सावन मास में भगवान शिव के पूजन का जहां एक ओर विशेष महत्व है, वहीं शिव के परम भक्त शेषनाग के पूजन का विशेष महत्व सावन शुक्ल पंचमी को है। ब्रह्माण्ड में निहित शक्तियां जो शिवलिंग एवं सर्प में विद्यमान हैं, योगियों के लिए कुण्डलिनी जागरण एवं भक्तों के लिए मनोकामनापूरक रहती हैं। कुण्डलिनी शक्ति नागिन के समान मानी गई है, जो ब्रह्माण्डीय माया और ऊर्जा का प्रतीक है। इसका परम लक्ष्य शिव के मस्तिष्क पर स्थित अमृत रूपी चन्द्र से एकाकार होना है। पिण्ड में स्थित यह शक्ति जब जागृत होती है, तो व्यक्ति सुषुम्ना मार्ग से शिव-साक्षात्कार की ओर बढ़ता है।
नागों के पूजन से दूर होता है कालसर्प दोष- नागपंचमी के दिन भगवान भोलेनाथ सहित सर्पों का पूजन करने से जन्मकुण्डली में विद्यमान कालसर्पदोष शांत होता है। ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत जन्मकुण्डली में विद्यमान सर्पदोष, सर्पशाप, संतान बाधा, राहु-केतु बाधा आदि कुयोगों की शांति के लिए भी नाग पंचमी एक अमोघ मुहूर्त है। कालसर्प दोष की शांति के लिए चांदी से निर्मित नाग-नागिन के जोड़ों को अभिमंत्रित कर नाग पंचमी के दिन जल में प्रवाहित किया जाता है एवं शिव मंदिर में ताँबे का सर्प चढ़ाकर नियमित पूजा करने का विधान है। नाग पंचमी के दिन परिवार के बड़े लोगों को प्रणाम कर उनसे आर्शीवाद लेने की परम्परा आज भी विद्यमान है। नाग पंचमी के दिन अथवा सावन मास में धरती खोदने का कार्य नहीं किया जाता, क्योंकि सावन मास में साँप बच्चे देते हैं, भूमि में नागदेवता का घर होता है, भूमि खोदने से नागों को चोट पहुँचने की सम्भावनाएँ अधिक होती हैं।
देवाधिदेव महादेव के साथ नागों का गहरा संबंध है। सर्प भगवान भोलेनाथ के गले का आभूषण हैं। भगवान शंकर ने जब समुद्रमंथन से निकले कालकूट विष को जनकल्याण के लिए पी लिया और उसे अपने कंठ में धारण किया तब शेषनाग ने ही उनके गले में लिपटकर विष का ताप खत्म कर उन्हें शांति पहुंचाई थी। नागों की सावन में पूजा करने से भगवान शंकर अतिप्रसन्न होकर वरदान देते हैं। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के निमित्त पूजा-अर्चना कर शिव भक्त शनिदेव, पितृं एवं सर्पदेवता का पूजन करते हैं, जिससे उनके जीवन में चमत्कारिक परिणाम मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं, वैसे भी नाग का दर्शन सावन के महीने में अत्यन्त शुभ होता है। बड़ें नसीब वालों को ही इस महीने में नाग को नमन करने का अवसर मिलता है।
नागों के पूजन से दूर होता है कालसर्प दोष- नागपंचमी के दिन भगवान भोलेनाथ सहित सर्पों का पूजन करने से जन्मकुण्डली में विद्यमान कालसर्पदोष शांत होता है। ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत जन्मकुण्डली में विद्यमान सर्पदोष, सर्पशाप, संतान बाधा, राहु-केतु बाधा आदि कुयोगों की शांति के लिए भी नाग पंचमी एक अमोघ मुहूर्त है। कालसर्प दोष की शांति के लिए चांदी से निर्मित नाग-नागिन के जोड़ों को अभिमंत्रित कर नाग पंचमी के दिन जल में प्रवाहित किया जाता है एवं शिव मंदिर में ताँबे का सर्प चढ़ाकर नियमित पूजा करने का विधान है। नाग पंचमी के दिन परिवार के बड़े लोगों को प्रणाम कर उनसे आर्शीवाद लेने की परम्परा आज भी विद्यमान है। नाग पंचमी के दिन अथवा सावन मास में धरती खोदने का कार्य नहीं किया जाता, क्योंकि सावन मास में साँप बच्चे देते हैं, भूमि में नागदेवता का घर होता है, भूमि खोदने से नागों को चोट पहुँचने की सम्भावनाएँ अधिक होती हैं।
देवाधिदेव महादेव के साथ नागों का गहरा संबंध है। सर्प भगवान भोलेनाथ के गले का आभूषण हैं। भगवान शंकर ने जब समुद्रमंथन से निकले कालकूट विष को जनकल्याण के लिए पी लिया और उसे अपने कंठ में धारण किया तब शेषनाग ने ही उनके गले में लिपटकर विष का ताप खत्म कर उन्हें शांति पहुंचाई थी। नागों की सावन में पूजा करने से भगवान शंकर अतिप्रसन्न होकर वरदान देते हैं। नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के निमित्त पूजा-अर्चना कर शिव भक्त शनिदेव, पितृं एवं सर्पदेवता का पूजन करते हैं, जिससे उनके जीवन में चमत्कारिक परिणाम मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं, वैसे भी नाग का दर्शन सावन के महीने में अत्यन्त शुभ होता है। बड़ें नसीब वालों को ही इस महीने में नाग को नमन करने का अवसर मिलता है।
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