राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकट स्थित डोल का बाढ़ वन क्षेत्र में चल रहे पर्यावरण संरक्षण आंदोलन को सोमवार को नया बल मिला, जब राज्य के प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने मौके पर पहुंचकर आंदोलनकारियों को समर्थन दिया। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, मुख्य सचेतक रफीक खान और विधायक जाकिर हुसैन गैसावत इस दौरान मौके पर मौजूद रहे।
डोल का बाढ़ क्षेत्र पिछले कुछ समय से चर्चा में है, जहां स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों द्वारा एकजुट होकर विकास के नाम पर हो रहे पेड़ों की कटाई और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी परियोजनाओं के खिलाफ आंदोलन चलाया जा रहा है। इन कार्यों को लेकर लोगों में गहरी चिंता है कि इससे न केवल क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रणाली प्रभावित होगी, बल्कि जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवासों को भी खतरा उत्पन्न होगा।
मौके पर पहुंचे नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आंदोलन को पूर्ण समर्थन देते हुए कहा, "हम सरकार से अपील करते हैं कि वह विकास की योजनाओं को लागू करने के नाम पर पर्यावरण और जैव विविधता का विनाश न करें। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के दुष्परिणाम भविष्य में भयंकर रूप ले सकते हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास के पक्ष में रही है और इस आंदोलन की भावना भी इसी दिशा में है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी क्षेत्रीय लोगों की चिंताओं को जायज़ ठहराते हुए कहा कि सरकार को चाहिए कि वह स्थानीय लोगों से संवाद करे और पारदर्शिता के साथ कोई भी परियोजना लागू करे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पर्यावरण संरक्षण एक दीर्घकालिक जिम्मेदारी है और इसमें राजनीति नहीं, बल्कि समझदारी और संवेदनशीलता की जरूरत है।
मुख्य सचेतक रफीक खान और विधायक जाकिर हुसैन गैसावत ने भी आंदोलनकारियों से बातचीत की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाएंगे और सरकार पर दबाव बनाएंगे कि विकास कार्यों के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन रोका जाए।
इस आंदोलन में बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र और पर्यावरणविद् शामिल हैं। वे सभी एक स्वर में मांग कर रहे हैं कि डोल का बाढ़ क्षेत्र को 'संवेदनशील पारिस्थितिकी क्षेत्र' घोषित किया जाए, जिससे भविष्य में कोई भी निर्माण कार्य या विकास परियोजना यहां की जैव विविधता को नुकसान न पहुंचा सके।
संपूर्ण घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि अब पर्यावरण संरक्षण केवल कुछ कार्यकर्ताओं का मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि यह जनता और राजनीति के बीच गंभीर संवाद का विषय बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस जन आंदोलन पर क्या रुख अपनाती है।
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