देशभर में निवेशकों से करोड़ों रुपए जुटाकर जमीनों में निवेश करने वाली पर्ल एग्रो टेक कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसीएल) 1983 में जयपुर में रजिस्टर्ड हुई थी। चेन सिस्टम कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का पहला मामला भी 14 साल पहले जयपुर के चौमूं थाने में दर्ज हुआ था। जयपुर में कंपनी का निवेश हब कोटपूतली और फुलेरा था। यहां 223 जमीनें 1000 करोड़ रुपए में खरीदी गई थीं। जानकार सूत्रों की मानें तो पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के परिवार ने कंपनी की फ्रेंचाइजी ले रखी थी। इसमें इनकी भागीदारी करीब 30 करोड़ रुपए बताई जाती है। कंपनी ने राजस्थान में निवेशकों का पैसा निवेश करने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बनाई। इससे ज्यादा निवेश इसने तमिलनाडु में किया था।
कंपनी के खिलाफ मामला सालों से कोर्ट और नियामक संस्थाओं के बीच उलझा हुआ है, लेकिन 5.85 करोड़ निवेशकों को आज तक ब्याज सहित उनका पैसा वापस नहीं मिल पाया है। कंपनी ने कोटपूतली और फुलेरा में करीब 157 और पूरे जिले में करीब 223 संपत्तियां खरीदी थीं। कंपनी कृषि भूमि खरीदकर प्लॉट में निवेश के नाम पर पैसा लगवाती थी। इसके लिए कंपनी ने 67 तरह की योजनाएं बना रखी थीं। इनमें 150 वर्ग गज से लेकर 9 हजार वर्ग गज तक के प्लॉट थे। कंपनी किश्तों में पैसा लेती थी और 25 से 50% मुनाफा देती थी। सीमावर्ती इलाकों में ज्यादा निवेश: पीएसीएल ने देशभर में 43,692 जमीनें खरीदी थीं, जिसमें तमिलनाडु में 15,990 संपत्तियों के बाद राजस्थान में सबसे ज्यादा 10,636 जमीनें खरीदी थीं।
जयपुर में सबसे ज्यादा कीमत की 223 संपत्तियों में निवेश था। यह कंपनी निवेश के नाम पर सबसे सस्ती जमीनें खरीदती थी। पीएसीएल के निवेशक सुरक्षा संगठन (एआईएसओ) के प्रवक्ता प्रो. सीबी यादव का कहना है कि प्रताप सिंह पर ईडी की छापेमारी एक राजनीतिक ड्रामा है। सुबह से रात तक डटे रहे समर्थक, पुलिस से नोकझोंक भी हुई खाचरियावास पर छापेमारी की सूचना मिलते ही जयपुर के सिविल लाइंस स्थित आवास पर बड़ी संख्या में समर्थक जुटने लगे। उन्होंने कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने मौके पर भाजपा सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। समर्थक पूर्व मंत्री के आवास के बाहर खड़ी कार पर खड़े होकर नारेबाजी कर रहे थे। इस पर पुलिस ने आपत्ति जताई। समर्थकों की पुलिसकर्मियों से नोकझोंक हुई। इस दौरान खाचरियावास आवास से बाहर आए और समर्थकों को समझाया।
1983 में शुरू हुई कंपनी, चेन सिस्टम से खड़ा किया साम्राज्य
कंपनी की स्थापना 1983 में पंजाब निवासी निर्मल सिंह बांगो ने की थी और इसका रजिस्ट्रेशन जयपुर में हुआ था। कंपनी ने एलएमएलएम (लैंड मनी लैंड मनी) सिस्टम के तहत लोगों से पैसा इकट्ठा कर कृषि भूमि में निवेश किया। निवेश के बदले में कंपनी निवेशकों को या तो जमीन का पट्टा जारी करती थी या मूलधन के साथ ब्याज भी लौटाती थी। कंपनी ने राजस्थान समेत देशभर में इस मॉडल को अपनाते हुए 32 साल तक काम किया।
2014 में कानूनी लड़ाई
2014 में केंद्रीय एजेंसी सेबी ने कंपनी पर शिकंजा कसते हुए इसके खाते सीज कर दिए थे। आरोप था कि कंपनी बिना वैध अनुमति के पैसा इकट्ठा कर रही थी। इसके बाद कंपनी के मालिक बांगो ने कंपनी ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। वहां राहत न मिलने पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
2 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि छह महीने के भीतर निवेशकों को ब्याज समेत रकम लौटाई जाए। इसके लिए पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। इस पर 5.85 करोड़ निवेशकों की करीब 49,100 करोड़ रुपये की रकम लौटाने की जिम्मेदारी थी, जबकि कंपनी की कुल संपत्ति की कीमत डीएलसी दरों के हिसाब से करीब 1.86 लाख करोड़ रुपये आंकी गई थी।
निवेशकों को पैसा नहीं, पूरी जांच नहीं
जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के छह महीने बाद भी निवेशकों को पैसा नहीं मिला तो 2 फरवरी 2019 को देशभर के निवेशक दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिए जुटे। इसके बाद सेबी ने प्रक्रिया शुरू की और निवेशकों से दस्तावेज मांगे। हालांकि, हजारों निवेशक पहले ही कंपनी को दस्तावेज जमा करा चुके थे।
1.5 करोड़ निवेशकों ने दोबारा सेबी को दस्तावेज जमा कराए। स्क्रूटनी प्रक्रिया में 40 फीसदी निवेशकों को दस्तावेजों की कमी का हवाला देकर प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। इससे करोड़ों निवेशकों का भविष्य अधर में लटक गया है। यह मामला अभी भी लंबित है और लाखों निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई वापस पाने के लिए न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सरकारी एजेंसियों और न्यायपालिका की निगरानी के बावजूद ज्यादातर निवेशकों को अभी तक कोई राहत नहीं मिल पाई है। आपको बता दें कि कंपनी की स्थापना करने वाले निर्मल सिंह बांगो का निधन हो चुका है।
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