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राजस्थान को एक जुलाई को मिलेगा नया DGP! 7 IPS अफसर रेस में शामिल, पढ़े राज्य में अब तक के सबसे दिलचस्प डीजीपी बदलावों की कहानी

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राजस्थान में नए डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) की नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार ने शुरू कर दी है। यूआर साहू को आरपीएससी का चेयरमैन बनाने के बाद सरकार ने नया पैनल तैयार कर केंद्र सरकार को भेज दिया है। इस पैनल में 7 वरिष्ठ अधिकारियों के नाम भेजे गए हैं। 1 जुलाई को प्रदेश को नया डीजीपी मिल जाएगा। इस बीच एसीबी डीजी रवि प्रकाश मेहरा को 30 जून तक राजस्थान का कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है। नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है? कौन हैं 7 दावेदार? सुप्रीम कोर्ट की क्या गाइडलाइन है? इन सभी सवालों के जवाब भी जानेंगे। साथ ही सरकार में पसंद के डीजीपी नियुक्त करने और हटाने की कहानियां भी बताएंगे।

साहू के बाद मेहरा को बनाया गया कार्यवाहक डीजीपी

यूआर साहू को आरपीएससी चेयरमैन बनाए जाने के बाद सरकार ने डीजी रैंक के रवि प्रकाश मेहरा को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया है। वे 30 जून तक इस पद पर रहेंगे। इसके बाद वे रिटायर हो जाएंगे। मेहरड़ा ने एसीबी डीजी रहते हुए बेहतरीन काम किया है। उनकी मॉनिटरिंग प्रक्रिया दोषरहित रही है। पारदर्शिता के साथ कार्रवाई की गई है। ऐसे में सरकार ने नए डीजीपी की नियुक्ति होने तक मेहरड़ा को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया है।

7 आईपीएस अफसरों में से एक नाम तय होगा

डीजीपी बनाने के लिए डीजी रैंक के आईपीएस अफसरों की सूची भेजी जाती है। इस बार भी वरिष्ठता के अनुसार 7 नामों का पैनल संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को भेजा गया है। इन नामों में राजीव कुमार शर्मा, संजय अग्रवाल, अनिल पालीवाल, राजेश आर्य, राजेश निर्वाण, गोविंद गुप्ता और आनंद श्रीवास्तव शामिल हैं। ये सभी आईपीएस डीजी रैंक के हैं। अब यूपीएससी वरिष्ठता के अनुसार पुलिस महानिदेशक बनाने के लिए तीन आईपीएस अफसरों के नाम राजस्थान सरकार को अनुशंसा करेगी।

डीजीपी के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन बरकरार

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राज्य सरकार को डीजीपी की सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले डीजी रैंक के आईपीएस की सूची यूपीएससी को भेजना जरूरी है। हालांकि विशेष परिस्थितियों में यूपीएससी कम समय में ही डीजीपी का नाम फाइनल कर सकता है। नियमानुसार डीजीपी का कार्यकाल खत्म होने से 3 महीने पहले यूपीएससी को नया पैनल भेजना जरूरी होता है। इसलिए अब सरकार में हलचल मची हुई है। हालांकि प्रकाश सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल 2 साल तय किया है, लेकिन अधिकतम कार्यकाल तय करने का पूरा अधिकार सरकार के पास है।

क्या है प्रकाश सिंह केस

यह फैसला साल 2006 का है। तब प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी की नियुक्ति और हटाने को लेकर अहम दिशा-निर्देश दिए थे। इसे प्रकाश सिंह केस इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे। फैसले में कोर्ट ने कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए। बाद में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूपीएससी यह सुनिश्चित करे कि डीजीपी पद के लिए दिए जाने वाले अधिकारी ऐसे हों, जो दो साल बाद रिटायर हो रहे हों। किसी भी अधिकारी को डीजीपी बनाने से पहले उसे ट्रेनी बनाना जरूरी होता है। कम से कम उन्हें डीजी रैंक का अधिकारी तो होना चाहिए था।

राजस्थान में सरकार बदलते ही डीजीपी बदलने की परंपरा रही है। डीजीपी की नियुक्ति भी सरकार की पसंद से होती रही है। कई बार ऐसे मौके आए हैं जब वरिष्ठता को दरकिनार कर डीजीपी की नियुक्ति की गई है। वसुंधरा राजे ने अपने कार्यकाल में पांच वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को दरकिनार कर अपनी पसंद के अफसर को डीजीपी नियुक्त किया था। इसी तरह गहलोत सरकार ने दो आईपीएस अफसरों की वरिष्ठता को दरकिनार कर कपिल गर्ग को डीजीपी नियुक्त किया था।

वसुंधरा ने 5 आईपीएस अफसरों की वरिष्ठता को दरकिनार कर जूनियर को डीजीपी नियुक्त किया

30 नवंबर 2017 को वसुंधरा राजे सरकार ने 1985 बैच के आईपीएस ओपी गलहोत्रा को डीजीपी नियुक्त किया था। इसके लिए सरकार ने पांच वरिष्ठ आईपीएस अफसरों की वरिष्ठता को नजरअंदाज किया था। 1981 बैच के आईपीएस अधिकारी नवदीप सिंह डीजी होमगार्ड थे, उसके बाद 1982 बैच के आईपीएस अधिकारी केके शर्मा थे जो उस समय डीजी बीएसएफ थे। 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी कपिल गर्ग डीजी एससीआरबी थे। 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी सुधीर प्रताप सिंह डीजी एनएसजीपी थे। ओपी गलहोत्रा वरिष्ठता के मामले में 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी सुनील मेहरोत्रा से जूनियर थे।

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