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सुलतानपुर का ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव दशहरे से हाेगा शुरू, पूर्णिमा को विसर्जन

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सुलतानपुर, 29 सितंबर (Udaipur Kiran News) . देश में कलकत्ता शहर के बाद ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव के लिए Uttar Pradesh के कुशभवनपुर अंतर्गत सुलतानपुर जिले का है. यहां की दिव्यता, भव्य सजावट और नौ दिन नवरात्र की आराधना के बाद दशहरा से पंडालों की सजावट शुरू होती है. अलग-अलग तरह से होने वाली भव्य सजावट और माता के जागरण से शहर अलौकिक हो उठता है. यहां का विसर्जन सबसे आकर्षक होता है, जो परंपरा से हटकर पूर्णिमा को सामूहिक शोभायात्रा के रूप में शुरू होकर लगभग 36 घंटे में संपन्न होता है.

प्रभु श्रीरामचंद्र की अयोध्या धाम से लगभग 65 किलोमीटर, Prayagraj से 100 किमी. तथा बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी (वाराणसी) से 155 किलोमीटर की दूरी पर बसे सुलतानपुर जिला स्थित है. गोमती नदी के तट पर स्थित प्राचीनकाल में इसे भगवान कुश ने बसाया था, जिसके कारण इसे कुशभवनपुर के नाम से भी जाना जाता है.

अपनी अनेकों पहचान वाला Uttar Pradesh के लव की नगरी लखनऊ एवं भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या मौजूद है. जहां दशहरे के पर्व पर सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं. इन सभी जिलों के रंग यहां (सुलतानपुर)के दूर्गापूजा महोत्सव के आगे फीके पड़ जाते हैं. यही वजह है कि देश में Uttar Pradesh के सुलतानपुर(कुशभवनपुर) का दुर्गापूजा महोत्सव कोलकाता से भी पहले स्थान रखता है. कोलकाता संख्या बल या सज्जा में भले पहला स्थान रखता हो किंतु अन्य मायनों में यहां की दुर्गापूजा अपने आप में इकलौती है.

केंद्रीय दुर्गा पूजा समिति के महामंत्री सुनील श्रीवास्तव ने Monday को बताया कि पहली बार वर्ष 1959 में शहर के ठठेरी बाज़ार में बड़ी दूर्गा के नाम से भिखारीलाल सोनी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यहां दुर्गापूजा महोत्सव के उपलक्ष्य में पहली मूर्ति स्थापना की थी. इस मूर्ति को उनके द्वारा Bihar प्रान्त से विशेष रूप से बुलाये गए तेतर पंडित व जनक नामक मूर्तिकारों ने अपने हाथों से बनाया था. विसर्जन पर उस समय शोभा यात्रा डोली में निकली गयी थी. डोली इतनी बड़ी होती थी जिसमें आठ व्यक्ति लगते थे. पहली बार जब शोभा यात्रा सीताकुंड घाट के पास पहुंची थी, तभी जिला प्रशासन ने विर्सजन पर रोक लगा दिया था. जो बाद में सामाजिक लोगों के हस्तक्षेप के बाद विसर्जित हो सकी थी. यह दौर दो सालों तक ऐसे ही चला. वर्ष 1961 में शहर के ही रुहट्टा गली में काली माता की मूर्ति की स्थापना बंगाली प्रसाद सोनी ने कराई और फिर 1970 में लखनऊ नाका पर कालीचरण उर्फ नेता ने संतोषी माता की मूर्ति को स्थापित कराया. वर्ष 1973 में अष्टभुजी माता, अम्बे माता, गायत्री माता, अन्नापूर्णा माता की मूर्तियां स्थापित कराई गई. इसके बाद से तो मानों जनपद की दुर्गापूजा में चार चांद लग गया और शहर, तहसील, ब्लाॅक एवं गांवों में नवरात्र पर्व पर मूर्तियों की स्थापना और दुर्गा महाेत्सव का दाैर शुरू कर हाे गया जाे आज भी परंपरा के रूप में कायम है.

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(Udaipur Kiran) / दयाशंकर गुप्त

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