नई दिल्ली: वैश्विक स्तर पर इन दिनों बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं। अमेरिकी ने रूस की तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के कुछ हफ्तों के बाद ही हंगरी को एक साल की छूट दे दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यह फैसला तब लिया गया है जब हंगरी ने अमेरिका से करीब 600 मिलियन डॉलर का लिक्विफाइड नेचुरल गैस और 114 मिलियन डॉलर का परमाणु ईंधन खरीदने का वादा किया है।
ट्रंप और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की मीटिंग के बाद इस छूट का ऐलान किया गया है। अमेरिका ने हंगरी को छूट देने का कारण बताते हुए कहा है कि, हंगरी समुद्र से कटा हुआ देश है और उसके पास बंदरगाह भी नहीं है। इसलिए वैकल्पिक स्रोतों से तेल लाना मुश्किल है।
भारत की बढ़ रही मुश्किलें!
अमेरिका जहां एक ओर अन्य देशों को एक के बाद एक प्रतिबंधों से छूट दे रहा है, वहीं दूसरी भारत की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। 30 अक्टूबर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, कहा था कि 'इस मीटिंग में चीन के साथ रूसी तेल खरीद को लेकर कोई वार्ता नहीं हुई थी।' जबकि चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीददार है। साथ ही उसने अपना खुद का पेमेंट सिस्टम भी बना लिया है, जिससे वह प्रतिबंधों से बचा रहेगा।
वर्तमान में भारत और ब्राजील पर अमेरिका ने सबसे अधिक प्रतिबंध लगा रखा है। जबकि पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश समेत तमाम देशों को अमेरिका ने प्रतिबंधों में कुछ छूट दी है।
रूस से संबंधों में आ सकती है खटास
भारत के प्रतिद्वंद्वी चीन, पाकिस्तान समेत तमाम देशों को जहां एक ओर अमेरिकी प्रतिबंधों में छूट मिल रही है। तो वहीं भारत को 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण अमेरिका से निर्यात में भारी गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही भारत की सस्ते रूसी तेल की सप्लाई भी कम होने लगी है। अगर यह स्थिति लगातार कुछ समय तक बनी रहती है तो भारत और रूस के दशकों पुराने संबंधों में खटास भी आ सकती है। जहां दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतें कम हैं, तो अमेरिका अपनी मर्जी से प्रतिबंध लगा रहा है जबकि भारत को रूस से तेल खरीदने पर दूसरों की तुलना में अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारत से क्यों दोगलापन कर रहे ट्रंप?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फोकस चीन-भारत जैसे उभरते बाजारों पर है। वे भारत से ट्रेड डील के बदले रूसी तेल रोकने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यूरोपीय यूनियन को छूट इसलिए दे रहे हैं क्योंकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था ईयू से ज्यादा जुड़ी हुई है। अगर वहां प्रतिबंध लगाते हैं तो निश्चित तौर पर अमेरिका को नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिका के लिए मक्के और डेयरी प्रोडक्ट का बाजार खोल दे।
ऊर्जा बाजार का खेल
अमेरिका खुद रूस को अलग-थलग करने का दावा करता है, लेकिन वास्तव में यूरोप को रूसी गैस पर निर्भर रखकर अमेरिकी एलएनजी बेचता है। जबकि भारत का सस्ते होने पर रूसी तेल कंपनियों से कच्चा तेल खरीदना अमेरिकी तेल कंपनियों को नुकसान पहुंचाता है।
ट्रंप और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की मीटिंग के बाद इस छूट का ऐलान किया गया है। अमेरिका ने हंगरी को छूट देने का कारण बताते हुए कहा है कि, हंगरी समुद्र से कटा हुआ देश है और उसके पास बंदरगाह भी नहीं है। इसलिए वैकल्पिक स्रोतों से तेल लाना मुश्किल है।
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अमेरिका जहां एक ओर अन्य देशों को एक के बाद एक प्रतिबंधों से छूट दे रहा है, वहीं दूसरी भारत की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। 30 अक्टूबर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, कहा था कि 'इस मीटिंग में चीन के साथ रूसी तेल खरीद को लेकर कोई वार्ता नहीं हुई थी।' जबकि चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीददार है। साथ ही उसने अपना खुद का पेमेंट सिस्टम भी बना लिया है, जिससे वह प्रतिबंधों से बचा रहेगा।
वर्तमान में भारत और ब्राजील पर अमेरिका ने सबसे अधिक प्रतिबंध लगा रखा है। जबकि पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश समेत तमाम देशों को अमेरिका ने प्रतिबंधों में कुछ छूट दी है।
रूस से संबंधों में आ सकती है खटास
भारत के प्रतिद्वंद्वी चीन, पाकिस्तान समेत तमाम देशों को जहां एक ओर अमेरिकी प्रतिबंधों में छूट मिल रही है। तो वहीं भारत को 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण अमेरिका से निर्यात में भारी गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही भारत की सस्ते रूसी तेल की सप्लाई भी कम होने लगी है। अगर यह स्थिति लगातार कुछ समय तक बनी रहती है तो भारत और रूस के दशकों पुराने संबंधों में खटास भी आ सकती है। जहां दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतें कम हैं, तो अमेरिका अपनी मर्जी से प्रतिबंध लगा रहा है जबकि भारत को रूस से तेल खरीदने पर दूसरों की तुलना में अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारत से क्यों दोगलापन कर रहे ट्रंप?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फोकस चीन-भारत जैसे उभरते बाजारों पर है। वे भारत से ट्रेड डील के बदले रूसी तेल रोकने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यूरोपीय यूनियन को छूट इसलिए दे रहे हैं क्योंकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था ईयू से ज्यादा जुड़ी हुई है। अगर वहां प्रतिबंध लगाते हैं तो निश्चित तौर पर अमेरिका को नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिका के लिए मक्के और डेयरी प्रोडक्ट का बाजार खोल दे।
ऊर्जा बाजार का खेल
अमेरिका खुद रूस को अलग-थलग करने का दावा करता है, लेकिन वास्तव में यूरोप को रूसी गैस पर निर्भर रखकर अमेरिकी एलएनजी बेचता है। जबकि भारत का सस्ते होने पर रूसी तेल कंपनियों से कच्चा तेल खरीदना अमेरिकी तेल कंपनियों को नुकसान पहुंचाता है।
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