यप का मामला सामने आने के बाद इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि क्या कैंसर दोबारा लौट सकता है? क्या कैंसर का पूरा इलाज संभव नहीं है?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ (एनआईएच) के मुताबिक़, जब कैंसर इलाज के बाद वापस आता है तो डॉक्टर इसे 'रीकरंस' या 'रीकरंट कैंसर' कहते हैं. इससे मरीज़ को झटका लगता है, ग़ुस्सा आता है, दुख और डर महसूस होता है.
एनआईएच की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक़, रीकरंट कैंसर उन कैंसर कोशिकाओं से शुरू होता है जो पहले इलाज के दौरान पूरी तरह से हट नहीं पाईं या नष्ट नहीं हो सकीं. लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि जो इलाज किया गया था, वह ग़लत था.
कैंसर का इलाज करने वाली विशेषज्ञ (ऑन्कोलॉजिस्ट) डॉ. राशि अग्रवाल कहती हैं कि कैंसर एक क्रोनिक यानी लंबी बीमारी है. यह शरीर में धीरे-धीरे बढ़ता है. ऐसे में इलाज के दौरान कुछ कैंसर सेल्स छूट जाते हैं. ये सेल्स धीरे-धीरे इकट्ठा होते हैं और इन्हें ही कैंसर रीकरंस या रिलैप्स कहा जाता है. साथ ही हमें यह भी देखना चाहिए कि अब लोग कैंसर होने के बावजूद लंबा जीवन जी रहे हैं. इसलिए भी कैंसर के दोबारा लौटने के मामले देखे जा रहे हैं.
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी पर छपी जानकारी के मुताबिक़, यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कैंसर दोबारा होने की कितनी आशंका होती है. लेकिन अगर यह तेज़ी से बढ़ने वाला, फैलने वाला या एडवांस स्टेज में हो, तो इसके दोबारा आने की संभावना रहती है.

वहीं, यहाँ उपलब्ध जानकारी से यह पता चलता है कि कैंसर के अलग-अलग प्रकार की वापसी होती है. इसमें एक स्थिति यह होती है जब कैंसर वहीं लौट आता है, जहाँ से उसकी शुरुआत हुई थी. इसे लोकल रीकरंस कहा जाता है.
दूसरी स्थिति रीजनल रीकरंस कहलाती है. इसमें कैंसर उस क्षेत्र के लिंफ नोड्स में लौट आता है, जहाँ से उसकी शुरुआत हुई थी. लिंफ नोड्स हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र का अहम हिस्सा होते हैं. वहीं, जब कैंसर शरीर के किसी अन्य भाग में फैलता है, तो उसे डिस्टेंट रीकरंस कहा जाता है.
डॉ. राशि अग्रवाल बताती हैं, ''कैंसर कई प्रकार के होते हैं, जहाँ कुछ में दवाइयों, कीमोथेरेपी आदि से इलाज लंबे समय तक चलता है. कुछ मामलों में यह संभव नहीं होता. जैसे ब्रेस्ट कैंसर में कम से कम दस साल तक दवाइयाँ दी जाती हैं ताकि ये सेल्स सक्रिय न हो सकें. हालाँकि, अब ब्रेस्ट कैंसर 20 साल की लड़कियों में भी देखा जा रहा है, जबकि पहले यह 40 साल की उम्र के बाद होता था. कैंसर के दोबारा आने का कारण ट्यूमर फ़ैक्टर हो सकता है, जो ख़राब हो. अगर सेल्स ट्रिपल नेगेटिव हों, तो चाहे जितना इलाज किया जाए, उसके फेल होने के चांस ज़्यादा होते हैं.''
निजी अस्पताल में ऑनकोलॉजिस्ट स्वस्ति कहती हैं, ''अगर आम भाषा में समझें तो हमारे शरीर में ऐसे जीन होते हैं जो कैंसर को बनने से रोकते हैं हैं. अगर कैंसर बनाने वाले सेल्स बढ़ जाते हैं तो इससे बचाने वाली प्रक्रिया कमज़ोर पड़ जाती है.''
वे बताती हैं कि कैंसर के दोबारा लौटने की आशंका इस बात पर निर्भर करती है कि यह शरीर में कब शुरू हुआ, कितना फैला और इसका पता कब चला.
अब तो ये भी देखा जा रहा है कि युवा लड़कियों में भी ब्रेस्ट कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में उनमें रीकरंस की आशंका ज्यादा मानी जाए? इस सवाल के जवाब में डॉ स्वस्ति कहती हैं, ''ये इस बात पर निर्भर करेगा कि महिला को किस स्टेज में पता चला. उसका ट्यूमर कैसा था और उसने पूरा इलाज लिया या नहीं. हम मरीज़ को हमेशा बताते हैं कि कैंसर दोबारा लौट सकता है लेकिन इसमें घबराना नहीं चाहिए क्योंकि इसका इलाज है.''
इसी बात को आगे बढ़ाती हुई डॉ. राशि कहती हैं, ''ये भी देखा जाता है कि ऐसी महिला का स्वास्थ्य कैसा था? क्योंकि कई बार कैंसर दोबारा आने का कारण पर्यावरण भी होता है. आप ऐसी आबोहवा में जी रहे होते हैं जो काफ़ी प्रदूषित है. यह भी आपके शरीर में कैंसर दोबारा आने में भूमिका निभा सकता है.''
डॉक्टर बताते हैं कि जब किसी व्यक्ति को कैंसर फ्री बताया भी जाता है, तब भी उसकी मेडिकल जांच चलती रहती है. ऐसे व्यक्ति को दो साल तक हर तीन महीने पर बुलाया जाता है. तीसरे साल में हर चार महीने बाद, चौथे और पाँचवें साल में हर छह महीने के अंतराल पर डॉक्टर बुलाते हैं. इसके साथ ही मरीज़ को सेल्फ चेकअप भी नियमित रूप से करते रहना होता है.
साथ ही धूम्रपान करने, तंबाकू या शराब पीने पर पाबंदी लगा दी जाती है. इसके अलावा बेहतर खानपान पर डॉक्टर जोर देते हैं, जो मरीज़ की स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है. नियमित कसरत पर ज़ोर दिया जाता है.
डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि इन चीज़ों के इस्तेमाल से बचना चाहिए:
- नॉन-स्टिक कुकवेयर
- हेयर डाई
- प्रदूषण
- प्रिज़र्वेटिव युक्त खाद्य पदार्थ
- प्लास्टिक का इस्तेमाल
- फल और सब्ज़ियों में मिलाए जाने वाले केमिकल
साथ ही उनका कहना है कि पर्यावरण में लगातार बदलाव आ रहा है, और अब कुछ भी पूरी तरह शुद्ध नहीं रह गया है. ऐसे में लोगों को खुद ही ध्यान देना होगा. हालांकि, कोरोना महामारी ने एक अच्छी बात सिखाई है कि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक हुए हैं.
एक ज़िम्मेदार समाज के तौर पर हमें यह सोचना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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