मॉस्को: रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को रोकने में नाकाम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तिलमिलाहट में हैं। इस तिलमिलाहट में वह भारत पर निशाना साध रहे हैं और धमकी दे रहे हैं। वॉइट हाउस ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर पाबंदी लगाई जा सकती है। इससे पहले अमेरिका की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधन नाटो के महासचिव मार्क रूट ने भी भारत, ब्राजील और चीन को आर्थिक प्रतिबंधों की खुली धमकी दी थी। पश्चिम की धमकियों पर भारत ने पहले ही अपना रुख साफ कर दिया है। भारत ने पुराने दोस्त रूस को लेकर धमकी के सामने झुकने से इनकार किया है और अपनी ऊर्जा जरूरतों को सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया है। पश्चिमी देशों ने पहले भी रूसी तेल को लेकर दबाव बनाने की कोशिश की थी लेकिन उसका असर उल्टा हुआ था। आइए जानते हैं।
प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस का बढ़ा व्यापार
साल 2022 तक भारत अपने कच्चे तेल के आयात के लिए मध्य पूर्व पर काफी हद तक निर्भर था। इसमें रूसी तेल का योगदान 1% से भी कम था। इसी साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों ने रूसी तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे रूस पूर्व की ओर जाने को मजबूर हुआ। ये प्रतिबंध रूसी अर्थव्यस्था को तोड़ने के लिए लगाए गए थे, लेकिन इसके उलट ये आधुनिक इतिहास में सबसे बड़े व्यापारिक बदलावों में से एक का कारण बने। इसके बाद भारत रूसी ऊर्जा का बड़ा आयातक बनकर सामने आया।
पश्चिमी दबाव के आगे नहीं झुका भारत
रशिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2022 में रूस से भारत का तेल आयात केवल 0.2% था, लेकिन दिसम्बर 2024 तक रोसनेफ्ट के साथ 13 अरब डॉलर प्रति वर्ष का ऐतिहासिक 10 वर्षीय समझौता हो चुका था। दीर्घकालिक ऊर्जा संबंधों की मजबूती से भारत-रूस आर्थिक सहयोग की आधारशिला तैयार हुई है। इसने एक बार फिर साबित किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर कोई दबाव स्वीकार करता है।
भारत और रूस की दोस्ती
रूसी तेल आयात जून 2025 में रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहंच गया और यह इराक, कुवैद, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संयुक्त आयात को पार कर गया। भारत ने लगभग 40-44 प्रतिशत रूसी तेल आयात किया। जब भी यूरोपीय संघ ने दबाव बनाने की कोशिश की, भारत हमेशा एक कदम आगे रहा। भारत को उसके दोस्त रूस से अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की योजना धराशायी हो गई। जुलाई 2025 में रूस और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर के शिखर पर पहुंचना इसकी गवाही देता है।
प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस का बढ़ा व्यापार
साल 2022 तक भारत अपने कच्चे तेल के आयात के लिए मध्य पूर्व पर काफी हद तक निर्भर था। इसमें रूसी तेल का योगदान 1% से भी कम था। इसी साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों ने रूसी तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे रूस पूर्व की ओर जाने को मजबूर हुआ। ये प्रतिबंध रूसी अर्थव्यस्था को तोड़ने के लिए लगाए गए थे, लेकिन इसके उलट ये आधुनिक इतिहास में सबसे बड़े व्यापारिक बदलावों में से एक का कारण बने। इसके बाद भारत रूसी ऊर्जा का बड़ा आयातक बनकर सामने आया।
पश्चिमी दबाव के आगे नहीं झुका भारत
रशिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2022 में रूस से भारत का तेल आयात केवल 0.2% था, लेकिन दिसम्बर 2024 तक रोसनेफ्ट के साथ 13 अरब डॉलर प्रति वर्ष का ऐतिहासिक 10 वर्षीय समझौता हो चुका था। दीर्घकालिक ऊर्जा संबंधों की मजबूती से भारत-रूस आर्थिक सहयोग की आधारशिला तैयार हुई है। इसने एक बार फिर साबित किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर कोई दबाव स्वीकार करता है।
भारत और रूस की दोस्ती
रूसी तेल आयात जून 2025 में रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहंच गया और यह इराक, कुवैद, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संयुक्त आयात को पार कर गया। भारत ने लगभग 40-44 प्रतिशत रूसी तेल आयात किया। जब भी यूरोपीय संघ ने दबाव बनाने की कोशिश की, भारत हमेशा एक कदम आगे रहा। भारत को उसके दोस्त रूस से अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की योजना धराशायी हो गई। जुलाई 2025 में रूस और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर के शिखर पर पहुंचना इसकी गवाही देता है।
You may also like
बारिश से बाधित दूसरे एकदिनी में इंग्लैंड ने भारत को 8 विकेट से हराया, सीरीज 1-1 से बराबर
राजस्थान: हॉस्टल में छुपे थे लॉरेंस के गुर्ग, थी व्यापारी पर नजर, बड़ी साजिश से पहले चढ़े पुलिस के हत्थे
उद्धव के बाद फडणवीस से मिले आदित्य ठाकरे, क्या महाराष्ट्र में होने वाला है कोई बड़ा उलटफेर
स्कूल सभा के लिए आज के प्रमुख समाचार: राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और खेल की खबरें
WCL 2025 में विवाद, हरभजन-इरफान और यूसुफ पठान के पाकिस्तान के खिलाफ मैच से नाम वापस लेने की अटकलें हुई तेज