पहलगाम का हिंदू धर्मग्रंथों में विशेष स्थान है। यहाँ भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े कई मंदिर हैं। कश्मीर घाटी के पहलगाम में लिद्दर नदी के तट पर स्थित ममलेश्वर मंदिर इन्हीं में से एक है। पहलगाम गाँव में स्थित ममलेश्वर मंदिर कश्मीर घाटी के सबसे प्राचीन और प्रमुख मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में लोहरा वंश के हिंदू राजा जय सिंह ने करवाया था। राजा ने इस मंदिर की छत पर एक स्वर्ण कलश भी स्थापित किया था। इसे पहलगाम के सबसे आकर्षक धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है।
हर साल हज़ारों भक्त यहाँ भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। ममलेश्वर मंदिर को 'ममल मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश को इस मंदिर में द्वारपाल नियुक्त किया गया था। तभी से इसे 'ममल' कहा जाने लगा - 'मम' का अर्थ है "मत" और 'मल' का अर्थ है "जाना", जिसका अर्थ है "मत जाओ", जो सुरक्षा का प्रतीक है। मंदिर में नंदी की दो सुंदर मूर्तियाँ हैं। मंदिर के अंदर शिवलिंग स्थापित है और उसके पास ही एक जलस्रोत है, जिसका जल एक छोटे से तालाब में एकत्रित होता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, यह वही मंदिर है जहाँ माता पार्वती ने गणेशजी को द्वारपाल के रूप में खड़ा किया था और कहा था कि कोई भी अंदर न आए। इसी बीच भगवान शिव वहाँ आए और अंदर जाने लगे, लेकिन गणेशजी ने उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर शिव ने गणेश का सिर काट दिया। जब पार्वती बाहर आईं और उन्होंने यह देखा, तो वे बहुत क्रोधित हुईं। उन्होंने शिव से कहा कि गणेश उनके और शिव के पुत्र हैं।
यह सुनते ही शिव ने तुरंत गणेश के कटे हुए सिर की जगह एक हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें पुनः जीवित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ भगवान गणेश को हाथी का सिर मिला था। इसलिए ममलेश्वर मंदिर हिंदुओं के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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